घनश्याम तिवारी ने दिया इस्तीफा, बने भारत वाहिनी पार्टी

वसुंधरा राजे और घनश्याम तिवारी

 

राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से नाराज चल रहे बीजेपी के वरिष्‍ठ नेता घनश्याम तिवारी ने सोमवार को पार्टी से इस्‍तीफा दे दिया है। उन्‍होंने अपना इस्‍तीफा बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह को भेजा है। 5 बार से विधायक तिवारी ने अपना इस्‍तीफा ऐसे समय पर दिया है जब दो दिन पहले ही उनके बेटे अखिलेश ने भारत वाहिनी पार्टी नाम से अलग पार्टी बनाई है।

घनश्‍याम तिवारी ने कहा कि बीजेपी ने अगर वसुंधरा राजे को सीएम पद से नहीं हटाया तो अगले चुनाव में पार्टी को बुरी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। तिवारी ने दावा किया कि वसुंधरा राजे सिंधिया तानाशाह की तरह काम कर रही हैं। पार्टी के पदों को बाहरी लोगों से भरा जा रहा है। इससे पार्टी के कार्यकर्ता निराश हैं। चुनाव से ठीक पहले तिवारी के पार्टी छोड़ने से बीजेपी को तगड़ा झटका लगा है। तिवारी सांगनेर विधानसभा सीट से विधायक हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वह 60 हजार से अधिक वोटों से जीते थे।

उधर, घनश्याम तिवारी के बेटे अखिलेश तिवारी ने ऐलान किया है कि उनकी पार्टी इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव में हिस्‍सा लेगी। अखिलेश ने कहा कि भारत वाहिनी पार्टी राज्‍य की 200 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयारी करेगी। तीन जुलाई को पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की पहली बैठक आयोजित करने जा रही है। इस बैठक में 2000 कार्यकर्ता हिस्‍सा लेंगे। अखिलेश ने बताया कि हरेक विधानसभा सीट से 10 प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है।

उन्‍होंने बताया कि दीन दयाल वाहिनी के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता और प्रतिनिधि भी नई पार्टी में शामिल होंगे। बता दें, दीन दयाल वाहिनी की स्‍थापना घनश्‍याम तिवारी ने की थी। चुनाव आयोग ने भारत वाहिनी पार्टी को रजिस्‍टर कर लिया है और विधानसभा चुनाव में उम्‍मीदवार उतारने की अनुमति दे दी है। अखिलेश ने 11 दिसंबर 2017 को पंजीकरण के लिए आवेदन किया था।

आम आदमी खुश हुआ, दिल्ली में अब नहीं कटेंगे पेड़


  • पेड़ कटाई मामले पर विवाद खड़ा होने के बाद एनजीटी इस पर 2 जुलाई को सुनवाई करेगा
  • क्या किसी भी प्रकार के विकास के नाम पर पेड़ों का काटना ही एक मात्र विकल्प है?
  • क्या हम पेड़ों का स्थानान्त्र्ण नहीं कर सकते?
  • क्या हमारे हॉर्टिकल्चर विभाग के लोग इस कार्य में दक्ष नहीं हैं?

दक्षिण दिल्ली के कई इलाकों में मकान बनाने के नाम पर सरकारी विभाग द्वारा 16 हजार पेड़ों की कटाई का मामला तूल पकड़ने लगा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने इसे लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए 4 जुलाई तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दिया है.

कोर्ट ने 4 जुलाई को इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख मुकर्रर की है.

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कोर्पोरेशन (एनबीसीसी) से पूछा कि- क्या दिल्ली सड़कों के और इमारतों के विकास के लिए पेड़ों की कटाई की कीमत चुका सकता है? इसपर एनबीसीसी की ओर से कहा गया कि एनजीटी में ये मामला बहुत साल चला और अंत मे एनजीटी ने पेड़ काटने की अनुमति दे दी.

