बुलंद शहर की हिंसा

—-{ नसीरुद्दीन शाह ने की आवाज़ बुलंद }—

Er. S. K. Jain

बुलंदशहर की हिंसा पर अपनी आवाज़ बुलंद करते हुए नसीरुद्दीन शाह ने टीवी पर कहा,”मुझे अपने बच्चों के बारे में सोच कर बड़ी फिक्र होती है। कल को किसी ने भी इनसे पूछा की तुम हिन्दू हो या मुसलमान तो मेरे बच्चों के पास कोई जवाब नहीं होगा, क्योंकि मैंने उन्हे न हिन्दू बनाया न मुसलमान। मुझे हालात जल्दी सुधरते तो नज़र नहीं आ रहे। मुझे दर नहीं लग रहा बल्कि गुस्सा आ रहा है। में चाहता हूँ की हर इंसान को गुस्सा आना चाहिए।

नसीर मानते हैं की इंसान की हत्या कानूनन जुर्म है। क्या वह यह नहीं मानते की गौ हत्या भी कानूनन अपराध है। वह गौ हत्या करने वाले कसाइयों के खिलाफ नहीं बोलते, लेकिन गौ हत्या के विरोध में बोलने वालों के खिलाफ बोलते हैं। क्या कार्न है कि 21 गायों के काटने के बारे में कोई नहीं बोलता लेकिन असहिष्णुता के नए एपिसोड को लेकर नसीरुद्दीन शाह सामने हैं।

जिस नसीरुद्दीन शाह को लोग हीरो मानते थे, अभिनेता मानते थे, आज उसे गाली दे रहे हैं, क्योंकि उनकी सच्चाई सामने आ गयी है। कृष्ण जी ने कहा था कि यदि हम एक गौ के लिए अपने कई जन्म भी कुर्बान कर दें तो भी काफी नहीं हैं। जिस सुमित कि हत्या हुई उस सुमित कि बहन अपने भाई कि हत्या पर मात्र 15 सेकंड बोली शेष समय उसने गौहत्या पर अपना गुस्सा ज़ाहिर किया, उसके मटा पिता भी अपने बेटे पर कम और गौरक्षा पर ज़्यादा बोले। थैलियों का दूध पीने वाले नसीरुद्दीन शाह को क्या पता कि इस राष्ट्र में गाय पर श्रद्धा रखने वाले 100 करोड़ से भी अधिक का एक सभ्य समाज है। अगर 21 गायों को काटा नहीं गया होता तो दंगों कि कोई संभावना ही नहीं थी। नसीर पाइसोंकी खातिर कुछ भी संवाद बोल सकते हैं यह एचएम विज्ञापनों के माध्यम से देख ही सकते हैं। लोगों का कहना है कि ऐसे लोगों को समुद्र में फेंक देना चाहिए, अगर वह तैर सकते हैं तो तैर कर पाकिस्तान चले जाएँ नहीं तो समुद्र के नीचे ता-कयामत ओसामा – बिन –लादेन के पास आराम फर्माएं।

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1984 में हजारों लोगों को मारा गया, कश्मीर में हिन्दू पंडितों को मारा गया और उन्हे काश्मीर से विस्थापित कर दिया गया, तब नसीरुद्दीन शाह कि आवाज़ नहीं निकली। नसीरुद्दीन शाह मुंबई ब्लास्ट के आरोपी याक़ूब मेनन के लिए रात 2 बजे खुलने वाले दरवाजों पर भी कुछ नहीं बोले, कोई प्रतिक्रिया नहीं। जिस देश में रहते हैं, जिसका अन्न खाते हैं, जहां से वह शोहरत दौलत कमाते हैं उसी के साथ गद्दारी करते हैं। आम जन का कहना है कि शाहरुख खान हो, आमिर खान या नसीरुद्दीन शाह सब के सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं। 1983 के बीएमबी ब्लास्ट, 1984 के सीख दंगोन के वक्त नसीरुद्दीन नहीं जागा। अब जाग गया है क्योंकि 2018 जा रहा है ओर 2019 में चुनाव आ रहे हैं।शायद आने वाले चुनावों कि बानगी यह नाटक रचा जा रहा है। लोगों कि प्रतिक्रिया आ रही है कि यह नसीरुद्दीन नहीं जहरुद्दीन है, देश कि फिजा में जहर घोलने का काम कर रहा है। नसीरुद्दीन शाह ने ट्वेत कर कहा था, “एक शख्स जो काश्मीर में नहीं रहता, उसने काश्मीरी पंडितों कि लड़ाई शुरू कर दी और खुद को विस्थापित कर दिया।“ उनका यह ट्वीट काश्मीरी पंडितों कि लड़ाई लड़ने वाले अनुपम खेर के लिए किया गया है। आज वह खुद भी तो मुंबई में रह कर बुलद शहर वालों के लिए लड़ रहे हैं। फिल्मी पर्दे पर अपनी सोच बदलने वाले असल जिंदगी में भी अपनी सोच कैसे बदल लेते हैं, देखने वाली बात है।

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