कस्टोडियल डेथ मामले में पूर्व IPS संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा

श्वेता भट्ट के मुताबिक, “संजीव भट्ट के ख़िलाफ़ दर्ज कराई गई शिकायत राजनीतिक बदले की कार्रवाई का एक सटीक उदाहरण है.” सनद रहे की यह श्वेता भट्ट काँग्रेस की टिकट पर मोदी के खिलाफ विधायिका के चुनाव लड़ी थी और हारी थी। संजीव भट्ट खुद भी कॉंग्रेस के कृपापात्र रहे हैं।

जामनगर: 30 साल पहले पुलिस हिरासत में हुई मौत (कस्टोडियल डेथ) मामले में पूर्व IPS संजीव भट्ट को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. जामनगर कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है. जाम-जोधपुर कस्टोडियल डेथ मामले में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने पूर्व IPS संजीव भट्ट को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. 1990 में एक व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत हुई थी. एक अन्य पुलिस अधिकारी प्रवीण सिंह झाला को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

जामनगर जिला डिस्ट्रिक और सत्र न्यायाधीश डीएम व्यास ने यह फैसला सुनाया है. आरोपी में एक पूर्व-आईपीएस, 2 पीएसआई, 4 कांस्टेबल को आरोपी बनाया गया था. 

केस की मुख्य बातें:
– पूर्व IPS संजीव भट्ट को आजीवन कारावास.
– इस केस में तत्कालीन इन्स्पेक्टर शैलेश पंड्या भी आरोपी थे.
– प्रवीण सिंह झाला कॉस्टेबल को आजीवन कारावास.
– ये सजा 302, 323, 506, 34, 114 धाराओं के तहत सुनाई गई है.
– केस में 32 गवाहों की जांच की गई.
– दस्तावेजों के 1000 प्रमाण.
– 5 हजार पन्नों की चार्जशीट.

क्या है मामला
1990 में लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा पूरे भारत मे निकली थी. उसी दौरान दंगे भड़कने के आसार को देखकर जामनगर जिले में कर्फ्यू लगाया गया था. संजीव भट्ट उस समय जामनगर के जाम जोधपुर तहसील में ट्रेनी IPS के तौर कार्यरत थे. भट्ट ने उस दौरान 133 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें प्रभुदास माधवजी वैष्णव भी थे. प्रभुदास को कस्टडी में ही संजीव भट्ट समेत 7 लोगों ने टॉर्चर किया, बाद में अस्पताल में प्रभुदास की मौत हो गई. उस समय इन 7 लोगों के खिलाफ केस दर्ज भी हो गया था, लेकिन केस आगे नहीं बढ़ रहा था. उस दौरान सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद यह केस जामनगर डिस्ट्रिक एंड सेशन कोर्ट तक आया और आज संजीव भट्ट और उनके साथी कॉन्स्टेबल प्रवीण सिंह झाला को आजीवन कारावास की सजा हुई. अन्य पांच को भी आज ही सजा सुनाई जाएगी.

संजीव भट्ट को पिछले हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत देने से इनकार कर दिया था. संजीव भट्ट चाहते थे कि इस मामले में 11 अतिरिक्त गवाहों से पूछताछ हो. भट्ट ने कहा था कि इस मामले में इन 11 अन्य गवाहों से पूछताछ बहुत अहम है.

1990 में भारत बंद के दौरान जामनगर में हिंसा हुई थी. तब संजीव भट्ट यहां के एसएसपी थे. हिंसा को लेकर पुलिस ने 100 लोगों को गिरफ़्तार किया था. इनमें से प्रभुदास माधवजी की अस्पताल में मौत हो गई थी. प्रभुदास के भाई अमरुत वैष्णवी ने संजीव भट्ट के ख़िलाफ़ मुक़दमा किया था और उन्होंने हिरासत में प्रताड़ाना के आरोप लगाए थे.

संजीव भट्ट गुजरात काडर के आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने 2002 में गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल खड़े किए थे. 2015 में गुजरात सरकार ने निलंबित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को बर्खास्त कर दिया था.

संजीव राजेंद्र भट्ट सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर करने के बाद सुर्ख़ियों में आ गए थे.

इस हलफ़नामे में उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए थे और कहा था कि गुजरात में वर्ष 2002 में हुए दंगों की जाँच के लिए गठित विशेष जाँच दल (एसआईटी) में उन्हें भरोसा नहीं है.

आईआईटी मुंबई से पोस्ट ग्रेजुएट संजीव भट्ट वर्ष 1988 में भारतीय पुलिस सेवा में आए और उन्हें गुजरात काडर मिला. पिछले 23 वर्षों से वे राज्य के कई ज़िलों, पुलिस आयुक्त के कार्यालय और अन्य पुलिस इकाइयों में काम किया है.

संजीव भट्ट की पत्नी का बयान

संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने एक बयान जारी कर कहा है, “गिरफ़्तार किए गए 133 लोगों में मृतक और उसका भाई संजीव भट्ट या उनके स्टाफ़ की हिरासत में नहीं थे. इनमें से किसी से भी संजीव भट्ट या उनके स्टाफ़ ने पूछताछ नहीं की थी.”

बयान में कहा गया है, “ध्यान देने वाली बात ये है कि 31 अक्टूबर 1990 को जब स्थानीय पुलिस ने नजदीकी मजिस्ट्रेट के सामने इन लोगों को हाज़िर किया तो मृतक प्रभुदास माधवजी वैश्नानी या अन्य गिरफ़्तार 133 दंगाईयों ने किसी भी तरह के टॉर्चर या कोई अन्य शिकायत दर्ज नहीं कराई.”

“हिरासत में टॉर्चर की शिकायत प्रभुदास माधवजी वैश्नानी की मौत के बाद अम्रुतलाल माधवजी वैश्नानी ने दर्ज कराई थी जोकि विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी के सक्रिय सदस्य भी थे.”

श्वेता भट्ट के मुताबिक, “संजीव भट्ट के ख़िलाफ़ दर्ज कराई गई शिकायत राजनीतिक बदले की कार्रवाई का एक सटीक उदाहरण है.”

“साल 2011 में संजीव भट्ट को 2002 के दंगे की जांच कर रहे जस्टिस नानावटी और जस्टिस मेहता कमीशन के सामने एक गवाह के रूप में बुलाया गया था.”

बयान के अनुसार, बदले की कार्रवाई के कारण ही 300 गवाहों में से केवल 32 के ही बयान ही लिए गए.

श्वेता भट्ट ने सवाल उठाया है कि साल 1990 से 2012 तक शिकायतकर्ता क्यों चुप्पी साधे रहा.

श्वेता भट्ट के अनुसार, “ये अजीब है कि हिरासत के 18 दिन बाद हुई मौत में, जहां अंदरूनी या बाहरी चोट के निशान नहीं मिले थे और इस मौत की जांच पड़ताल फ़ारेंसिक मेडिसिन विशेषज्ञों ने की थी, जिसमें किसी भी तरह का टॉर्चर नहीं पाया गया, ऐसे में ये ताज्जुब है कि इसे हत्या घोषित कर दिया गया.”

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