राजनीति में महत्वाकाक्षाएं पूरी न हो तो गठबंधन बेकार हो जाता है। पार्टियों का बंधन ही इस बिनाह पर होता है कि दोनों पार्टियां बराबर लाभ की हिस्सेदार और हकदार होंगी।मामला अगर फायदे का नहीं होता है तो गठबंधन खत्म ऐसा ही हुआ आज महाराष्ट्र की राजनीति में।
शिवसेना की मंगलवार को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी ने बड़ा फैसला लेते हुए 2019 का अगला लोकसभा और विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला किया है।जिसके बाद 29 साल पुराने इस गठबंधन का कुछ महीनों बाद अंत माना जा रहा है।
भाजपा और शिवसेना के रिश्तों में आई दरार के 10 बड़े कारण…
- विवाद की जड़े शुरू हुई मराठा नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे की राजनीतिक गतिविधियों से उन्होंने 21 सितंबर को 2017 को कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद कयास लगाए जाने लगे की वह बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं।इसके बाद शिवसेना ने संकेत दिए की वह सरकार से अलग हो सकते हैं।
- नारायण राणे शिवसेना की आखों में तब से खटकने लगे जब वह पार्टी के अंदर उध्दव ठाकरे के बढ़ते कद का विरोध करते देखे गए।साल 2005 में शिवसेना ने नारायण राणे को उस वक्त पार्टी से निलंबित कर दिया।राणे कोंकण बेल्ट के सिंधुदुर्ग में अच्छी पैठ रखने वाले नेता हैं।
- इस मामले से अलग महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस की नीतियों और फैसलों को लेकर भी शिवसेना का मतभेद रहा है।किसानों की ऋण माफी और लंबित पड़े विकास कार्यों को लेकर शिवसेना को कई बार सरकार पर हमलावर होते देखा गया है।
- महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना दोनों का गठबंधन मजबूरी का नतीजा है। कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखना और हिंदुत्व की राजनीति को जिंदा रखने के लिए यह गठबंधन दोनों पार्टियों के लिए जरूरी था।
- भाजपा और शिवसेना का गठबंधन 1989 में शुरू हुआ। तीन दशक पुराने गठबंधन का नेतृत्व शिवसेना ने किया था।
- शिवसेना-भाजपा के गठबंधन वाली सरकार जब पहली बार महाराष्ट्र में आई तो शिवसेना के मनोहर जोशी को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया।
- मनोहर जोशी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में इस्तीफा दे दिया जिसके बाद नारायण राणे को आठ महीने के लिए राज्य की कुर्सी की जिम्मेदारी सौंपी गई।
- उसी साल हुए चुनाव में भाजपा ने बीएमसी की 28 सीटों पर कब्जा जमाया जबकि साल 2017 के बीएमसी चुनाव में भाजपा को शानदार 82 सीटें मिली जो शिवसेना से मात्र 2 सीट कम थी।
- साल 2004 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना करीब-करीब बराबर की हैसियत रखते थे।भाजपा को महाराष्ट्र में 54 सीटें मिली जबकि शिवसेना को 62 सीटें। लेकिन 2014 में मोदी लहर में भाजपा ने शिवसेना को मात देते हुए अपने सीनियर होने की धाक दिखाई।
- भाजपा ने यहां की 288 सदस्यीय विधानसभा में से 122 सीटें जीत ली जबकि शिवसेना को 63 सीटें मिली। अब ऐसे में शिवसेना को बीजेपी की मौजूदगी अपने अस्तित्व के खतरे के रूप में भी नजर आती है।