क्या राहुल वाकई रणछोड़दास हैं?

समय को भी याद नहीं होगा की गांधी परिवार का अमेठी रायबरेली सुल्तानपुर से कितना पुराना रिश्ता है। अमेठी से हमेशा गांधी परिवार के नए प्रत्याशी को उतारा जाता है। कॉंग्रेस अमेठी की धमनियों में बहता रक्त है। इन्दिरा, संजय, राजीव, सोनिया और अब राहुल। विपक्ष भी वहाँ इनके खिलाफ हमेश कमजोर प्रत्याशी ही उतारता आया है मानो अमेठी पर मैच फिक्स है। बस 2014 में भाजपा ने स्मृति ईरानी को एन चुनाव के समय राहुल के खिलाफ प्रत्याशी बनाया और राहुल को भयंकर चोट मिली। उनका जीत का अंतर केवल 1 लाख कुछ हज़ार का रह गया। अमेठी ने कांग्रेस को चिरंजीव और अजातशत्रु का आशीर्वाद दिया है, मतांतर भले ही कम हो परंतु जीतेगी कांग्रेस ही। 70 सालों से विकास के नाम पर दुर्दशा झेलती अमेठी अपने सांसद को अरबोनपति बना चुकी है परंतु कहा जाता है की गरीबी उन्मूलन की पहला नारा जिस झोंपड़ी से लगाया गया था वह आज भी जस की तस है और उस झोंपड़ी में उसी गरीब की 5वीं पीढ़ी मताधिकार का प्रयोग करने वाली है परंतु मत पेटी में कांग्रेस का ही कब्जा रहेगा।

अब राहुल ने केरल के वायनाड सीट जहां के कांग्रेसी कार्यकर्ता ए कैमरे के सामने गो हत्या कर गो मांस पकाया और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में बांटा था यही नहीं कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने उसे कैमरे के सामने खाया भी था, वहीं से राहुल ए अपना दूसरा नामांकन पत्र दाखिल किया है। वायनाड में उन्हे भाजपा का खौफ नहीं। कांग्रेस ने यहाँ 2 सेल्फ गोल कर दिये। पहला राहुल के लिए सुरक्षित सीट का होना मतलब राहुल किसी भी प्रकार का विरोध नहीं झेल पाते। स्मृत ईरानी उनके वोटों के जीत के अंतर को एक लाख क्या किया की राहुल को लगा की पाँच साल में स्मृति ने वह कार्य किए हैं जो राहुल की पाँच पीढ़ियों ने नहीं किए।

दूसरे वायनाड सीट जहां भाजपा का कोई खतरा नहीं है यह तो वामपथियों का इलाका है। अब महागठबंधन में वामपंथियों के साथ फोटो खिंचवाए वाले राहुल उन्ही के गढ़ में उनको चुनौती देंगे और फिर गठबंधन का डैम भी भरेंगे। वामपंथी नेता भी अब राहुल के खिलाफ हो चले हैं।

आइये समझते हैं वायनाड – अमेठी का गणित

नई दिल्ली: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में अपने पारंपरिक गढ़ अमेठी के अलावा केरल की वायनाड संसदीय सीट से भी चुनाव लड़ेंगे. पार्टी का कहना है कि राहुल ने प्रदेश इकाई के अनुरोध के बाद वायनाड से लड़ने पर सहमति जताई है. इस फैसले को कांग्रेस की तरफ से दक्षिण भारत, खासकर केरल में अपने जनाधार को मजबूत करने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है. वायनाड केरल में स्थित है लेकिन वह तमिलनाडु और कर्नाटक से भी घिरा हुआ है. एक तरह से तीन दक्षिणी राज्यों का त्रिकोणीय जंक्शन है. वायनाड सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी. 

उधर, सीपीए के नेता प्रकाश करात का कहना है कि केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को हराने के लिए काम करेगा. करात ने एक वीडियो संदेश में कहा “केरल में एलडीएफ मुख्य शक्ति है जो बीजेपी को चुनौती दे सकती है. राहुल गांधी केरल में एलडीएफ से लड़ने जा रहे हैं, इसका मतलब यह है कि हमारा मुकाबला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) से होगा जिसका वह उम्मीदवार होंगे.”

कांग्रेस का गढ़ है वायनाड
वायनाड सीट 2009 में अस्तित्व में आई. वायनाड के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें हैं जो कि तीन जिलों वायनाड, कोझीकोड और मलापुरम में फैली हैं. ये सात विधानसभा सीटें – मनन थावडी, कालपेट्टा, सुल्तान बथेरी, तिरुवामबाडी, नीलाम्बुर, वांडूर, एर्नाड हैं. पिछले दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का कब्जा है. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के एमआई शानवास ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. उन्होंने सीपीआई उम्मीदवार एम. रहमतुल्ला को हराया था. शानवास का निधन हो चुका है. वह केरल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष थे. बीजेपी इस चुनाव में चौथे नंबर जबकि एनसीपी तीसरे स्थान पर रही थी.

2014 में भी कांग्रेस ने मारी बाजी
2014 के लोकसभा चुनाव में भी शानवास को जीत मिली. इस बार उनके सामने सीपीआई उम्मीदवार सत्यन मोकेरी मैदान में थे लेकिन उन्हें जीत नहीं मिली. हालांकि मोकेरी शानवास को 3,77,035 जबकि मोकेरी को 3,56,165 वोट मिले थे. जीत का अंतर 20 हजार मतों का था. बीजेपी तीसरे नंबर पर रही थी. पी. रस्मिलनाथ ने 80,752 वोट हासिल किए थे. 

राहुल की राह आसान नहीं  
पिछले दो लोकसभा चुनाव को आधार मानें तो साफ है कि कांग्रेस की राह आसान नहीं रहने वाली. बीजेपी का जनाधार बढ़ा है जो कि वोट में दिखाई दे रहा है. 2009 में जहां बीजेपी चौथे स्थान पर रही थी तो वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी तीसरे स्थान पर रही. देखना होगा कि क्या राहुल गांधी इस सीट पर कांग्रेस की हैट्रिक लगवाने में सफल होंगे या नहीं.

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