एनबीसीसी और पीडब्ल्यूडी ने कोर्ट को आश्वासन दिया है कि अगली सुनवाई तक वो पेड़ों को नहीं काटेंगे.

आम आदमी, अपनी सरकार के फैसलों पर रोक से खुश अब पेड़ नहीं कटेंगे

बता दें कि वकील के के मिश्रा ने पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की थी. मिश्रा ने कहा कि सरकार दक्षिण दिल्ली में 20 हजार से भी ज्यादा पेड़ों को काटना चाहती है.

उन्होंने सीएजी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि दिल्ली में 9 लाख पेड़ों की पहले से कमी है.

वहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) 2 जुलाई को इस मामले की सुनवाई करेगा.

बयान विवादित है


हरियाणवी डांसर और लोक गायक सपना चौधरी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकती है


हरियाणवी डांसर और लोक गायक सपना चौधरी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए प्रचार कर सकती हैं। बीते शुक्रवार को सपना चौधरी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी से मुलाकात करने दिल्ली पहुंचीं थी। सपना चौधरी के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलों पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद ने विवादित बयान दिया है। करनाल से सासंद अश्विनी कुमार चोपड़ा ने कहा कि कांग्रेस को देखना है कि उन्हें ठुमके लगाने वाले चाहिए या चुनाव जीतने वाला।
सासंद अश्विनी कुमार चोपड़ा ने कहा, कांग्रेस में ठुमके लगाने वाले जो हैं, वही ठुमके लगाएंगे, ये उनको देखना है कि ठुमके लगाने हैं या चुनाव जीतना है।
आपको बता दें कि 22 जून को सपना चौधरी कांग्रेस मुख्यालय गई थी और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी से प्रभावित होने की बात कही थी। कांग्रेस मुख्यालय पहुंचने के बाद सपना ने संवाददाताओं से कहा था, मुझे सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी बहुत अच्छी लगती हैं। मैं उनसे मिलने पहुंची थी लेकिन उनसे नहीं मिल पाई। जल्द ही मैं उनसे मिलूंगी।

आरक्षण विरोधी ताकतों के साथ मिल कर लड़ेगे चुनाव : सपाक्स

सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स)


मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.


दिल्ली के आईएएस अधिकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है लेकिन, मध्यप्रदेश के अफसर पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे के खिलाफ राजनीति के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. पिछले दो साल से पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स) ने अगले विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.

अनारक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारी के संगठन के इस ऐलान से साल के अंत में होने वाले विधानसभा के चुनाव में जातिवादी राजनीति के हावी होने की संभावना बढ़ गई है. सपाक्स समाज से कई आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी जुड़े हुए हैं. संगठन का राजनीतिक स्वरूप होने पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आचरण संहिता से बचना मुश्किल होगा.

पिछले ड़ेढ दशक से कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहने की मुख्य वजह पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था रही है. वर्ष 2002 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कानून बनाया था. पदोन्नति में आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को ही दिया जाता है. पिछड़ा वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाता है. राज्य में पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में चौदह प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए बीस एवं जनजाति वर्ग के लिए सोलह प्रतिशत पद सरकारी नौकरियों में आरक्षित हैं. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कोई लाभ नहीं मिला था.

कांग्रेस बुरी तरह से चुनाव हार गई थी. भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह शासनकाल की याद दिलाकर वोटरों को बांधे रखने की लगातार कोशिश करती रहती है. विधानसभा एवं लोकसभा के पिछले तीन चुनावों में बीजेपी को इस मुद्दे पर सफलता भी मिलती रही है. लगभग दो साल पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के लिए बनाए गए कानून एवं नियमों को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया था.

