Sunday, December 22

         भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
        मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

         पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
          कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा -हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
        मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।

नई दिल्लीः 

पूरे देश में इन दिनों शारदीय नवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है. 9 दिनों तक चलने वाले इस पावन पर्व पर हर दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती है, जिसमें दूसरे दिन तप की देवी मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है. मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला और बाएं हाथ में कमण्डल होता है. शास्त्रों के अनुसार देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं. ब्रह्मचारिणी का अर्थ, तप का आचरण करने वाली होता है. हजारों वर्षों तक तपस्या करने के चलते इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. इसलिए माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप एक तपस्विनी का है. देवी दुर्गा के इस द्वितीय रूप को सभी विद्याओं का ज्ञाता माना जाता है. मान्यता है कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से निर्बुद्धियों को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है .

ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि-

देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए सबसे पहले घर की शुद्धि करें और फिर खुद भी स्नान करें. इसके बाद जिस स्थान पर देवी मां विराजमान हैं उस जगह की शुद्धिकरण करें. फिर देवी की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शक्कर, घी और शहद से स्नान कराएं. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करें. घी और कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. देवी को प्रसाद अर्पित करें. प्रसाद के बाद आचमन करें और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. अंत में क्षमा प्रार्थना करें.

इस मंत्र का जाप करें

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां ब्रह्मचारिणी का भोग

नवरात्रि के दूसरे दिन दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर, सफेद मिठाई, फल, मिश्री आदि का भोग लगाना चाहिए. इस दिन मां को दूध और दही का भोग लगाने का भी बड़ा महत्व है जिससे उम्र लम्बी होने की मान्यता है. इस भोग से देवी ब्रह्मचारिणी प्रसन्न हो जाएंगी.

शास्त्रों में कहा गया है कि जो कोई भी माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है उसे सिद्धि, एकाग्रता, सदाचार, विजय और ज्ञान की शक्ति प्राप्त होती है. शास्त्रों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को माता पार्वती का अवतार माना जाता है. बता दें नवरात्रि के दौरान मां के नौ रूपों की पूजा होती है.