हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 यूं ही लागू नहीं किया गया था, आज जो दूसरों को सूट बूट की सरकार का ताना देते हैं उनही के राजयकाल में एक बड़े औद्योगिक घराने का संपत्ति विवाद सुलझाने के लिए यूपीए सरकार ने इस अधिनियम में आमूल चूल परिवर्तन ला दिया था। आज हमारे देश में शादी के समय दहेज एक अपराध है परंतु शादी के उपरांत माता पिता की संपत्ति पर बेटियों का बराबर का अधिकार है। गोया की अब लड़के सिर्फ उस लड़की से शादी करें जिसके माता पिता के पास खूब संपत्ति हो, ओर वह उसका हिसाब भी रखेंगे। इस अधिनियम से भारत के सामजिक ताने बाने में आमूल चूल परिवर्तन आया है। आज शंकराचार्य के बयान को सामाजिक तौर पर नहीं आपितु वैधानिक तौर पर देखा जा रहा है, समाज कानून की इस कुरीति का शिकार है ओर इसी लिए शंकराचार्य का बयान विवादित कहा जा रहा है।
हरिद्वार: हरिद्वार में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने बेटियों द्वारा माता-पिता के दाह संस्कार और पिंडदान को लेकर सवाल उठाए. उन्होंने बेटियों द्वारा माता पिता का दाह संस्कार और पिंडदान को धार्मिक शास्त्रों के खिलाफ बताया है. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के मुताबिक, पितरों को तृप्ति तब मिलती है. जब बेटा उनका अंतिम संस्कार और पिंडदान करता है. उन्होंने कहा कि बेटियों के अंतिम संस्कार और पिंडदान करने से पितरों को तृप्ति नहीं और न ही पितरों को मोक्ष मिलता है.
शंकराचार्य ने कहा कि ऐसा हिंदू धर्म ग्रंथों में उल्लेख पितरों को तृप्ति तब मिलती है जब उनका पुत्र या पौत्र अथवा पुत्री का बेटा उनका दाह संस्कार और तर्पण करता है, जो पुत्रियां अपने माता पिता का अंतिम संस्कार करती है उनके माता-पिता को तृप्ति नहीं मिलती है.
उन्होंने कहा कि लड़कियां अपने माता-पिता की संपत्ति पर अपना हक जताने के लिए भी उनका दाह संस्कार और पिंड करती है. उन्होंने कहा बेटियों की इस प्रवृत्ति के चलते परिवारों में कलेश बहुत बढ़ रहे हैं. जब लड़कियां अपने मायके जाती हैं तो उनके भाइयों और भाभियों को यह लगता है कि वे संपत्ति का बंटवारा करने अपने मायके आ गई है. लड़कियों की इस प्रवृत्ति के कारण उनका अब मायके में पहले जैसा सम्मान भी नहीं रहा है. ज्योतिष एवं शारदा द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि इस कारण परिवारों में कटुता बड़ी है.