 

इस निर्णय के खिलाफ सरकार के सुप्रीम कोर्ट में चले जाने से गैर आरक्षित वर्ग के सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी नाराज हैं. सपाक्स संगठन इसी नाराजगी से उपजा है. संगठन के सक्रिय होने के बाद राज्य के सरकारी क्षेत्र में आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच स्पष्ट विभाजन देखा जा रहा है. वर्ग संघर्ष की पहली झलक दो अप्रैल के भारत बंद के दौरान देखने को मिली थी. इस बंद के दौरान राज्य के कई हिस्सों में व्यापक तौर पर हिंसा भी हुई थी. इस आंदोलन में आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

आरक्षण के खिलाफ संख्या बल दिखाने के लिहाज से ही पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग को भी शामिल कर सपाक्स का गठन किया गया था. पिछड़ा वर्ग को हर स्तर पर चौदह प्रतिशत आरक्षण मिलता है. सिर्फ पदोन्नति में नहीं है. पिछड़ा वर्ग के अधिकारी एवं कर्मचारी आरक्षण समाप्त करने की मांग का समर्थन नहीं करते हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग अधिकारियों एवं कर्मचारियों का अपाक्स नाम से अलग संगठन भी है. संगठन के अध्यक्ष भुवनेश पटेल कहते हैं कि हम सपाक्स के साथ नहीं हैं. पटेल ने कहा कि सपाक्स के लोग भ्रमित दिखाई दे रहे हैं. वे क्या करना चाहते हैं, उन्हें पता ही नहीं हैं. सपाक्स के अध्यक्ष डॉ. केदार सिंह तोमर ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल आरक्षित वर्ग को नहीं छोड़ना चाहता है. सपाक्स ने चुनाव लड़ने का फैसला आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ लिया है.

डॉ.तोमर पशु चिकित्सा विभाग में हैं. उन्होंने बताया कि आरक्षण के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई सपाक्स समाज संगठन द्वारा लड़ी जाएगी. सपाक्स की उत्पत्ति पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ हुई थी, इस कारण इस संगठन को जमीनी स्तर पर सामान्य वर्ग का कोई खास समर्थन नहीं मिला. लिहाजा सपाक्स समाज नाम से अलग संगठन बनाया गया. इस संगठन में रिटायर्ड आईएएएस अधिकारी हीरालाल त्रिवेदी संरक्षक हैं. अन्य पदाधिकारी भी रिटायर्ड अधिकारी हैं. सपाक्स और सपाक्स समाज एक ही सिक्के दो पहलू हैं.

सपाक्स समाज के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं कि उन सभी राजनीतिक दलों से बात कर चनाव की रणनीति तय की जाएगी, जो आरक्षण व्यवस्था के विरोध में हैं. सवर्ण समाज पार्टी भी इनमें एक है. यह दावा भी किया जा रहा है कि रघु ठाकुर सपाक्स समाज का समर्थन कर रहे हैं. रघु ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं. रघु ठाकुर अथवा उनके दल की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दमोह में आरोप लगाया है कि बीजेपी ब्राहणों और दलितों को आपस में लड़ाने का काम कर रही है.

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें 148 सामान्य सीटें हैं. अनुसूचित वर्ग के लिए 35 और जनजाति वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. दोनों ही प्रमुख राजनीति दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा आरक्षित सीटों को अपनी झोली में ड़ालने की रणनीति बना रहे हैं. कांग्रेस बसपा और सपा से भी तालमेल की संभावनाएं तलाश रही है. पिछड़े वोटों को जाति के आधार साधने के लिए पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं.

आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस अभी साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इससे सामान्य वर्ग नाराज है. इस नाराजगी का लाभ सपाक्स राजनीति में उतरकर उठाना चाहता है. सपाक्स से जुड़े हुए अधिकांश लोग सरकारी नौकरी में हैं. सरकारी नौकरी में रहकर राजनीति नहीं की जा सकती. इस कारण ऐसे दलों से उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं भी तलाश की जा रही हैं, जो पहले से ही चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दल है. इसमें सवर्ण समाज पार्टी भी एक है. सपाक्स के श्री त्रिवेदी ने कहा कि संगठन को राजनीतिक दल के तौर पर पंजीयन कराने का फैसला सभी संभावनाएं टटोलने के बाद ही किया जाएगा.

