प्रियंका वाड्रा के वाराणसी से चुनाव न लड़ने के पीछे कारण बहुत हैं, और नए नए कारणो का नित नया खुलासा हो रहा है, अब नयी कड़ी में मायावती का नाम सामने आ रहा है। राजनीति में अपने स्वार्थ को दलित कार्ड के साथ जोड़ने में माहिर मायावती कब क्या कर बैठे कोई नहीं जानता
राहुल के दो सीटों से चुनाव लड़ने की वजह भी दो हैं, पहली यदि राहुल दोनों सीटें निकाल जाते है तो उन्हे राष्ट्रिय स्तर पर स्वीकारीय नेता घोषित किया जाएगा और भारतीय राजनीति में उनका कद बड़ा किया जा सकेगा। दूसरी वजह प्रियंका ही हैं, कांग्रेस को यकीन है कि अमेठी कि जनता गांधी परिवार को हर हालात में जितवाएगी ही। और जब राहुल दोनों सीटों को निकाल लेंगे तो वह अमेठी कि पीढ़ियों से सुरक्षित सीट को छोड़ देंगे। फिर उपचुनाव में प्रियंका वाड्रा अमेठी से लड़ेंगी और सरलता से जीत जाएंगी
नई दिल्ली:
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के वाराणसी से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ने के पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं. पहले यह कहा गया कि राहुल गांधी ने यह कह कर मना कर दिया कि बड़े नेताओं के खिलाफ गांधी परिवार के ना लड़ने की परंपरा नेहरू जी ने डाली थी और उसी का पालन किया जाना चाहिए. मगर क्या यही एक वजह है प्रियंका के वाराणसी से ना लड़ने की? तो ऐसा नहीं है, सूत्रों की मानें तो बीएसपी प्रमुख मायावती का प्रियंका की वाराणसी से उम्मीदवारी पर राजी ना होना है, कांग्रेस के रणनीतिकार लगातार मायावती के सलाहकारों से संपर्क में थे कि प्रियंका गांधी के वाराणसी में चुनाव लड़ने की हालत में उन्हें प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार घोषित किया जाए. इस बारे में समाजवादी से बात भी हो गई थी और अखिलेश यादव ने अपनी मूक सहमति भी दे दी थी. मगर इतना जरूर इशारा किया था कि यह सब मायावती जी के हां करने के बाद ही संभव हो सकता है. जब मायावती से संर्पक किया गया तो उन्होंने बाजी ही पलट दी. मायावती ने प्रियंका को विपक्ष का संयुक्त उम्मीदवार बनाने से मना कर दिया. जानकारों का कहना है कि मायावती को लगा कि यदि प्रियंका बनारस से चुनाव लडती हैं तो इससे पुर्वांचल में कांग्रेस के पक्ष में एक माहौल बनेगा जिससे गठबंधन को नुकसान हो सकता है. मायावती यह जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं थी वो पहले ही साफ कह चुकी हैं कि कांग्रेस भी बीजेपी की तरह ही दुश्मन है.
हालांकि मायावती को समझाने की कोशिश भी की गई मगर वह नहीं मानी. इसके बाद कांग्रेस की महासचिव और पूर्वांचल की प्रभारी प्रियंका को वाराणसी से वापस लौटना पड़ा. यदि बनारस के गठबंधन की उम्मीदवार को देखें तो दिलचस्प बातें सामने आती हैं. गठबंधन ने शालिनी यादव को टिकट दिया है. शालिनी यादव कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सांसद श्यामलाल यादव के परिवार से जुडी हैं. मेयर का चुनाव भी लड़कर हार चुकी हैं. यही नहीं शालिनी प्रियंका गांधी के गंगा यात्राके यात्रा के दौरान उनके साथ ही थीं. मगर जिस दिन उन्होंने कांग्रेस छोड़ कर समाजवादी पार्टी का दामन थामा अखिलेश यादव ने उन्हें बनारस से गठबंधन का टिकट थमा दिया. बात ना बनते देख कांग्रेस ने फिर अजय राय को वाराणसी से उम्मीदवार बनाया.
2014 के चुनाव में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे. नरेंद्र मोदी अपने निकटतम प्रतिद्वंदी अरविन्द केजरीवाल से तकरीबन 3 लाख 77हज़ार वोटों से हराया था. दूसरे स्थान पर रहने वाले आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 वोट मिले. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के अजय राय को 75,614 वोट, बीएसपी को तकरीबन 60 हज़ार 579 वोट, सपा को 45291 वोट मिले थे. यानि सपा-बसपा और कांग्रेस का वोट जोड़ दे तो 3लाख 90 हज़ार 722 वोट हो जाते हैं. मतलब पीएम मोदी की जीत जो अंतर था वह सभी दलों के संयुक्त वोट बैंक से पीछे हो जाता है. सवाल इस बात का था कि जिस तरह से सपा-बसपा ने रायबरेली और अमेठी में अपने प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है अगर प्रियंका वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं तो क्या उनके लिए भी रास्ता खाली कर दिया जाएगा, लेकिन इस पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती नहीं मानीं.