Sunday, December 22

निचली से ले कर उच्च न्यायालय की डबल बेंच कोर्ट से लताड़ खा हुकी कांग्रेस अभी और लड़ाई के मूड में है। हर जगह से खाली करने के आदेशों के पश्चात भी राहुल सोनिया गांधी की टिम ने सर्वोच्च न्यायालय जाने का निर्णय किया है। उनका यह पैंतरा इस मामले को चुनावों तक लटकाने का है , और जब चुनाव संहित लागू हो जाए तो इस मामले का राजनीतिकरण कर वोट हासिल करने का है।

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा पर जारी तनाव के बीच कांग्रेस को दिल्ली हाई कोर्ट से जोर का झटका लगा है. नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) ने हाई कोर्ट के सिंगल बेंच के आदेश के बाद कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए 2 हफ्ते का समय मांगा था जिसे डबल बेंच ने देने से इनकार कर दिया. कोर्ट के आदेश के बाद एजेएल को अब 56 साल पुराने हेराल्ड हाउस खाली करना होगा. हालांकि सूत्रों के अनुसार एजेएल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकती है.

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलएनडीओ की तरफ से हेराल्ड हाउस को खाली करने के पिछले साल 31 अक्टूबर में भेजे गए नोटिस को सही ठहराया है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि अखबार को छापने के लिए लीज पर दी गई जमीन का सही इस्तेमाल नहीं किया गया. फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट की डबल बेंच ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए 2 हफ्ते का समय देने से भी मना कर दिया.

सिंगल बेंच ने खाली करने का आदेश दिया

इससे पहले 21 दिसंबर को दिल्ली हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने भी एजेएल को हेराल्ड हाउस को खाली करने का आदेश दिया था जिसके बाद एजेएल ने डबल बेंच के सामने अपील लगाई थी. एजेएल ने आदेश के बाद कोर्ट से आगे सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए 2 हफ्ते का समय मांगा था, लेकिन हाई कोर्ट ने वो समय देने से भी इंकार कर दिया है.

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वीके राव की एक पीठ ने 18 फरवरी को केंद्र और एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इससे पहले एजेएल की ओर से दलील पेश करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि कंपनी के बहुसंख्यक शेयर यंग इंडिया को हस्तांतरित होने से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी दिल्ली स्थित हेराल्ड हाउस के मालिक नहीं बन जाएंगे.

2008 में ही अखबार का प्रकाशन बंद

कोर्ट में सुनवाई के दौरान अभिषेक मनु सिंघवी ने यह भी दलील दी कि केंद्र ने पिछले साल जून से पहले हेराल्ड हाउस में मुद्रण गतिविधियों की कमी का मुद्दा कभी नहीं उठाया था, तब तक जब इसके कुछ ऑनलाइन संस्करणों का प्रकाशन शुरू हो चुका था.

हालांकि, केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से दलील दी गई थी कि जिस तरह से शेयरों का हस्तांतरण हुआ उसमें कोर्ट को यह देखने के लिए एजेएल पर पड़े कॉरपोरेट पर्दे के उस पार झांकना होगा कि ‘हेराल्ड हाउस’ का स्वामित्व किसके पास है.

केंद्र सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि हेराल्ड हाउस को अखबार के लिए दिया गया था जबकि हेराल्ड हाउस में 2008 में ही अखबार का प्रकाशन बंद कर दिया गया और वहां के स्टाफ को स्वैच्छिक रिटायरमेंट देकर हटा दिया गया. ऐसे में जब वहां प्रकाशन का कोई काम ही नहीं हो रहा था तो सरकार के पास उस जगह के दुरुपयोग को रोकने के लिए इस लीज को रद्द करना अनिवार्य था. इस बिल्डिंग में पासपोर्ट ऑफिस भी चल रहा है जिसका किराया एजेएल के ही जाता है.