राज्य में कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मण वोटों को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. पिछले पांच सालों में बीजेपी का ब्राह्मण नेतृत्व कमजोर हुआ है. कांग्रेस में भी दमदार ब्राहण नेताओं की कमी है. बीजेपी की आतंरिक राजनीति के चलते कई ब्राह्मण नेता नेपथ्य में चले गए हैं. सरकारी नौकरी में सामान्य वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या पांच लाख से भी अधिक है. अधिकारी एवं कर्मचारी भी सरकार से अनेक मुद्दों पर नाराज चल रहे हैं. प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष कमलनाथ कर्मचारी संगठनों से उनकी मांगों को लेकर बैठक भी कर चुके हैं.

कांग्रेस इस कोशिश में लगी हुई है कि किसी भी सूरत में सरकार विरोधी वोटों का विभाजन न हो. सपाक्स के उम्मीदवार यदि सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो वोटों का विभाजन भी होगा. सत्ता विरोधी वोटों के विभाजन की स्थिति में लाभ बीजेपी को होना तय माना जा रहा है. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.

जाको राखे साईं मार सके न कोय

 


 खुदकुशी के इरादे से पटरियों के बीच बच्चे सहित लेटी महिला के ऊपर से पुष्पक एक्सप्रेस तेजी से निकल गई, लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ


मध्य प्रदेश में एक 25 वर्षीय महिला ने अपने नवजात बच्चे के साथ पटरियों के बीच में लेटकर खुदखुशी करने का प्रयास किया. बुरहानपुर जिले के नेपानगर रेलवे स्टेशन पर महिला अपने बच्चे के साथ ट्रैक के बीच में लेट गई. इसके बाद एक एक्सप्रेस ट्रेन तेजी से दोनों के ऊपर से गुजर गई, लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ.

यह घटना शनिवार सुबह को इटारसी-भुसावल रेल खंड के नेपानगर रेलवे स्टेशन पर हुई. जब खुदकुशी के इरादे से पटरियों के बीच बच्चे सहित लेटी महिला के ऊपर से पुष्पक एक्सप्रेस तेजी से निकल गई. खंडवा आरपीएफ थाने के प्रभारी निरीक्षक एस के गुर्जर ने बताया कि महिला की पहचान इलाहाबाद की तब्बसुम के तौर पर हुई है. वह अपने दो माह के बच्चे के साथ कुशीनगर एक्सप्रेस से इलाहबाद से मुंबई जा रही थी. लेकिन नेपानगर में ही ट्रेन से उतर गई और स्टेशन पर बच्चे के साथ पटरियों के बीच लेट गई.

उन्होंने कहा कि इससे पहले की वहां मौजूद लोग कुछ कर पाते पटरियों पर पुष्पक एक्सप्रेस आ गई और महिला और उसके बच्चे के ऊपर से तेज गति से निकल गई. लेकिन चमत्कारिक रूप से महिला और उसका बच्चा दोनों सुरक्षित रहे और उन्हें कुछ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने दोनों को अस्पताल पहुंचाया.

नानी के घर मुंबई जा रही थी तब्बसुम

गुर्जर ने बताया कि महिला से पूछताछ करने पर उसने बताया कि वह अपनी नानी के घर मुम्बई जा रही थी. लेकिन व्यक्तिगत परेशानियों के चलते बीच रास्ते में ही खुदकुशी करने की कोशिश की. उसने बताया कि उसकी सौतेली मां ने शादीशुदा व्यक्ति साजिद से उसकी शादी करवा दी. उसका पति उसे मारता और प्रताड़ित करता था. उसका कहना था कि पति ने गर्भवती होने के बाद उसे तलाक भी दे दिया. महिला ने बताया कि बच्चे के जन्म से पहले भी वह एक दफा खुदकुशी का प्रयास कर चुकी थी.

