क्या काँग्रेस 4 विधानसभा च्नवोन मेन 2018 वाला जादू दोहरा पाएगी
करीब 4 महीने बाद हरियाणा, दिल्ली, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार चुनावी प्रदेशों का दौरा कर जनता का नब्ज़ टटोल रहे हैं लेकिन कांग्रेस अबतक ये तय नहीं कर पाई है कि प्रदेश में कमान किसके हाथ मे दें?
2019 के लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर फंसी हुई है. 2 महीने बाद भी पार्टी असमंजस में है. इस बीच 4 राज्यों के चुनाव सिर पर हैं. बीजेपी ज़मीनी स्तर पर तैयारी शुरू कर चुकी है, लेकिन कांग्रेस अबतक लोकसभा चुनावों की हार से उबर नहीं पाई है. इन दो महीनों में पार्टी ने बहुत कुछ खोया है. राहुल गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर बैठे हैं, कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिर गई, लोकसभा चुनावों की हार का असर पार्टी कार्यकर्ताओं और राहुल गांधी दोनों पर ही साफ नज़र आता है. ऐसे में कांग्रेस यदि अपनी गलतियों से नहीं सीखती तो देश सच में कांग्रेस मुक्त हो जाएगा.
हरियाणा-दिल्ली में अंतर्कलह से जूझ रही काँग्रेस
करीब 4 महीने बाद हरियाणा, दिल्ली, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार चुनावी प्रदेशों का दौरा कर जनता का नब्ज़ टटोल रहे हैं लेकिन कांग्रेस अबतक ये तय नहीं कर पाई है कि प्रदेश में कमान किसके हाथ मे दें? या चुनाव की तैयारी कैसे करें? चार राज्यों में कांग्रेस की स्थिति देखें तो हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर हैं, लेकिन पार्टी के पास अध्यक्ष के अलावा कोई कमेटी नहीं है, जो जिलों या प्रखंड स्तर पर पार्टी का ज़िक्र भी करे. दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के निधन के बाद दिल्ली कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको के निर्देश पर चल रही है. ब्लॉक कमेटियों को भंग कर दिया गया है, और पार्टी में दो फाड़ हैं.
झारखंड में कोई संतोष जनक कार्यवाई नहीं
झारखंड कांग्रेस की बात करें तो लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए प्रदेशअध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. कुछ दिन पहले झारखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का प्रतिनिधिमंडल प्रभारी आरपीएन सिंह से मिला, मौजूदा अध्यक्ष को लेकर शिकायत की, लेकिन दिल्ली दरबार में भी इन नेताओं को माकूल जवाब नहीं मिला, जिसके बाद वो प्रदेश लौट गए.
महाराष्ट्र में भी बागी पहुंचा सकते हैं नुकसान
देश के बड़े राज्यों में महाराष्ट्र की गिनती होती है. इसी कारण कांग्रेस ने महाराष्ट्र पर खास ध्यान देते हुए वहां हाल के दिनों में कई नियुक्तियां भी कर डालीं. महाराष्ट्र में एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन पर पार्टी ज़रूर काम कर रही है लेकिन प्रकाश अम्बेडकर की पार्टी से गठबंधन नहीं होने का नुकसान भी कांग्रेस को झेलना होगा.
लाख कहें पर मनोबल टूटा है
हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पार्टी भले ही 2019 का चुनाव हार चुकी है लेकिन मनोबल कहीं से कम नहीं हुआ है. पार्टी ने आगामी चुनावों को देखते हुए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिसमे मुम्बई कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष एकनाथ गायकवाड़ की नियुक्ति, प्रदेश में इलेक्शन कमिटी, मेनिफेस्टो कमिटी सहित कई कमेटियों का गठन है.
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