पुरनूर, पंचकुला – जून 2019
औरों को नसीहत ख़ुद मियां फजीहत वाले हालत से निकल रही है पंचकुला नगरी। प्रशासन ने भीषण गर्मी में पेयजल संबंधी नगरवासियों को कई दिशा निर्देश दिये हैं लेकिन प्रशासन खुद अपनी बात पर कितना खरा उतर रहा है? इस भीषण गर्मी में मनुष्य त्रस्त और पशु पक्षी पस्त हो चुके हैं। पंचकुला जैसे नियोजित शहर में भी पानी की किल्लत के चलते निवासी बेहाल हैं। पीने के पानी की किल्लत और पानी के दुरुपयोग को रोकने के लिए निषेधाज्ञा भी लगा दी गयी है। यदि आप अपनी गाड़ी नल पानी से धोएंगे अथवा अपने छोटे से बागीचे द्वारा हरियाली बनाए रखना चाहेंगे तो आपको त्वरित जुर्माना लगा दिया जाएगा। लेकिन दूसरी ओर सेक्टर 16 के पार्कों में इसी पानी से सिंचाई की जाती है। स्कूलों में चल रहीं प्राइवेट अकेडमियों का मानना है क यदि वह इस (treated) पानी का प्रयोग करेंगे तो उनके बच्चे किसी प्रकार की बीमारी का शिकार हो जायेंगे अत: वह इसका प्रयोग नहीं होने देंगे।
पंचकूला के कई गांव जैसे खड़क मंगोली, बीड घग्गर, कई कॉलोनियों में हर दिन या तो पैसा खर्च टैंकर मंगावा कर लोग गुज़ारा कर रहे हैं या फिर गाँव कालोनी के बाहर लगे किसी स्कूल या अन्य किसी जगह से पानी भर भर के ला रहे हैं। खड्ग मंगोली के अनिल कुमार ने बताया कि लोग हाई वे की सड़क पार करके स्कूल के बाहर लगे नल से पानी भरने जाते हैं इस वजह से दुर्घटनाएँ होना आम हो गया है। बीड घग्गर में भी पिछले कुछ दिनों से पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है पिछले दिनों खर्च वहन करके टैंकर मंगवाए गए। यह जानकारी गांव में रहने वाले समाज सेवी अम्बेडकर ने दी।
एक ओर आज पंचकूला के उपायुक्त डॉ बलकार सिंह शहर , गांव और सभी कॉलोनियों में हर जीव को पीने का पानी उपलब्ध करवाने के निर्देश जारी कर रहे हैं दूसरी ओर इस तपती गर्मी में पय जल के वैकल्पिक इस्तेमाल को अनदेखा किया जा रहा है।पय जल का प्रयोग गर्मी हो या सर्दी पार्कों और स्कूलों के खेल के मैदानों की सिंचाई के लिए किया जाता है। जबकि सिंचाई के लिए ट्रीटेड वाटर इस्तेमाल करने का प्रावधान है परन्तु प्रदेश भर में इसे नज़रअंदाज़ किया जा रहा है।
पंचकूला की ही बात करें तो लगभग सभी बड़े स्कूलों में शाम के समय खेल की एकेडमी चल रही हैं जिसमें मैदान और घास पर पानी का छिड़काव अनिवार्य होता है जो कि नियमित रूप से किया जाता है। परन्तु इसमें इस्तेमाल होने वाला पानी “ड्रिंकिंग वॉटर” अथवा “पेयजल” है जबकि इस बारे में प्रशासन को पूरी जानकारी है।
ऐसा नहीं कि पंचकूला में ट्रीटमेंट प्लांट नहीं ,यहाँ मुख्यमंत्री ने 24 अक्तूबर 2016 में सैक्टर 20 में ट्रीटमेंट प्लांट का उदघाटन किया था। इस समारोह में स्थानीय विधायक ज्ञानचन्द गुप्ता और अम्बाला से सांसद रतनलाल कटारिया के अतिरिक्त हुडा और निगम के सभी अभियंता और अधिकारी मौजूद थे। परन्तु ट्रीटेड पानी का प्रयोग नहीं किया जा रहा। पंचकूला वेल्फर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुभाष पपनेजा ने कई बार हुडा और सम्बन्धित अधिकारी से मौखिक और लिखित तौर गई तो जवाब में कहा गया कि इस पानी की कुछ बदबू की वजह से इस पानी का प्रयोग नहीं करते । जबकि पार्कों और खेल के मैदानों और इसी तरह शहर के अन्य कार्यों क़े लिए इसके प्रयोग के लिए हर जगह कनेक्शन उपलब्ध करवाये गए हैं परन्तु सम्बंधित अफसर इसे कार्यान्वित करने में नकारात्मक रवैया अपनाए हुए हैं। जबकि चंडीगढ़ की ही तर्ज़ पर पंचकूला में यह प्रोजेक्ट बनाया गया था लेकिन उस तरह से इस्तेमाल नहीं हो रहा।
लाखों करोड़ों की लागत से बनाये गए ऐसे प्लांट किसी न किसी प्रस्तावना , अध्ययन और हर पहलु की जाँच के बाद ही अनुमोदित होते हैं उस समय क्या वाकई ही विवेक से काम नहीं लिया जाता या पहलुओं को नज़रंदाज़ किया जाता है या लागू न करने के पीछे कोई अलग ही कारण हैं ये तो पंचकूला प्रशासन ही जाने।
पानी की बर्बादी को रोकने और किफायत के लिए एयर कंडीशनड कमरों में बैठकों, प्रेसवार्ता या प्रेस नोट या यदा कदा एक आध चालान करके वो भी केवल रिहाइशी इलाकों में पंचकूला प्रशासन अपनी ज़िम्मेदारी पूरी समझ लेता है।