धार्मिक सौहार्द और आस्था का एक बेहतरीन उदाहरण

 

बिहार के बेगूसराय जिले में एक मुस्लिम परिवार ने अपने दो बच्चों का गंगाघाट पर हिन्दू रीति-रिवाजों से मुंडन संस्कार कराया. यूपी के धधरा के रहने वाले इस परिवार में कोई संतान नहीं थी. परिवार ने मां गंगा से संतान की मन्नत मांगी थी.

मां गंगा के आशीर्वाद से पति-पत्नी को दो बेटों का जन्म हुआ. इसके बाद इस परिवार ने सिमरिया के गंगा घाट पर अपने दोनों बेटों का विधि-विधान से मुंडन संस्कार कराया. मुस्लिम परिवार का यह कार्य सिमरिया समेत पूरे बेगूसराय में चर्चा का विषय बना हुआ है.

धार्मिक सौहार्द और आस्था का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करने वाले इस मुस्लिम परिवार की खुशी देखने लायक थी. इनकी आंखों में न तो किसी धर्म का खौफ था न ही कोई दिखावटीपन नजर आया. जागीर खान की पत्नी ने बताया कि वे बेहद खुश हैं क्योंकि उनकी मन की मुराद पूरी हो गई. मुंडन संस्कार कराकर वह बहुत अच्छा महसूस कर रही हैं. स्थानीय लोगों ने इसे धार्मिक सौहार्द का बेहतर उदाहरण कहा है.

पुरुलिया हत्याकांड में एक गिरफ्तार

 


मालूम हो कि त्रिलोचन का शव 30 मई को जिले के बलरामपुर क्षेत्र में एक पेड़ से लटका मिला था


पश्चिम बंगाल सीआईडी ने त्रिलोचन महतो की हत्या में कथित संलिप्तता के लिए पुरुलिया जिले से एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. बीजेपी ने दावा किया है कि त्रिलोचन उसका सदस्य है. एक वरिष्ठ सीआईडी अधिकारी ने बताया कि लंबी पूछताछ के बाद 45 वर्षीय पंजाबी महतो को रविवार सुबह गिरफ्तार कर लिया गया.

त्रिलोचन का शव 30 मई को जिले के बलरामपुर क्षेत्र में एक पेड़ से लटका मिला था. अधिकारी ने बताया कि पंजाबी के आवास पर छिपाए गए दो मोबाइल फोन और दो सिमकार्ड उन्होंने बरामद किए है. उन्होंने कहा, ‘फोन और सिमकार्ड की फोरेंसिक जांच कराई जाएगी. पंजाबी को सोमवार को अदालत में ले जाया जाएगा और अदालत से उसकी पुलिस हिरासत मांगी जाएगी.’

मालूम हो कि 20 वर्षीय पीड़ित के शव के पास बंगाली में हाथ से लिखा एक नोट बरामद किया गया था. इसमें कहा गया था कि उसे राज्य में हाल में हुए पंचायत चुनाव के दौरान ‘बीजेपी के लिए काम करने के लिए दंड़ित किया गया है.’

त्रिलोचन के पिता हरीराम महतो ने बलरामपुर पुलिस थाने में एक मामला दर्ज कराया था. उन्होंने पिछले सप्ताह इस घटना की सीबीआई जांच कराए जाने के आग्रह को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट में एक रिट याचिका भी दायर की थी.

त्रिलोचन की मौत के तीन दिन बाद 35 वर्षीय दुलाल कुमार जिले में एक पावर ट्रांसमिशन टॉवर से लटका मिला था. बीजेपी ने दावा किया था कि कुमार भी उसका ही कार्यकर्ता है. दोनों पीड़ितों को न्याय देने की मांग को लेकर बीजेपी ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन और रैलियां की थी. इन दो घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने जिला एसपी जॉय बिश्वास का तबादला कर दिया था.

