राजस्थान: चर्चा में हनुमान बेनीवाल और कर्ज़ माफी
बेनीवाल के व्यवहार के अलावा इनदिनों राजस्थान में एक मुद्दा और चर्चा में छाया है. चुनावी सभाओं में राहुल गांधी जीतने के 10 दिन के अंदर किसानों के पूरे कर्ज को माफ करने का ऐलान करते थे
हनुमान बेनीवाल राजस्थानी कहावत जिसका हिंदी मतलब होता है कि नया नया रईस अपनी गर्दन ज्यादा ही ऊंची करके चलता हैको चिरतार्थ करते दिख पड़ते हैं। इस बार चुनाव जीतने के साथ ही वे अजीबो गरीब तरीके से अपनी ओर ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं.
चुनाव नतीजों के बाद पहले तो उन्होंने कांग्रेस में चल रही मुख्यमंत्री की जंग में टांग फंसाने की कोशिश की. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उन्होंने चुनौती दे डाली कि अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया तो लोकसभा चुनाव में उनके समर्थक कांग्रेस की ईंट से ईंट बजा देंगे. दूसरी पार्टी को अपनी बिन मांगी सलाह देना जबरदस्ती गले पड़ने वाली बात ही रही. कांग्रेस ने उनको कोई तवज्जो न देते हुए अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया.
इसके बाद, एक दिन बेनीवाल पुलिस मुख्यालय पहुंचे. पुलिस महानिदेशक और दूसरे बड़े अधिकारियों से मुलाकात की. बाद में मीडिया के पास पहुंचे और पुलिस पर उन्हें जबरन इंतजार करवाने का आरोप मढ़ दिया. शायद उनको ऐतराज हो कि जब एक जनप्रतिनिधि आए तो अधिकारी सारा कामकाज छोड़कर उसे क्यों नहीं अटेंड करे.
राज्यपाल पर बेहूदा टिप्पणी
अब विधानसभा सत्र शुरू होने पर भी बेनीवाल की बेतुकी हरकतें नहीं रुक रही हैं. शपथ ग्रहण समारोह में जब उनका नंबर आया तो दर्शक दीर्घा में बैठे उनके समर्थक तालियां बजाने लगे. पूर्व संसदीय कार्यमंत्री राजेंद्र सिंह राठौड़ ने इस पर टोका तो बेनीवाल ने तंज कसते हुए कहा कि आप चुप कराके दिखा दो.
सबसे बड़ी घटना तो राज्यपाल कल्याण सिंह के अभिभाषण के दौरान घटित हुई. बेनीवाल सदन के वेल में आ गए और मूंग खरीद के लिए नारेबाजी करने लगे. उन्होंने सीधे राज्यपाल को अपशब्द कह दिए. बेनीवाल ने राज्यपाल से कहा कि उन्हें मुख्यमंत्री का नाम तक तो याद नहीं रहता. बेहतर होगा कि पहले वे अपना इलाज कराएं.
इस दौरान मुख्यमंत्री अपनी सीट पर बैठे मुस्कुराते रहे. बीजेपी ने बेनीवाल के इस बेहूदा कमेंट पर कड़ा ऐतराज जताया. पूर्व गृहमंत्री और अब नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया ने सवैंधानिक पदाधिकारी पर अशोभनीय टिप्पणी को सुधारे नहीं जाने पर सदन न चलने देने की धमकी तक दे डाली. लेकिन न बेनीवाल को इससे कुछ फर्क पड़ा और न ही सत्ता पक्ष ने कटारिया के बयान को कोई तवज्जो दी.
कौन है हनुमान बेनीवाल?
हनुमान बेनीवाल नागौर जिले की खींवसर सीट से विधायक हैं. राजनीति उन्होंने छात्र जीवन में ही शुरू कर दी थी. 1996 में वे राजस्थान के सबसे बड़े विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान के छात्रसंघ अध्यक्ष भी रहे. कभी वे बीजेपी में हुआ करते थे. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से अनबन के बाद 2013 में उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते.
