पंचकूला (सारिका तिवारी)
नेताओं, अधिकारियों यहाँ तक कि नाड्ढा साहेब गुरुद्वारे को जा रही मुख्य सड़क के भी ध्यान से गुम हो चुके जिंदा गाँव का नाम है ‘गुमथला’।
यहाँ पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं। सरकार के रिकॉर्ड में इस गाँव का कोई रास्ता नहीं है । यहाँ पहुंचने के लिए किसी की निजी पर से हो कर गुज़रना पड़ता है। परन्तु प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था के तहत इसे पंचकूला नगर निगम के दायरे में कर दिया गया है वो भी मूलभूत असुविधाओं के साथ ।
गाँव वाले या तो किसी की निजी ज़मीन पर एक पगडंडी नुमा रास्ते से हो कर शहर तक आते हैं या फिर नदी के रास्ते रास्ते आना – जाना पड़ता है। ज़रा सी बेमौसमी बरसात में यह गाँव मुख्य धारा से कई दिनों के लिए कट जाता है फिर बरसात के मौसम की तो क्या कहें। पर साल बरसात के मोसम में 2 बच्चों के डूब जाने की दु:खद खबर भी आई थी।
यूं तो विधायक बहुत कर्मठ हैं, वकील भी हैं और पिछले दिनों मुख्यमंत्री की जनआशीर्वाद यात्रा के लिए समर्थन के लिए या शायद अपने रिपोर्टकार्ड में एक और गांव का नाम जोड़ने के लिए विधायक लतिका शर्मा ज़रूर आईं थीं। समस्याओं का स्वयं संज्ञान लेने की बजाय ग्राम वासियों को मुख्यमंत्री के नाम एक पत्र लिखने की सलाह देकर चली गईं। मानों उनको इस गाँव से इस गाँव के नागरिकों की समस्याओं से कोई सरोकार ही नहीं। उन्हे विश्वास है की यह थोड़ी सी वोटें उनकी जीत में कोई मायने नहीं रखतीं।
आज demokraticfront ने दौरा किया तो पाया कि मुख्य सड़क से 3 से 4 किलोमीटर दूर बसे इस गाँव में कोई पक्की सड़क नहीं जाती। वहाँ पहुँचने के लिए एक सूखी नदी भी पार करनी पड़ती है जहां से गाँव मुश्किल से 1 या सवा किलोमीटर दूर है। गाँव पहुँचने पर हमें वहाँ टाइलों से बनी सड़क दिखाई पड़ी। एक प्राइमरी स्कूल, आंगनबाड़ी के दो कमरे बस सरकार ने यही दो चीज़ें मुहैया करवा रखीं हैं। बिजली कि तारें तो पड़ी हुई हैं लेकिन बिजली कभी कभार ही आती है। और ट्रांसफार्मर के नाम पर लकड़ी का फट्टा जिस पर तारें खुले में ही जोड़ रक्खीं हैं।
गांव के युवा टेक राम ने बताया करते हुए कहा कि गाँव तो बहुत पुराना है, शायद हरियाणा बनाने से पहले का, कितनी सरकारें आयीं कितने चुनाव भुगत लिए लें गाँव कि दुर्दशा बाद से बदतर होती गयी है। हमारी टीम ने जब गाँव वालों से पूछा तो उन्होने अपने सभी ज़ख़म खोल कर रख दिये। महिलाओं कि तो हालत ओर भी बुरी थी। गाँव में कोई भी चिकित्सीय केंद्र नहीं है, यहाँ तक कि आशा वर्कर भी साल में शायद ही कभी आती हो।
गाँव के शामलाल ने बताया कि कम आबादी और कम बच्चों का हवाला दे कर सरकार ने तकरीबन 6 साल पहले प्राइमरी स्कूल भी बंद कर दिया जो कि अब चुनावों अथवा कभी कभार आने वाले सरकारी लोगों के लिए खोला जाता है। बच्चे पंचकुला के नामचीन विद्यालयों में पढ़ने जाते हैं लेकिन उन विद्यालयों कि भी मजबूरी है कि सड़क कि सुविधा न होने के कारण वह बच्चों को लेने नहीं आ पाते। बच्चों को स्कूल अपने साधनों से ही जाना पड़ता है। ओर बरसातों में तो बच्चों कि तो क्या बड़ों तक कि छुट्टी हो जाती है। पहले भी इस नदी को पार करने के दौरान दो बच्चों कि मौत हो चुकी है।
आज प्रदेश जहाँ लोकतन्त्र के उत्सव की तैयारी में जुटा है वहीं इस गाँव के लिए मौलिक सुविधाओं से भी वंचित है । इसी वर्ष लोक सभा चुनावों में अंबाला सांसदिया क्षेत्र और कालका विधान सभा के गाँव गुमथला में लोगों ने चुनावों का बहिष्कार कर दिया था। परन्तु विडम्बना यह रही कि बहिष्कार के बावजूद प्रशासन और स्थानीय सांसद और विधायक तो दूर किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने इस गाँव की सुध तक नहीं ली।