सुशासन बाबु का जंगल राज


इस जवाब में कोई दम नहीं रह गया है कि आरजेडी के शासन काल को जंगल राज कहा जाता था. उस दौर की तुलना में अपराध कम ही हो रहे हैं. यहां तो तुलना नीतीश के पहले, दूसरे और तीसरे शासन के बीच हो रही है


अपराध के आंकड़े भले ही नीतीश कुमार को सकून दे रहे हों, पर राज्य के आम लोग इन दिनों सुशासन को पहले की तरह भरोसे के साथ नहीं देख पा रहे हैं. यह बेवजह नहीं है. कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जा रही हैं, जिसे देख-सुनकर सिहरन पैदा हो जाती है. कुछ दिन पहले गया में एक व्यक्ति की मौजूदगी में उसकी पत्नी और बेटी के साथ रेप की खबर आई. शुक्रवार को बेतिया में एक शिक्षक के सामने उनके इकलौते बेटे की हत्या कर दी गई.

ये ऐसी घटनाएं हैं, जिनके बारे में सोचकर ही धारणा बनती जा रही है कि अपराधियों के मन से पुलिस और कानून का डर जा रहा है. अगर ऐसा है तो यह नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती है. उन्हें याद होगा कि 2005 में राज्य की जनता ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया था, उस वक्त कानून का राज और सुशासन बड़ा चुनावी मुद्दा था. विकास का नंबर दूसरे पायदान पर था. शाम ढलने के बाद लोग घर से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझते थे. जिनके पास थोड़ी पूंजी थी और राज्य के बाहर कहीं कारोबार का विकल्प था, उन सबों का पलायन हो रहा था.

ताजा हाल यह है कि मुख्य विपक्षी दल आरजेडी अपराध को राजनीतिक मुद्दा बना चुका है. इस जवाब में कोई दम नहीं रह गया है कि आरजेडी के शासन काल को जंगल राज कहा जाता था. उस दौर की तुलना में अपराध कम ही हो रहे हैं. यहां तो तुलना नीतीश के पहले, दूसरे और तीसरे शासन के बीच हो रही है.

 

24 नवंबर 2005 को सत्ता में आने के तुरंत बाद नीतीश ने अपराधियों की नकेल कसनी शुरू कर दी. असर अगले दिन से दिखने लगा. वह डर जो आम लोगों के दिल में था, भागकर अपराधियों के दिमाग में पैठ गया. अपहरण के धन से अमीर बने कई सरगनाओं ने दक्षिण के राज्यों का रुख किया. उसी दौर में राजधानी सहित राज्य के दूसरे बड़े शहरों में रात की गतिविधियां शुरू हो गईं. होटल, रेस्तरां और आइसक्रीम पार्लर देर रात तक खुलने लगे. बदमाशों के डर से बंद सिनेमा के नाइट शो भी चालू हो गए. दूसरे राज्यों में भाग गए कारोबारी लौटने लगे.

अपराध कम हुए तो विकास भी शुरू हुआ. सड़क और बिजली की हालत सुधरने लगी. लगा कि सबकुछ ढर्रे पर आ गया. सरकारी अफसर भी चैन की सांस लेने लगे थे क्योंकि बदले हुए निजाम में राजनीतिक नेता-कार्यकर्ता के भेष में कोई आदमी इन अफसरों को डरा-धमका नहीं पा रहा था. उसके पहले के शासन में तो आइएएस अफसर तक की उनके चैंबर में ही पिटाई हो चुकी थी.

क्यों बढ़ रहा है अपराधियों का मनोबल

राहत की बात यह है कि कानून-व्यवस्था की हालत में गिरावट के बावजूद चीजें हाथ से बाहर नहीं निकल गई हैं. पड़ताल हो रही है कि नीतीश के पहले कार्यकाल में वह कौन सा कदम था, जिसने अपराध के ग्राफ को कम किया. इसका जवाब भी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है. नीतीश की टीम में उन दिनों अभयानंद जैसे काबिल आईपीएस अफसर को तरजीह मिली हुई थी. सीएम खुद पुलिस अफसरों के साथ बैठकर अपराध नियंत्रण की योजना बनाते थे. उसी बैठक में स्पीडी ट्रायल की योजना बनी थी. सरकार की सहमति पर इसे लागू किया गया. पुराने मामलों को खंगाल कर निकाला गया. स्पीडी ट्रायल की रफ्तार देखिए-2005-10 के बीच 52343 अपराधियों को सजा दी गई. इनमें पूर्व सांसद और विधायक भी थे. 109 को सजा ए मौत दी गई. करीब 20 फीसदी अपराधियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई.

