बीएसपी की जीत के मायने …..


बीएसपी ने राजस्थान में 2013 के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है. यहां 4.0 फीसदी वोट के साथ उसे 6 सीटें हासिल हुई हैं


राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों में इस बार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इसके बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं. इससे हटकर एक अन्य पार्टी भी है जिसे मिली तो 6 सीटें हैं, लेकिन ये पिछली बार के मुकाबले 2 गुना है. इन चुनावों में बीएसपी को 6 सीटों पर जीत मिली है.

जीतने वाले उम्मीदवारों में राजस्थान की करौली सीट से लखन सिंह, नदबाई से जोगिंदर सिंह अवाना, नगर से वाजिब अली, उदयपुर वटी से राजेंद्र सिंह गोधा, तिजारा से संदीप कुमार और किशनगढ़बास से दीप चंद हैं. अपनी जीत के बाद दीप चंद ने इलाके में विजय जुलूस निकाला और जनता से सारे वादे पूरा करने का भी वादा किया.

बीएसपी ने राजस्थान में 2013 के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है. यहां 4.0 फीसदी वोट के साथ उसे 6 सीटें हासिल हुई हैं, जबकि पिछले चुनाव में 3.37 फीसदी मत के साथ उसे महज सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. हालांकि वो 2008 के अपने सबसे अच्छे प्रदर्शन को नहीं दोहरा सकी है. तब उसके खाते में 7.60 फीसदी वोट के साथ 6 सीटें आई थीं. पार्टी महासचिव राम अचल राजभर का कहना है कि कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की इसलिए उसे हर वर्ग के लोगों का समर्थन मिला.

इन चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन का पार्टी में जान फूंकने वाला भी साबित हो सकता है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों से शुरू हुई पार्टी की दुर्गति अभी तक लगातार जारी थी. यूपी में, जहां पार्टी का सबसे मजबूत जनाधार है, पिछले लोकसभा में पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था तो जख्मों पर नमक छिड़का विधानसभा चुनावों ने. 18 सीट जीतकर पार्टी इस हैसियत में भी नहीं बची कि अपना एक सांसद राज्यसभा भेज सके.

अब राजस्थान में 6 सीटों से मिली संजीवनी का इस्तेमाल मायावती ने भविष्य की राजनीति के लिए करना भी शुरू कर दिया है. दरअसल कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से थोड़ा पीछे रह गई. मायावती ने बिना समय गंवाए कांग्रेस को दोनों राज्यों में समर्थन देकर सिर्फ तात्कालिक संकट दूर नहीं किया बल्कि 2019 की रणभेरी से पहले ही एक नए गठबंधन की सुगबुगाहट भी तेज कर दी है.