कमलनाथ की सरकार बनवाने में मददगार अब खफा हैं

मध्य प्रदेश सरकार में 28 विधायकों ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ले ली है, जिसमें मंत्रिमंडल में एक भी मंत्री गैरकांग्रेसी नहीं हैं

बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन के गाजे बाजे लेकर इकट्ठा हुईं राजनीतिक पार्टियों अब खुद ही नहीं एकजुट हो पा रही हैं. मध्य प्रदेश सहित तीन राज्यों में कांग्रेस भले ही जीत गई हो, लेकिन महागठबंधन में शामिल पार्टियों को एकजुट नहीं कर पा रही है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के एक फैसले ने महागठबंधन की अहम कड़ी बनकर उभर रही समाजवादी पार्टी को नाराज कर दिया. समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने बयान दिया है कि बीजेपी के खिलाफ उत्तर प्रदेश में बनने जा रहा गठबंधन गैर-कांग्रेसी होगा.

कमलनाथ के कैबिनेट एक भी गैर-कांग्रेसी मंत्री नहीं

दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार में 28 विधायकों ने कैबिनेट मंत्री की शपथ ले ली है. इस मंत्रिमंडल में एक भी मंत्री गैरकांग्रेसी नहीं हैं. कमलनाथ ने ऐन मौके पर समर्थन देने वाली एसपी और बीएसपी के भी विधायकों को शामिल नहीं किया.

मंत्रिमंडल के गठन के बाद से ही मंत्री नहीं बनने वाले विधायकों की नाराजगी सामने आनी शुरू हो गई थी. पहले कांग्रेस के कई विधायकों के समर्थकों की नाराजगी सामने आई, उसके बाद अब एमपी में कांग्रेस को समर्थन देने वाली समाजवादी पार्टी ने भी आंखें दिखा दी हैं.

अब अगर मध्य प्रदेश की नई कैबिनेट की बात करें तो कई कारण हैं कि कमलनाथ ने समाजवादी पार्टी के एकमात्र विधायक को कैबिनेट में जगह क्यों नहीं दी. दरअसल, मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के लिए 116 विधायक चाहिए थे, कांग्रेस के पास 114 विधायक थे, जबकि एसपी के एक और बीएसपी के दो विधायक थे. नतीजों के ही दिन दोनों पार्टियों ने कांग्रेस को बिना शर्त समर्थन देने का ऐलान कर दिया था. इसके अलावा चार निर्दलीय विधायकों ने भी समर्थन दिया था.

पहले ही एसपी-बीएसपी और निर्दलियों को कैबिनेट से बाहर रखने वाली थी सरकार?

कमलनाथ ने सरकार गठन के बाद कहा था कि एसपी और बीएसपी ने समर्थन के एवज में कोई मांग नहीं की है, ना ही किसी निर्दलीय विधायक ने मंत्रिपद की मांग की है. कमलनाथ के इस बयान के बाद ही ऐसी संभावना हो गई थी कि शायद ही मंत्रिमंडल में गठबंधन के साथी शामिल होंगे.

वहीं, अगर कमलनाथ मंत्रिमंडल में सामाजवादी पार्टी के विधायक को शामिल करते, तो बीएसपी की अनदेखी आसान नहीं होती. इसके अलावा निर्दलीयों को भी शामिल करना पड़ता, क्योंकि चार निर्दलीयों में से दो तो कांग्रेस के ही बागी हैं. यही कारण है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सिर्फ अपनी ही पार्टी के विधायकों को सरकार में शामिल करना उचित समझा.

हालांकि, अब मामला बढ़ता जा रहा है. कांग्रेस के ही विधायक बने जयस संगठन के मुखिया हीरालाल आलावा की बगावत के बाद अखिलेश यादव ने भी नाराजगी दिखाई है. अब देखना दिलचस्प होगा कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस इन संकट से कैसे पार पाती है. हालांकि, अखिलेश यादव मध्य प्रदेश में अपने हाथ खींच नहीं सकते, क्योंकि उन्होंने समर्थन देने का फैसला खुद ही किया था.

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