स्पीडी ट्रायल ने अपराधियों के मन में यह खौफ पैदा कर दिया कि अगर अपराध करेंगे तो बच नहीं पाएंगे. परिणाम सामने था. 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए 243 में से 206 सीट पर काबिज हो गया. यह लालू प्रसाद की 1995 के चुनाव की ऐतिहासिक कामयाबी पर भारी पड़ा, जब एकीकृत बिहार की 324 सदस्यीय विधानसभा में 167 सीटों पर लालू को सफलता मिली थी.

भूल गए स्पीडी ट्रायल

2010 की जबरदस्त चुनावी कामयाबी ने नीतीश का आत्मविश्वास बढ़ाया. लेकिन, धीरे-धीरे अपराध नियंत्रण का दावा जमीन से अधिक जुबानी रह गया. उनके दूसरे कार्यकाल में, जिसमें कुछ महीनों के लिए जीतनराम मांझी सीएम बन गए थे, स्पीडी ट्रायल की रफ्तार बेहद धीमी हो गई. 2010-15 के बीच इसमें 60 फीसदी से अधिक की गिरावट आ गई.

यह समझने वाली बात है कि विकास की अपेक्षाकृत ठीकठाक गति के बावजूद नीतीश की चुनावी सफलताएं धीमी क्यों पड़ने लगीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बमुश्किल दो सीटों पर उनके उम्मीदवार की जीत हुई. 2015 का विधानसभा चुनाव, जिसे नीतीश कुमार के लोग अपनी सबसे बड़ी जीत समझते हैं, उसका विश्लेषण भी उनके हक में नहीं जा रहा है. 2010 में 115 सीट जीतने वाले नीतीश चुनाव मैदान में जाने से पहले ही 14 सीट गंवा चुके थे. यानी उन्होंने तालमेल के तहत अपनी जीती हुई ये सीटें दूसरे दलों के लिए छोड़ दी. 101 सीटों पर उनके उम्मीदवार खड़े हुए. 71 पर जीत हुई. इनमें से भी एक जोकीहाट की सीट उपचुनाव में आरजेडी के पास चली गई. पांच साल में वो 115 से 70 विधायकों की संख्या पर आ गए. यह कैसी उपलब्धि हुई.

अपराध बनेगा चुनावी मुद्दा

आरजेडी के कथित जंगलराज को कोसने और उसके नाम पर वोट लेने का टोटका शायद अब नहीं चल पाएगा. वे बच्चे जो 2005 में पांच-छह साल के रहे होंगे, वो नीतीश कुमार के राजकाज में ही जवान हुए. उन्हें आरजेडी के जंगलराज के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. इनके मन में अगर अपराध को लेकर कोई अवधारणा बनती है तो यह नीतीश की चुनावी सेहत के लिए ठीक नहीं होगी.

बेशक नीतीश की यह छवि कभी नहीं बन पाई कि उन्होंने अपराधियों को संरक्षण दिया या उन्हें अपनी मंडली में बिठाकर महिमामंडित किया. लेकिन, सकल परिणाम के तौर पर ऐसी छवि का चुनाव के दिनों में बहुत मतलब नहीं रह जाता है. खासकर उस हालत में जबकि उनके सुधार के अधिक फैसले रोजगार सृजन पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं और बेरोजगारों को अपराध करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.

