यह देखने में काफी खराब लगता है कि नव निर्वाचित विधायकों का कहना है कि सीएम चुनने का फैसला ‘पार्टी हाई कमांन’ का होगा
बीजेपी शासित तीन राज्यों में कांग्रेस की शानदार जीत को करीब 36 घंटे हो गए हैं लेकिन मुख्यमंत्रियों के चयन में हो रही देरी की वजह से ऐसा लग रहा है जैसे पार्टी के युवा अध्यक्ष राहुल गांधी लोगों में अपनी दिलचस्पी को भुनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. राहुल के पास यह सबसे सही मौका था जब वह नरसिम्हा राव की तरह फैसला लेकर कांग्रेस की लोकतांत्रिक चमक को बढ़ा सकते थे.
राहुल गांधी भोपाल, जयपुर और रायपुर में इसपर जोर देकर आंतरिक पार्टी लोकतंत्र और वास्तविक विकेंद्रीकरण का प्रदर्शन कर सकते थे. 1993 में मध्यप्रदेश में पीवी नरसिम्हा राव ने भी यही किया था.
इस तरह के विचार अलोकतांत्रिक हैं
राव अपने दोस्त श्यामा चरण शुक्ला को उम्मीदवार बनाने के लिए काफी उत्सुक थे. लेकिन अर्जुन सिंह और कमलनाथ के सामने शुक्ला टिक नहीं पाए. राव ने पर्यवेक्षक सीताराम केसरी और गुलाम नबी आजाद से ‘स्थिति को समझते हुए योजना बनाने के लिए’ कहा और दिग्विजय को अगले दस सालों तक राज्य चलाने के लिए कहा.
लोगों ने अपनी इच्छा के प्रतिनिधियों को चुनकर मंशा साफ जाहिर कर दी है. इसलिए राज्य विधानसभा चुनावों और परिणाम के बाद ‘कार्यकर्ता’ की राय मांगना और यह कहना कि सीएम कौन बनेगा यह फैसला पार्टी हाई कमांन करेंगे, इस तरह के विचार अलोकतांत्रिक हैं.
ऐसी स्थिति में किसी तरह के ओपीनियन पोल या फिर सैंपल सर्वे की कोई जरूरत नहीं है. यदि टीम राहुल वास्तव में ऐसा करना चाहती थी तो कमल नाथ को मध्यप्रदेश, सचिन पायलट को राजस्थान और भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ कांग्रेस इकाइयों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी देने से पहले ही ऐप-संचालित सर्वे या फिर इस तरह का सर्वे कर लेना चाहिए था.
बड़ी संख्या में देशवासियों ने राहुल से उम्मीदें लगा रखी हैं और यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि ‘न्यू इंडिया’ को लेकर राहुल का आईडिया क्या है. कृषि संकट से निपटने के लिए किसानों की कर्जमाफी एक अल्पकालिक समाधान हो सकता है लेकिन पूर्ण समाधान नहीं हो सकता है.
टीएस सिंहदेव को नई दिल्ली बुलाया गया
कृषि संकट से निपटने और उसे लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए पूर्ण समाधान क्या हैं? नई नौकरियां, विनिवेश के मुद्दे या फिर प्राकृतिक संसाधनों को लीज पर रखना या बेचना इन सभी मुद्दों का समाधान निकालना होगा. एक मंच पर राहुल ने कहा था, ‘भारत अपने युवाओं को एक विजन नहीं दे सकता है अगर वह उन्हें नौकरी नहीं दे सकता है.’
लोकतांत्रिक मंच पर भोपाल, जयपुर और रायपुर को लेकर राहुल जो भी फैसला लेते हैं उसपर सभी की नजर होगी क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष पहले ही पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को प्रदर्शित करने का एक मौका खो चुके हैं.
यह देखने में काफी खराब लगता है कि नव निर्वाचित विधायकों का कहना है कि सीएम चुनने का फैसला ‘पार्टी हाई कमांन’ का होगा और सचिन पायलट, अशोक गहलोत, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, भूपेश बागेल, चरण दास महंत, तमराध्वज साहू और टीएस सिंहदेव को नई दिल्ली बुलाया गया है.
एक सवाल यह भी उठता है कि एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल को भोपाल और जयपुर क्यों भेजा गया था. यह भी काफी परेशान करने वाली बात है कि गहलोत, जिन्हें हाल ही में पार्टी संगठन के प्रभारी एआईसीसी के महासचिव नियुक्त किया गया था, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हैं, जबकि उन्हें कुछ महीने पहले ही 2019 लोकसभा चुनावों के लिए मैक्रो स्तरीय प्रबंधन और रणनीति बनाने के लिए चुना गया था.