2018 विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने राष्ट्रवादी लोकतांत्रिक पार्टी बनाई और राज्य में तीसरी ताकत खड़ी करने की कोशिश की. पहली बार में अध्यक्ष बेनीवाल समेत इस पार्टी के 3 विधायक चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं. बेनीवाल का पश्चिम राजस्थान, विशेषकर उनके गृह जिले नागौर और आसपास के इलाके में अच्छा प्रभाव है.
इसमे कोई शक नहीं कि जाट युवाओं के बीच उनकी गहरी पैठ है. वे लगातार चुनाव जीत रहे हैं और अपनी पार्टी की जड़ें भी जमाने में सफल रहे हैं. लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि उनका उग्र व्यवहार कहीं न कहीं नुकसान भी पहुंचा सकता है. युवा समर्थकों को एंग्री यंग मैन छवि आकर्षित करती है. लेकिन द्विदलीय व्यवस्था वाले राज्य में तीसरी ताकत बनने के लिए उन्हें सौम्य और जिम्मेदारीपूर्ण व्यवहार का परिचय देना होगा. वैसे भी, उनपर समाज के कई समूह घोर जातिवादी राजनीति का आरोप लगाते रहे हैं.
जुमला तो नहीं बन जाएगी किसानों की कर्जमाफी?
बेनीवाल के व्यवहार के अलावा इनदिनों राजस्थान में एक मुद्दा और चर्चा में छाया है. चुनावी सभाओं में राहुल गांधी जीतने के 10 दिन के अंदर किसानों के पूरे कर्ज को माफ करने का ऐलान करते थे. वे दावा करते थे कि अगर उनका मुख्यमंत्री इस वादे को पूरा नहीं करेगा तो वे मुख्यमंत्री ही बदल देंगे. राजस्थान में कांग्रेस को चुनाव जीते हुए सवा महीने से ज्यादा हो गया है लेकिन अभी तक कर्जमाफी पर बहस ही चल रही है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अब किसानों की कर्जमाफी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. गहलोत ने लिखा है कि पूरे देश के किसानों की आर्थिक हालत चुनौतीपूर्ण है. गहलोत के मुताबिक, कांग्रेस की तरह वे भी कर्जमाफी का ऐलान करें. 2 जनवरी को लिखे इस पत्र को उन्होंने 18 जनवरी को सोशल मीडिया पर शेयर किया तो विधानसभा में भी पढ़ कर सुनाया.
बीजेपी ने अब कांग्रेस पर किसानों को गुमराह कर चुनाव जीतने का आरोप लगाया है. शुक्रवार को इस मुद्दे पर हुई गर्मागर्मी के कारण विधानसभा को 3 बार स्थगित करना पड़ा. नेता प्रतिपक्ष ने सरकार के आदेश को लंगड़ा बता दिया. कटारिया का आरोप है कि 19 और 25 दिसंबर को इस संबंध में निकाले गए आदेशों की भाषा में विसंगति है. एक आदेश में अल्पकालीन फसली ऋण को माफ करने की बात है तो दूसरे में अलग शब्द इस्तेमाल किए गए हैं.
नेताओं के बीच फुटबॉल बन रहे किसान!
मुख्यमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष की भाषा पर कड़ा ऐतराज जताते हुए दावा किया कि सहकारी बैंकों से लिए 2 लाख तक के कर्ज माफ किए जाएंगे. उन्होंने बीजेपी पर जनता को गुमराह करने के आरोप लगाए. हालांकि चुनाव से पहले कांग्रेस ने सभी किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया था. लेकिन अब इसमें नित नई शब्दावलियों का प्रयोग किया जा रहा है.
पहले सिर्फ डॉफाल्टर किसानों की बात कही गई. पार्टी में ही विरोध उठा तो सभी किसानों की बात कही जाने लगी. अब सिर्फ सहकारी बैंकों का नाम लिया जा रहा है. किसानों के सामने यूरिया की खरीद और मूंग की उपज बेचने की समस्या भी विकराल हो चुकी है. एक बात स्पष्ट है, चुनाव आयोग ने मार्च में लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान की घोषणा कर दी है. अगर जल्द ही कांग्रेस सरकार ने स्थिति साफ नहीं की तो याद रखना चाहिए भारतीय मतदाताओं के मतदान व्यवहार को ग्रेनविल ऑस्टिन ने ‘अनप्रेडिक्टेबल’ भी ठहराया था.
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!