शराबबंदी बहुत अच्छी चीज है. लेकिन, इसने लाख से अधिक लोगों को रातोंरात बेरोजगार कर दिया. वायदे के बावजूद उनके लिए रोजगार के वैकल्पिक उपाय नहीं किए गए. इसी तरह बालू कारोबार में माफियागिरी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का बुरा असर मजदूरों और छोटे कारोबारियों पर पड़ा है. ये

आंकड़े बस दिल को थोड़ी राहत दे सकते हैं कि 2005 में जब जंगलराज चरम पर था, 3428 लोगों की हत्या हुई थी और 2017 में सिर्फ 2803 लोग ही मारे गए. इस साल के मार्च तक पुलिस रिकॉर्ड के हत्या वाले कालम में 667 का आंकड़ा दर्ज है. आखिर कभी तो नीतीश अपने अफसरों को कहें कि शराब पकड़ने के अलावा भी कई काम हैं.

शिवानन्द मेमोरियल चैरिटबल ट्रस्ट द्वारा पहला रक्त दान शिविर सेक्टर 45में आयोजित

 

आज शिवानन्द मेमोरियल चैरिटबल ट्रस्ट द्वारा पहला रक्त दान शिविर सेक्टर 45 सी के श्री सनातन धर्म मन्दिर में आयोजित किया गया। शिविर में लगभग 70 लोगों ने रक्तदान किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नगर निगम पार्षद श्रीमती चन्द्रवती शुक्ला ने ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री संजय चौबे के इस प्रयास की सराहना की और आशा जताई कि भविष्य में भी इसी तरह सामाजिक कल्याण में अपना योगदान देते रहेंगे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रवासी कल्याण संघ के अध्यक्ष श्री अविनाश राय ने की।

भारतीय वायुसेना के पूर्व फ्लाइट इंजीनियर , पूर्वांचल परिवार के शुभचिंतक एवम् समाज सेवी श्री प्रभु नाथ शाही ने भी कार्यक्रम में शिरकत की औऱ शिवानन्द मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट को इस सफल प्रयास के लिए बधाई दी।
शहर के जाने माने नागरिक समाज सेवक एवं व्यवसायी श्री अरबिंद दुबे, बिहार परिषद के अध्यक्ष श्री उमाशंकर पांडेय, श्री महेंद्र नाथ, श्री जितेंदर कुमार रंजन, श्री राकेश शर्मा,श्रीमति मीरा शर्मा, उमेश कान्त मिश्र ,चंडीगढ़ समस्या समाधान टीम के अलावा कई सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।
ट्रस्ट की ओर से मुख्य ट्रस्टी श्रीमति सरोज चौबे ने ब्लड बैंक सोसाइटी एवं रिसोर्स सेंटर के प्रति आभार व्यक्त किया, और मन्दिर प्रबन्ध के द्वारा किये सहयोग के लिए धन्यवाद किया।


 

पंचांग

विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – उत्तर
ऋतु – वर्षा
मास – ज्येष्ठ (द्विoशुद्ध)
पक्ष – शुक्ल
तिथि – त्रयोदशी
नक्षत्र – अनुराधा
योग – साध्य
करण – कौलव

राहुकाल :-
7:30 AM – 9:00 AM

🌞सूर्योदय – 05:25 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 19:25 (चण्डीगढ)
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🚩व्रत -🚩
सोम प्रदोष व्रत।
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चोघड़िया मुहूर्त- एक दिन में सात प्रकार के चोघड़िया मुहूर्त आते हैं, जिनमें से तीन शुभ और तीन अशुभ व एक तटस्थ माने जाते हैं। इनकी गुजरात में अधिक मान्यता है। नए कार्य शुभ चोघड़िया मुहूर्त में प्रारंभ करने चाहिएः-
दिन का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
अमृत 05:24 07:09 शुभ
शुभ 08:54 10:38 शुभ
लाभ 15:53 17:37 शुभ
अमृत 17:37 19:22 शुभ
रात्रि का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
लाभ 23:07 00:25 शुभ
शुभ 01:40 02:55 शुभ
अमृत 02:55 04:10 शुभ