नितीश एनडीए में रहते हुए करेंगे 3 तालाक बिल का विरोध

मामला 3 तलाक का हो, धारा 370 का या फिर बंगाल में बिगड़ती राजनैतिक व्यवस्था के लिए किसी निर्णय का नितीश कुमार विरोध दर्ज करेंगे। एनडीए के सत्ता में दोबारा आने के बाद से और जेडीयू को कोई मंत्रालय न मिलने से नाराज़ नितीश कुमार एनडीए से निकालने के लिए छटपटा रहे हैं। कुछ चुनावी मुद्दे/ वायदे भाजपा के हैं तो कुछ एनडीए के लेकिन नितीश कुमार की चाल समझना अभी बाकी है।

पटनाः तीन तलाक का मुद्दा देश में फिर से उठने लगा है. संसद के बजट सत्र में तीन तलाक को लेकर नए बिल लाने की बात केंद्र सरकार ने की थी. जिसके बाद एक बार फिर लोकसभा में तीन तलाक बिल पेश करने लिए तैयार है. इसके लिए केन्द्रीय कैबिनेट ने एक साथ तीन बार तलाक बोलकर संबंध विच्छेद की प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए बुधवार को नए विधेयक को मंजूरी दी. वहीं, तीन तलाक के मुद्दे पर जेडीयू केंद्र सरकार के साथ नहीं दिख रही है.

एनडीए सरकार की सहयोगी दल जेडीयू तीन तलाक विधेयक को लेकर सरकार के साथ नहीं है. जेडीयू ने कहा है कि वह इस बिल को लेकर सरकार का साथ नहीं देगी. यह समाज का मुद्दा है इसे समाज को ही तय करना चाहिए.

जेडीयू के महासचिव और बिहार सरकार के मंत्री श्याम रजक ने तीन तलाक बिल को लेकर कहा है कि इस मामले में ह सरकार का साथ नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि हमने पहले भी इसका विरोध किया था और अभी भी इसका विरोध करते हैं. हम आगे भी इसका विरोध करेंगे.

उन्होंने कहा कि हमारे विरोध की वजह से ही तीन तलाक का बिल राज्यसभा में नहीं आ पाया था. तीन तलाक बिल को लेकर जेडीयू की राय पहले से ही साफ है. चुकि यह समाज से जुड़ा मसला है. इसलिए जेडीयू का मानना है कि इस मामले को समाज को ही तय करने देना चाहिए.

वहीं, उनसे पूछा गया कि वह एनडीए में रहकर सरकार का विरोध कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि यह मामला एनडीए से नहीं जुड़ा है बल्कि यह सरकार से जुड़ा हुआ मुद्दा है. इसलिए मुद्दे को लेकर जेडीयू राय बिल्कुल स्पष्ट है.

दरअसल, केंद्रीय कैबिनेट ने ‘तीन तलाक’ (तलाक-ए-बिद्दत) की प्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए बुधवार को नए विधेयक को मंजूरी दी थी. केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह जानकारी दी.

पिछले महीने 16 वीं लोकसभा के भंग होने के बाद पिछला विधेयक निष्प्रभावी हो गया था, क्योंकि यह राज्यसभा में लंबित था. दरअसल, लोकसभा में किसी विधेयक के पारित हो जाने और राज्यसभा में उसके लंबित रहने की स्थिति में निचले सदन (लोकसभा) के भंग होने पर वह विधेयक निष्प्रभावी हो जाता है

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