भाजपा के नेताओं का अगर गला भी खराब हो जाता है तो वे नेहरू को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं: मनीष
मनीष ने यह भी आरोप लगाया कि कश्मीर की मौजूदा हालात के लिए बीजेपी जिम्मेदार है
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के जरिए पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को कश्मीर समस्या का जनक कहे जाने पर कांग्रेस ने पलटवार किया है. साथ ही दावा किया कि सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का अगर गला भी खराब हो जाता है तो वे नेहरू को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं.
पार्टी ने यह भी आरोप लगाया कि कश्मीर की मौजूदा हालात के लिए बीजेपी जिम्मेदार है. जिसने पीडीपी के साथ अवसरवादी गठबंधन किया था. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा, ‘अगर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का गला खराब हो जाता है या गले में खराश भी शुरू होती है तो उसके लिए पंडित नेहरू जिम्मेदार हो जाते हैं.’ उन्होंने दावा किया, ‘अगर कश्मीर की परिस्थिति खराब हुई है तो उसके लिए बीजेपी पूरी तरह से जिम्मेदार है. जो अवसरवाद का गठबंधन इन्होंने पीडीपी के साथ बनाया था, उसने जम्मू-कश्मीर को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है.’
तिवारी ने कहा, ‘जब 2015 में चुनाव हुए थे तब 64 प्रतिशत लोगों ने वोट डाले थे. जब श्रीनगर में लोकसभा का उपचुनाव हुआ तब सात प्रतिशत लोगों ने वोट डाले. ये जो बड़े तुर्रम खान बनते हैं, जो सरकार में बैठे हैं, वो अनंतनाग की लोकसभा सीट का उपचुनाव आज तक नहीं करवा पाए हैं. ऐसे में अगर जम्मू-कश्मीर के हालात बिगड़े हैं तो उसके लिए सीधा-सीधा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी, उनकी सरकार और पीडीपी के साथ अवसरवादी गठबंधन जिम्मेदार है.’’ दरअसल, अमित शाह ने पुलवामा आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में बृहस्पतिवार को एक जनसभा में दावा किया था कि पाकिस्तान जिस कश्मीर के कारण आतंकवादी घटनाएं करवा रहा है उस समस्या के जनक जवाहर लाल नेहरू हैं. अगर उस समय सरदार पटेल देश के प्रधानमंत्री होते तो आज ये समस्या ही नहीं होती.
PS note:
मनीष तिवारी की मानें तो 2014 से पहले घाटी के हालात बहुत ही सर्वांगीण विकास की ओर जा रहे थे, और कभी घाटी में कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। मनीष को तो यह भी याद नहीं होगा कि काशमीर कि इकलौती पहचान काश्मीरी पंडित हैं, जो अब घाटी में नहीं, बल्कि अपने ही देश में रेफूजी हैं। और मनीष कि मानें तो यह सब 2014 के बाद हुआ है।
मनीष भूलते हैं कि विभाजन के समय पर ही कश्मीर मुद्दे का समाधान कर पाने में नेहरू की असफलता की देश भारी कीमत चुका रहा है और नेहरू की इस भूल की उपेक्षा नहीं की जा सकती। गौर करने वाली बात यह है कि गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी दूसरी राजशाही वाली सियासतों का भारत संघ में एकीकरण करने में सफल रहे। जब उनमें से किसी ने दुविधा दिखाई या पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा जाहिर की, तो पटेल ने उन्हें उनकी जगह दिखा दी। उदाहरण के लिए, हैदराबाद के निजाम के सशस्त्र विद्रोह को कुचल दिया गया।
जम्मू-कश्मीर राजशाही वाला एकमात्र ऐसा राज्य था, जिसे भारत से जोड़े जाने की प्रक्रिया सीधे प्रधानमंत्री नेहरू की देखरेख में हो रही थी। कश्मीर को पाने के लिए भारत के खिलाफ पाकिस्तान की 1947 की पहली जंग ने भी नेहरू सरकार को इस बात का बेहतरीन मौका दिया था कि वह न केवल हमला करने वालों को खदेड़ देती, बल्कि पाकिस्तान के साथ हमेशा के लिए कश्मीर मुद्दे को सुलझा देती।
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