कांग्रेस की ओर से कार्यकर्ताओं को अब राष्ट्रवाद की सीख दी जाएगी. एक ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत यह पाठशाला लगेगी. पहले हिंदुत्व की नकल और अब राष्ट्रवाद की. क्या कांग्रेस पार्टी बीजपी और आरएसएस की नकल करने में ही सारी अक्ल लगा देगी ? लगता तो कुछ ऐसा ही है. बैठक में तय यह भी हुआ कि जनता तक पहुंचकर ये बताया जाएगा कि असली राष्ट्रवाद तो कांग्रेस है, बीजपी वाले तो छद्म राष्ट्रवाद हैं.
नई दिल्ली: अगर आप 5 साल पहले जाएं तो 2014 लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस ने बीजपी के हिंदुत्व की नकल शुरू की थी. क्योंकि 2014 के चुनाव में बीजपी और प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस को एन्टी हिंदू साबित कर दिया था. एन्टी हिंदू की छाप से बाहर निकलने के लिए कांग्रेस पार्टी ने बाकायदा एक कमेटी बनाई, जिसके अध्यक्ष बनाए गए थे कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटोनी. मंथन शुरू हुआ कि कैसे कांग्रेस पार्टी महज 44 सीटों पर सिमट गई.
इस कमेटी ने ये माना कि 2004 से लेकर 2014 के बीच यूपीए 1 और 2 की सरकार के दौरान सरकार और पार्टी के नेताओं के बयान ने पार्टी की छवि एन्टी हिंदू बना दी थी. पार्टी के नेताओं ने माना कि 2002 गुजरात दंगों के बाद सिर्फ एक कौम की बात की गई. ये भी माना कि बटला हाउस एनकाउंटर के बाद दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के बयान ने पार्टी की छवि को प्रो मुस्लिम और एन्टी हिंदू बनाने का काम किया. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब ये बयान दिया कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ अल्पसंख्यकों का है. तब पार्टी पर ये ठप्पा मजबूती से लग गया कि ये एन्टी हिंदू पार्टी है.
ऐसे में इस छवि से बाहर निकलने के लिए राहुल गांधी के ‘मंदिर दौड़’ का प्लान बनाया गया. गुजरात विधानसभा चुनाव में तो राहुल गांधी ने द्वारकाधीश मंदिर से लेकर सोमनाथ सभी मंदिरों में जाकर मत्था टेका. यही नहीं पूरे चुनाव के दौरान राहुल गांधी एक भी मस्जिद नहीं गए और ना ही मुस्लिस समुदाय के लोगों के साथ अलग से कोई मीटिंग की. चुनाव में इसका फायदा भी हुआ. उसके बाद मध्यप्रदेश हो, राजस्थान हो, छत्तीसगढ़ हो सभी जगहों पर राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार की शुरुआत किसी न किसी बड़े मंदिर में मत्था टेक कर ही किया. राहुल गांधी ने मंच से ऐलान कर कर्नाटक चुनाव के बाद मानसरोवर की यात्रा भी की. इन तमाम कोशिशों से काफ़ी हद तक कांग्रेस पार्टी को एन्टी हिंदू वाली छवि से बाहर निकलने का मौका मिला.
लेकिन JNU में टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ राहुल गांधी का खड़ा होना, 2016 में हुई सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगकर और बालाकोट एयर स्ट्राइक पर सवाल खड़ाकर 2019 लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी की छवि एन्टी नेशनल यानि राष्ट्र विरोधी की हो गई. इसका नतीज़ा भी 2019 के लोकसभा चुनाव में आप सबने देख ही लिया.
अब कांग्रेस पार्टी एन्टी नेशनल की छवि से बाहर निकलने की रणनीति में जुट गई है. इसके लिए राजधानी दिल्ली में देशभर के कांग्रेस के सभी प्रदेश अध्यक्षों और विधायक दल के नेताओं की बैठक बुलाई गई. इस बैठक में पार्टी को एन्टी नेशनल की छवि से बाहर निकालने के लिए प्लान बनाया गया. तय ये हुआ कि पूरे देश में राज्य स्तर पर, जिला स्तर पर और प्रखंड स्तर पर कांग्रेस के नेताओं को राष्ट्रवाद की ट्रेनिंग दी जाएगी. इस ट्रेनिंग में ये बताया जाएगा कि राष्ट्रवाद सिर्फ बीजपी की जागीर नहीं है.
असल में राष्ट्रवाद तो कांग्रेस की देन है. आज़ादी के दौर में कांग्रेस पार्टी और उनके नेताओं के योगदान को बताया जाएगा और साथ ही इंदिरा गांधी के दौर में पाकिस्तान के दो टुकड़े करने की घटना को जनता तक पहुंचाकर ये बताया जाएगा कि असली राष्ट्रवाद तो कांग्रेस है, बीजपी वाले तो छद्म राष्ट्रवाद हैं.
बैठक में तय तो ये भी हुआ था कि कांग्रेस पार्टी आरएसएस के प्रचारकों की तर्ज़ पर प्रेरक निकलेगी. जो देशभर में कांग्रेस के राष्ट्रवाद की अलख जगाएंगे. लेकिन सोनिया गांधी ने इसपर ऐतराज किया तो ये प्लान ड्रॉप कर दिया गया.
सवाल ये है कि कांग्रेस पार्टी कबतक बीजपी और आरएसएस की नकल करती रहेगी. क्योंकि हिंदुत्व के मुद्दे पर नकल करने का थोड़ा फायदा हुआ तो राष्ट्रवाद के मुद्दे पर नेताओं की गलतियों ने पार्टी को फ़िर से वहीं लाकर खड़ा कर दिया. शायद इसीलिए कहा जाता है कि नकल के लिए भी अक्ल की जरूरत होती है.