Thursday, December 26


कमलनाथ के खिलाफ मुख्तियार सिंह नाम के शख्स द्वारा हलफनामा दिया गया था. दंगा मामलों में बंद कर दिए गए 232 मामलों से यह भी एक है. 

वह 1984 में कांग्रेस के लोकसभा सांसद थे, जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और जब उन्होंने दंगाई हत्यारी भीड़ की अगुवाई की थी.

वह 1 नवंबर 1984 को गुरुद्वारा रकाबगंज में मौजूद थे, जब दो सिख जलाए गए थे. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि वह उस भीड़ की अगुवाई कर रहे थे, जिसने दो सिख पुरुषों की हत्या की दी


दिल्ली में सिख विरोधी दंगों के 34 साल बाद, हाई कोर्ट ने कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार को दोषी ठहराया है. यह एक कठोर फैसला है जो दिल्ली की जनता के लिए दशकों पहले दे दिया जाना चाहिए था. सज्जन को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है.

सिख विरोधी दंगों में उनकी भागीदारी, निर्दोष सिखों की हत्या करने और उनकी दुकानों व घरों को लूटने वालों की अगुवाई करने का दाग 1984 के बाद से हमेशा उन पर रहा, लेकिन यह कांग्रेस नेतृत्व को उन्हें महत्वपूर्ण पद देने में कभी रुकावट नहीं बना. वह कांग्रेस पार्टी के टिकट पर 1991 में 10वीं लोकसभा और 2004 में 14वीं लोकसभा के लिए चुने गए. वह 1984 में कांग्रेस के लोकसभा सांसद थे, जब इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई थी और जब उन्होंने दंगाई हत्यारी भीड़ की अगुवाई की थी.

इस तरह वह कांग्रेस के कोई साधारण नेता नहीं हैं. उन्होंने एच.के.एल. भगत (स्वर्गीय) और जगदीश टाइटलर के साथ पार्टी की दिल्ली इकाई को नियंत्रित किया. ये तीनों बाहरी दिल्ली, उत्तरी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली के सांसद थे. दंगों में उनकी भागीदारी के बारे में आम लोगों के जेहन में कोई शक नहीं था. कहते हैं कि न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के समान है. लेकिन निचली अदालत द्वारा सज्जन कुमार को बरी करने के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले में पलट देने से पीड़ितों के परिवारों के लिए देरी से ही सही, इंतजार का अंत हुआ.

कांग्रेस नेता कमलनाथ संजय गाधी के अच्छे मित्र थे (फोटो: फेसबुक से साभार)

दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है. यह ऐसे समय में आया है जब पार्टी तीन हिंदीभाषी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी से सत्ता छीनने के बाद उत्सव के मूड में थी.

यह फैसला 1984 के नरसंहार से कांग्रेस के सीधे संबंध का पहला प्रत्यक्ष और निर्णायक सबूत पेश करता है. अब तक, कांग्रेस के प्रतिद्वंद्वियों और आलोचकों के पास राजीव गांधी के बयान के रूप में सिर्फ एक परिस्थितिजन्य सबूत था, जिसमें उन्होंने कहा था, ‘कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है, लेकिन जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो धरती थोड़ा हिलती है.’ अब इस टिप्पणी को नया अर्थ मिलेगा, नए राजनीतिक अर्थ के साथ, खासकर तब जबकि संसदीय चुनाव मात्र चार महीने दूर हैं.

कैसी विडंबना है कि उसी समय जब हाईकोर्ट आरोपी सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए अपना फैसला सुना रहा था, एक और प्रमुख नेता कमलनाथ जिनका नाम दिल्ली के 1984 के सिख दंगों में आया था, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने की तैयारी कर रहे थे. हाईकोर्ट द्वारा ऐतिहासिक फैसला सुनाए जाने के तीन घंटे बाद अकाली दल, बीजेपी के एक वर्ग और सिख समुदाय के विरोध प्रदर्शन के बीच भोपाल में एक सार्वजनिक समारोह में कमलनाथ ने गवर्नर आनंदीबेन पटेल के सामने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.

हालांकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई पुख्ता आपराधिक मामला नहीं है, लेकिन 1984 का दाग उनकी स्थिति को थोड़ा असहज बना रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी ने कई मामलों को फिर से खोल दिया है. दंगों के मामलों को दोबारा खोलने और मुकदमों की समीक्षा के चलते ही बीते कुछ हफ्तों में कई आरोपी दोषी साबित हुए हैं. कमलनाथ यही ख्वाहिश करेंगे कि उनका मामला फिर से ना खोला जाए.

कमलनाथ 1984 में पहली बार सांसद बने थे. वह 1 नवंबर 1984 को गुरुद्वारा रकाबगंज में मौजूद थे, जब दो सिख जलाए गए थे. कुछ लोग आरोप लगाते हैं कि वह उस भीड़ की अगुवाई कर रहे थे, जिसने दो सिख पुरुषों की हत्या की दी, लेकिन कमलनाथ का बचाव यह है कि वह तो भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे.

अपनी पुस्तक ‘1984: द एंटी-सिख राइट एंड आफ्टर’ में पत्रकार संजय सूरी ने विस्तार से उस दिन की घटना का आंखोंदेखा हाल बयान किया है, ‘मुझे गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब के बाहर चीखती भीड़ के साथ कमलनाथ के दिखने की उम्मीद नहीं थी, जहां अभी-अभी दो सिखों को जिंदा जला दिया गया था.

लेकिन वह वहां थे, दमकते सफेद कुर्ता-पाजामे में थोड़ा सा किनारे, लेकिन सफेद अंबेसडर कार से बहुत दूर नहीं, जिसकी छत पर लाल बत्ती लगी थी और बंपर पर छोटा सा राष्ट्रध्वज लगा था, जो कि इनके मंत्री पद का कोई शख्स होने या कम से कम आधिकारिक रूप से महत्वपूर्ण शख्स होने की गवाही दे रहा था… यह 1 नवंबर की दोपहर थी, इंदिरा गांधी की हत्या एक दिन पहले हुई थी.

उनका पार्थिव शरीर गुरुद्वारा रकाबगंज के करीब तीन मूर्ति भवन में लोगों के दर्शन के लिए रखा था. सुबह से जमा हो रहे शोकाकुल समर्थक रोते हुए कह रहे थे, ‘खून का बदला खून.’ गुरुद्वारा रकाबगंज तीन मूर्ति भवन से निकटतम निशाना था, जहां खून के बदले की मांग को कार्रवाई में बदला जा सकता था. वहां सिखों का मिलना पक्का था, और हमले के लिए गुरुद्वारा तो था ही…’

कमलनाथ के खिलाफ मुख्तियार सिंह नाम के शख्स द्वारा हलफनामा दिया गया था. दंगा मामलों में बंद कर दिए गए 232 मामलों से यह भी एक है. अब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ इस मामले सहित इन सभी मामलों को फिर से खोलने की नई मांग उठाई जा रही है.

इंदिरा गांधी की हत्या और दंगों के फौरन बाद हुए संसदीय चुनावों में कमलनाथ फिर से चुने गए. तब से उन्होंने कभी पीछे पलट कर नहीं देखा, कई बार संसद के लिए चुने गए, यूपीए-1 और यूपीए-2 में वाणिज्य और उद्योग, भूतल परिवहन, संसदीय मामले, शहरी विकास सहित विभिन्न मंत्री पदों पर रहे. मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की राह में ज्योतिरादित्य सिंधिया की चुनौती को उन्होंने आसानी से निपटा दिया. कमलनाथ ने जिंदगी में जिस दिन अपनी सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा को पूरा किया, उसी दिन 1984 के दंगों का प्रेत उनके सिर पर मंडराने के लिए वापस लौट आया है.