नई दिल्ली : हाल में प्रतिबंधित और जम्मू कश्मीर में सक्रिय संगठन जमात-ए-इस्लामी जम्मू कश्मीर का पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ गहरा संपर्क बना हुआ था और वे लोग नई दिल्ली में कार्यरत पाकिस्तान के उच्चायोग के साथ सतत संपर्क बनाये हुये थे ताकि वे राज्य में पृथकतावाद को बढ़ावा दे सके. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. हुर्रियत कांफ्रेंस में जमात-ए-इस्लामी के सबसे अहम सदस्य सैयद अली शाह जिलानी हैं. एक वक्त में प्रतिबंधित संगठन उन्हें जम्मू कश्मीर के ’अमीर-ए-जिहाद’ (जिहाद के प्रमुख) कहता था.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी कि इस संगठन ने पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस (आईएसआई) के साथ गहरे ताल्लुकात बना लिये थे ताकि वह कश्मीरी युवाओं को हथियार उपलब्ध कराने, प्रशिक्षण देने और शस्त्र आपूर्ति के लिए साजोसामान मुहैया करा सके. उसके नेता पाकिस्तान के नयी दिल्ली स्थित उच्चायोग में संपर्क बनाये हुये थे.
खुफिया सूत्रों के अनुसार, जमात-ए-इस्लामी अपने स्कूलों के नेटवर्क का इस्तेमाल कश्मीर घाटी के बच्चों में भारत विरोधी भावनाएं भरने और फैलाने का काम करती थी. वह अपने संगठन की छात्र शाखा (जमीयत-उल-तुल्बा) के सदस्यों को ‘जिहाद’ करने के लिए आतंकी संगठनों में जाने के लिए प्रोत्साहित करती थी.
अधिकारी ने बताया कि यह चौंकाने वाली बात नहीं है कि घाटी में आतंकवाद के ढांचे का जमात के कट्टर कार्यकर्ताओं के साथ गहरा संबंध दिखता है.
इस संगठन से जुड़े कई ट्रस्ट हैं जो पुरातनपंथी इस्लामी शिक्षा को फैलाने के लिए स्कूल चलाते हैं. इसकी एक युवा शाखा है और वह अपनी दक्षिणरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए कई तरह के प्रकाशन भी करती है. यह संगठन 1945 में जमात-ए-इस्लामी हिंद के एक हिस्से के तौर पर बनाया गया और राजनीतिक विचारधारा में आये मतभेदों के चलते 1953 में यह संगठन उससे अलग हो गया. यह चुनाव प्रक्रिया में भाग लेने का विरोध करती है और विधि द्वारा के स्थापित सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करती है.
जमात पाकिस्तान से संचालित हिज्बुल मुजाहिदीन के डर का इस्तेमाल करती थी और अपने सदस्यों और ट्रस्ट के पैसों की मदद से काम काज चलाती थी ताकि जमीनी स्तर पर उसकी पकड़ बनी रहे. इससे वह कश्मीर घाटी में आतंकी संगठनों को लिए उर्वर जमीन मुहैया कराती थी और उनकी मदद के लिए प्रोत्साहन देने, नयी भर्तियां, आश्रय और छिपने की जगह और कूरियर वगैरह का काम करती थी.
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि जमात के कट्टरपंथी पृथकतावादी तत्वों के अग्रिम मोर्चे की तरह काम करते थे और ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के गठन और साथ ही हिज्बुल मुजाहिदीन के पीछे उनका ही दिमाग था. इसके अलावा ये कट्टरपंथी आतंकी समूहों के साथ मिलकर पृथकतावादी गतिविधियों को बढ़ावा देने का काम भी करते थे.
इसके तार विदेशों में भी फैले हुये थे जहां से ये पैसों का इंतजाम भी करती थी. इसके रिश्ते जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, जमात-ए-इस्लामी पीओके, जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के साथ थे. यह घाटी में धार्मिक वैमनस्य भी फैलाती थी ताकि इस्लाम धर्म के उदारवादी पंथों के साथ तनाव उत्पन्न हो सके.
केंद्र सरकार ने 28 फरवरी को इस संगठन को प्रतिबंधित कर दिया था. पर इससे पहले इस संगठन को दो बार प्रतिबंधित किया जा चुका है. पहली बार 1975 में राज्य सरकार ने दो साल के लिए और दूसरी बार 1990 केंद्र सरकार ने तीन साल के लिए प्रतिबंध किया था.