सैलजा के लिए अंबाला लोस सीट: राह आसान नहीं
सरिया तिवारी, पंचकुला:
अंबाला लोकसभा क्षेत्र पर इस समय कांग्रेस और भाजपा दोनों ने अपनी शक्ति झोंक रखी है। भाजपा के रत्न लाल कटारिया और कांग्रेस की कद्दावर नेता कुमारी सैलजा के बीच कांटे का मुक़ाबला है। भले ही कटारिया ने ज़्यादा अपने क्षेत्र में काम नहीं किए फिर भी उनकी प्रतिद्वंदी कुमारी सेलजा को यह सीट जनता थाली में परोस कर नहीं देगी। मोदी लहर कटारिया की झोलो में मत डलवाएगी तो वहीं सैलजा को एक अरसे के बाद अपने चुनावी क्षेत्र में आने के बाद नए मतदाताओं से भी जान पहचान करनी पड़ रही है.। उनकी लंबे समय की अनुपस्थिति की वजह से उनको अधिक मशक्कत करनी पड़ रही है।
भले ही वह कटारिया के लिए कड़ा मुक़ाबला है लेकिन उनके लिए अपनी सीट निकालना भी फिलवक्त टेढ़ी खीर है। इसका एक कारण कांग्रेस के भीतर अलग अलग गुट हैं। क्योंकि क्षेत्र की नौ के नौ विधानसभा की कांग्रेस आपसी गुटबाजी करने में इस कदर सक्रिय है की गुट के हित पार्टी हित से ऊपर की चीज माने जा रहे हैं। विधानसभाओ के लिए टिकटार्थियों की प्रतिस्पर्धा इस समय कांग्रेस के लिए घातक है। सैलजा स्वयं हुड्डा गुट से संबन्धित हैं। प्रचार के दौरान यह सपष्ट दिखाई देता है की कार्यकर्ता ओर संभावित टिकटार्थी मन मार कर प्रचार में जुटे हैं, क्योंकि पार्टी विधानसभा चुनाव के लिए उनका आंकलन भी कर रही है। सैलजा के लिए सतही मजबूती जीत के लिए नाकाफी है क्योंकि भीतरघात से वह भी पूरी तरह वाकिफ है।
सैलजा के लिए हार के और भी कारण हैं एक तो 5 साल से अपने चुनावी क्षेत्र में सक्रियहीन होना है। दूसरा बड़ा कारण है कि हरियाणा का दलित पीछड़ा ओर ओबीसी वर्ग सैलजा के बनिस्पत अशोक तंवर पर भरोसा जताता है।
क्या है कटारिया का ग्राफ आइये जाने
वर्ष1999 में भाजपा के टिकट पर रतन लाल कटारिया कांग्रेस के फूलचंद मुलाना को हराकर पहली बार सांसद बने तो 2004 और 2009 के चुनावों में उन्हें कुमारी सैलजा से शिकस्त झेलनी पड़ी। 2014 में मोदी लहर पर सवार कटारिया ने कांग्रेस के राजकुमार वाल्मीकि को 3.40 लाख वोटों से हरा दिया। मौजूदा चुनावी रण में सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए भाजपा ने फिर से रतनलाल कटारिया पर दांव चला तो कांग्रेस ने कुमारी सैलजा को मैदान में उतारा है।
दूसरी ओर सैलजा कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा नाम हैं। सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में शामिल सैलजा न केवल केंद्र में मंत्री रहीं बल्कि राज्यसभा सदस्य भी हैं। हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाने में सैलजा के राजनीतिक योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आम आदमी पार्टी व जजपा गठबंधन के पृथ्वी राज और इनेलो के रामपाल वाल्मीकि मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं, मगर टक्कर सैलजा व कटारिया के बीच ही है। यहां से अभी तक नौ बार कांग्रेस ने विजय पताका फहराई है, जबकि छह बार जनसंघ-जनता पार्टी-भाजपा ने मैदान मारा। बसपा एक बार जीती। लेकिन इनेलो का कभी खाता नहीं खुल पाया। बसपा-इनेलो गठबंधन के उम्मीदवार अमन कुमार नागरा अंबाला से पहली बार एकमात्र सांसद बने थे।
पूर्व में सैलजा का रहा है चुनाव में दबदबा
बेशक पिछले 2014 लोकसभा चुनाव में कटारिया को 50 फीसदी से भी अधिक वोट मिले थे। मगर पिछले चुनावों में सैलजा चुनावी मैदान में नहीं थीं। उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता ग्रहण कर ली थी। वर्ष 2004 के चुनाव में कुमारी सैलजा ने कटारिया को मात दी थी। तब चुनाव में सैलजा को 4,15,264 मत मिले थे जबकि कटारिया को 1,80,329। इसी तरह 2009 चुनावों में सैलजा को 3,22,258 मत पड़े थे जबकि कटारिया को 3,07,688। वहीं 2014 के चुनाव में रतनलाल कटारिया को 6,12,121 मत पड़े जबकि उनके खिलाफ मैदान में उतरे कांग्रेस के राजकुमार वाल्मीकि को 2,72,047 मत मिले थे।
यह है इतिहास अंबाला सीट का
अंबाला लोकसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशियों को ज्यादा सफलता मिली है। एक-एक बार जनता पार्टी (1977) और बसपा (1998) ने जीत हासिल की है। दो प्रत्याशियों भाजपा के सूरजभान (1967, 1977, 1980 व 1996) और कांग्रेस के रामप्रकाश (1971, 1984, 1989 व 1991) को जीत मिली। कांग्रेस के चुन्नी लाल (1951 व 1962) और कुमारी सैलजा (2004 व 2009) और भाजपा के के रतनलाल कटारिया (1999 व 2014) भी दो-दो बार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का गौरव हासिल कर चुके हैं।
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