Saturday, December 21

यह घटना दर्शाती है कि किस तरह कॉंग्रेस और उनसे संबन्धित राजनेताओं ने लोकतंतरीय प्रणालियों का मज़ाक बना रखा था। UPA के शासन काल में लोकसभा में पहले ही से तय था कि भाजपा की मुखर आवाज़ों को कैसे दबाना है। सुषमा जी की आवाज़ को यूपीए के लोग चाह कर भी दबा न पाये। राजनैतिक द्वेष की पराकाष्ठा तो यह थी कि सुषमा जी को निशाने पर लेते हुए ही दिग्विजय सिंह ने भाजपा को नचनियों की पार्टी कहा था।

नई दिल्ली: यह घटना मई 2013 की है. उस समय केंद्र मोदी कांग्रेस नेतृत्व वाली UPA-2 की सरकार थी. सुषमा स्वराज उस समय नेता विपक्ष थीं. बता दें, 6 मिनट के भाषणा के दौरान लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार ने उन्हें 60  बार टोका. इसके बाद उन्होंने फैसला किया कि वह स्पीकर के बुलाये मीटिंग का बायकॉट करेंगी. 6 मिनट के भाषण में शुरुआती तीन मिनट तक वह बिना किसी रुकावट के बोल रही थीं. जैसे ही उन्होंने UPA के कार्यकाल में हुए स्कैम के बारे में बोलना शुरू किया, कांग्रेस के सांसदों ने सदन में हंगामा शुरू कर दिया. मुश्किल से वह एक मिनट और बोल पाई होंगी कि स्पीकर मीरा कुमार ने उन्हें भाषण समाप्त करने को कहा. लेकिन, वह नहीं रुकीं. 

दरअसल, ऑल पार्टी मीटिंग में पहले ही फैसला कर लिया गया था कि स्वराज और अन्य नेता को बजट के बारे में बोलने के लिए आधे घंटे का वक्त मिलेगा. लेकिन, जैसे ही सुषमा स्वराज ने घोटाले का जिक्र किया स्पीकर मीरा कुमार के मुंह से केवल तीन शब्द निकल रहे थे, “Alright”, “Thank you”, “Okay”, वह लगातार ये तीन शब्द बोल रही थीं और स्वराज को भाषणा खत्म करने को बोल रही थीं.

मीरा कुमार और सुषमा स्वराज के बीच टकराव की शुरुआत 2011 में हुई. स्पीकर मीरा कुमार ने लोकसभा सेक्रेटरी जनरल पद के लिए टीके विश्वनाथन के कार्यकाल को एक साल के लिए बढ़ा दिया था. सुषमा स्वराज ने इसका विरोध किया. उन्होंने कहा कि इस तरह बाहर के लोगों को सेक्रेटरी जनरल बनाने से लोकसभा स्टॉफ का मनोबल टूटता है. यह परंपरा ठीक नहीं है. कुल मिलाकर स्वराज एक ऐसी राजनेता थी, जो मुखर थीं और गलत  के खिलाफ हमेशा आवाज उठाया. उन्होंने जब कभी आवाज उठाया विपक्ष की बोलती बंद हो जाती थी.