सभी विवादों के बाद अब एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सुलझता नजर आ रहा है. लगता है पासवान का दबाव काम कर गया है
शुक्रवार शाम बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के दिल्ली पहुंचने से पहले एनडीए की बिहार में दूसरी बडी घटक दल एलजेपी के पैंतरे ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. लेकिन, सूत्रों के मुताबिक अब बात बन गई है. शनिवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, एलजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान और उनके बेटे सांसद चिराग पासवान की मौजूदगी में बिहार में सीट बंटवारे का औपचारिक तौर पर ऐलान किया जा सकता है.
सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी के खाते में लोकसभा की 6 सीटें गई हैं जबकि, बीजेपी अपने कोटे से राज्यसभा की एक सीट एलजेपी अध्यक्ष रामविलास पासवान को देगी. गौरतलब है कि जेडीयू और बीजेपी ने पहले ही बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी थी. लेकिन, अब पासवान के साथ बन जाने और उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए से बाहर होने के बाद तस्वीर साफ हो गई है.
एलजेपी को मिलेगी छह सीटें!
सूत्रों के मुताबिक, बिहार में तीनों दलों के साथ सीट शेयरिंग के फॉर्मूले के मुताबिक, 40 लोकसभा की सीटों में से बीजेपी और जेडीयू अपने पहले से तय समझौते के मुताबिक, 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, जबकि, 6 सीटें एलजेपी खाते में जाएगी. इसके अलावा बीजेपी राज्यसभा की एक सीट एलजेपी को देगी.
दूसरे फॉर्मूले के मुताबिक, एलजेपी को मिलने वाली लोकसभा की एक सीट बीजेपी की तरफ से यूपी में दी जाएगी. इस तरह बीजेपी को बिहार मे एलजेपी की एक सीट मिल जाएगी और पार्टी 18 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इस तरह दूसरे फॉर्मूले के मुताबिक, बिहार में बीजेपी के खाते में 18, जेडीयू के खाते में 17, एलजेपी के खाते में लोकसभा की 5 और एलजेपी को यूपी में लोकसभा की एक सीट जबकि राज्यसभा की एक सीट मिलेगी.
हालांकि, यह सबकुछ इतनी आसानी से नहीं हुआ. दो दिनों की मशक्कत और बैठकों के लगातार कई दौर के बाद बात बन पाई है. एलजेपी संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान की तरफ से ट्वीट कर सीट बंटवारे को लेकर अपनी नाराजगी दिखाई गई थी. चिराग पासवान ने ट्विटर पर लिखा था कि टीडीपी व आरएलएसपी के एनडीए गठबंधन से जाने के बाद एनडीए गठबंधन नाजुक मोड़ से गुजर रहा है. ऐसे समय में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन में फिलहाल बचे हुए साथियों की चिंताओं को समय रहते सम्मानपूर्वक तरीके से दूर करें.
चिराग ने एक दूसरे ट्वीट में लिखा था कि गठबंधन की सीटों को लेकर कई बार बीजेपी के नेताओं से मुलाकात हुई लेकिन अभी तक कुछ ठोस बात आगे नहीं बढ़ पाई है. इस विषय पर समय रहते बात नहीं बनी तो इससे नुकसान भी हो सकता है.
कुशवाहा के जाने के बाद चिराग का दबाव
चिराग की तरफ से बीजेपी पर दबाव बढ़ाने की कोशिश के तौर पर इसे देखा गया था. इसके अलावा राम मंदिर पर बयान देते हुए भी चिराग पासवान ने इसे एक पार्टी का एजेंडा बताया था न कि एनडीए का. इस तरह के बयानों से बीजेपी असहज महसूस कर ही रही थी कि चिराग पासवान की नोटबंदी पर वित्त मंत्री अरुण जेटली को लिखी गई उस चिट्ठी की बात सबके सामने आ गई.
दरअसल, इस चिट्ठी की टाइमिंग ही चर्चा का केंद्र बन गई. भले ही इस चिट्ठी की जानकारी 20 दिसंबर को मीडिया के सामने आई लेकिन, इसे पांच राज्यों के चुनाव परिणाम आने और तीन राज्यों में बीजेपी की हार के अगले ही दिन 12 दिसंबर को लिखा गया था.
उधर, सूत्रों के मुताबिक, रामविलास पासवान पर कांग्रेस की तरफ से भी पासा फेंकने की कोशिश की जा रही थी. लिहाजा यह सवाल उठने लगे थे कि इस तरह बीजेपी और अपनी ही सरकार को लेकर दिखाए जा रहे तेवर का क्या मतलब है? क्या रामविलास पासवान एक बार फिर से दूसरा विकल्प तलाश रहे हैं? क्या पासवान भी कुशवाहा की तरह पाला बदलने की तो नहीं सोच रहे?
दो दिनों में बीजेपी ने सुलझाया मामला
लेकिन, इन तमाम सियासी गतिविधियों के बाद बीजेपी तुरंत हरकत में आई. दो दिनों तक चली कई दौर की बातचीत के बाद आखिरकार बात बनती नजर आ रही है. दो दिनों तक रामविलास पासवान और चिराग पासवान की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, वित्त मंत्री अरुण जेटली, बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव और बिहार बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय के साथ कई दौर की बातचीत हुई, जिसके बाद सभी मुद्दों को सुलझाने में बीजेपी सफल हो पाई है.
हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि बीजेपी चिराग पासवान की तरफ से सार्वजनिक तौर पर अपनी बात रखने के तरीके से खुश नहीं थी, लेकिन, बीजेपी की बिहार में दूसरी सहयोगी जेडीयू का कहना है कि एनडीए के भीतर किसी फोरम के नहीं होने के चलते इस तरह की नौबत आ रही है.
फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में जेडीयू के प्रधान महासचिव और प्रवक्ता के सी त्यागी ने कहा, ‘चिराग ने जो मुद्दे उठाए वो अंदर ही हो जाने चाहिए थे, लेकिन, एनडीए-1 की तरह एनडीए-2 में कोई समन्वय समिति नहीं है, जिससे ऐसा हो रहा है.’ त्यागी ने कहा, ‘पहले अटली जी, आडवाणी जी और जॉर्ज साहब जैसे नेता मिलकर सभी मुद्दों को सुलझा लेते थे.’ उन्होंने एनडीए के भीतर भी समन्वय समिति बनाने की मांग की.
लेकिन, इन सभी विवादों के बाद अब एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सुलझता नजर आ रहा है. लगता है पासवान का दबाव काम कर गया है. पासवान को अपने पाले में बरकरार रखकर लगता है बीजेपी ने मौसम के रूख को अपनी तरफ मोड़ने में सफलता हासिल कर ली है.