राजद्रोह: सरकार की मंजूरी के बिना भी कन्हैया मामले में कोर्ट करेगा सुनवाई

नई दिल्ली: दिल्ली की एक अदालत ने 2016 के राजद्रोह के एक मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और अन्य पर अभियोजन के लिए जरूरी मंजूरी नहीं देने को लेकर गुरुवार को आप सरकार की खिंचाई की और चेतावनी दी कि उसकी मंजूरी के बगैर भी वह इस मामले में आगे बढ़ेगी. जांच अधिकारी ने मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट दीपक सहरावत को बताया कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस को आरोपियों पर अभियोजन के लिए अब तक जरूरी मंजूरी नहीं दी है और न ही उसने कोई जवाब दिया है.

इस पर न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आपने (दिल्ली पुलिस ने) आरोपपत्र दायर करने में तीन साल लिए. अब वह (दिल्ली सरकार मंजूरी देने में) तीन साल लेगी. मंजूरी दी गयी हो या नहीं, मैं इस मामले में आगे बढूंगा. ’’ अदालत ने इससे पहले पुलिस को संबंधित अधिकारियों को प्रक्रिया को जल्द पूरा करने के लिए कहने का निर्देश भी दिया था और उसे इस मामले में कुमार एवं अन्य आरोपियों पर अभियोजन के लिए मंजूरी हासिल करने के वास्ते तीन हफ्ते का समय दिया था. 

अन्य आरोपियों में पूर्व जेएनयू विद्यार्थी उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य शामिल हैं. दिल्ली पुलिस ने 14 जनवरी को कुमार और अन्य के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दायर कर कहा था कि कुमार ने नौ फरवरी, 2016 को विश्वविद्यालय परिसर में एक कार्यक्रम के दौरान भीड़ की अगुवाई की थी और वहां लगाये गये राजद्रोही नारों का समर्थन किया था.

बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान पुलिस ने अदालत से कहा कि कुमार ने इजाजत नहीं मिलने के बावजूद 2016 का यह कार्यक्रम आयोजित किया.  सह आरोपी भट्टाचार्य और अनिर्बान ने संसद हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरू की बरसी पर आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान भारत विरोधी नारे लगाये एवं कन्हैया ने उनका समर्थन किया.

अदालत ने इस मामले को अगली सुनवाई के लिए 11 मार्च के लिए सूचीबद्ध किया.  उसने पुलिस से इस घटना का वीडियो फुटेज उसे देने को कहा है ताकि वह इस पर गौर कर सके. अदालत ने इससे पहले बिना मंजूरी प्राप्त किये कुमार एवं अन्य के खिलाफ आरोपपत्र दायर करने पर पुलिस पर सवाल खड़ा किया था.

अदालत ने कहा था, ‘‘आपने बिना मंजूरी के आरोपपत्र क्यों दायर किया? आपके पास विधि विभाग नहीं है. ’’ यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मंजूरी रद्द किये जाने के बावजूद किया गया था.  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप)की शिकायत पर जेएनयू प्रशासन ने इस कार्यक्रम की मंजूरी रद्द कर दी थी.  अभाविप ने इस कार्यक्रम को राष्ट्रविरोधी बताया था. 

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