सारिका तिवारी :
हनमान, दुष्यंत, अर्जुन राम और गजेंद्र होंगें केन्द्रीय मंत्री
बहुत खफा हैं राहुल हार से …. इसीलिए शायद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की मखमली बातों के बावजूद तीन दिन के बाद भी मिलने का समय नहीं दिया। गहलोत जहाँ राहुल बाबा की फटकार को भी सिर आँखों पर लेने को ततपर हैं वहीं पायलट भी मीठी धमकी देने से अपने को रोक नहीं पाए।
हालांकि हार के कारणों का आंकलन और ज़िम्मेदारी कांग्रेस की समीक्षा बैठक में ही तय होंगे परन्तु पायलट ने कह दिया है कि अगर “इस्तीफा – इस्तीफा” खेल में राहुल बाबा आउट हो गए तो वह भी उपमुख्यमंत्री की कुर्सी त्याग देंगे। वो अलग बात है उनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है क्योंकि यह सर्वविदित है कि गहलोत मुख्यमंत्री पद के लिए राहुल की पहली पसंद नहीं थे। प्रियंका चाहती थीं कि पेशे से जादूगर और कट्टर कांग्रेसी अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री आयें क्यों कि वह जानती हैं वाड्रा के खिलाफ राजस्थान में चल रहे मामलों में कोई जादूगरी अवश्य दिखाएंगे जिससे वाड्रा को साफ सुथरे ढंग से इनसे बाहर निकला जा सके और बेशक गहलोत इसमें मदद कर भी रहे हैं।
लेकिन प्रदेश कांग्रेस में विरोधी स्वर उभर रहे हैं कुछ लोग गहलोत को प्रदेश में लोकसभा चुनावों में हार का कारण मांग रहे हैं और उनको बाहर का रास्ता दिखाए जाने की माँग और अधिक मुखर हो कर की जा रही है।
दूसरी ओर सूत्रों की माने तो बहुजन समाजवादी पार्टी के छः के छः विधायक भी हाथी से उतर
कर कमल थामने की तैयारी में हैं। जैसा कि सब जानते ही हैं प्रदेश के 11 कांग्रेस विधायक पहले ही बधाई के समय भाजपा प्रभारियों को आवेदनपत्रों के साथ मिल चुके हैं।
इधर भाजपा भी प्रदेश के दिग्गज नेता हनुमान बेनिवाल को भी जीत का सेहरा बांध रही है । आपको बता दें कि राजस्थान में हनुमान बेनिवाल का हाथ थाम कर भाजपा जाट और अन्य जातियों का वोट बैंक अपनी ओर कर पाई। विशेष धन्यवाद करते हुए और बेनिवाल में विश्वास जताते हुए कल होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में केंद्रीय मंत्री पद के लिए शपथ ग्रहण करने के आमन्त्रित किया गया है। प्रदेश से दुष्यंत सिंह, गजेन्द्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल भी कल शपथ ग्रहण करेंगे।
लेकिन विडम्बना यह है असंतुष्ट स्वरों का मानना है कि गहलोत अपने पुत्र कि सीट तमाम सरकारी संसाधनो के इस्तेमाल के बावजूद नहीं निकलवा पाये तो प्रदेश में काँग्रेस की हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए पहला इस्तीफा गहलोत को ही देना चाहिए था, परंतु सत्ता के मोह से बंधे अब भी केवल भूल सुधार की ही बात करते हैं
होंगें केन्द्रीय मंत्री