आस्थाओं के भंवर में मानवता

इंजीनियर एस॰ के॰ जैन 

शिर्डी का साईंमंदिर विवादों के घेरे में

मानव इस पृथ्वी पर कब और कैसे प्रकट हुआ कोई नहीं जानता। बताया जाता है की आदि काल में मानव जानवरों की तरह झुंडों में रहा करता था। धीरे धीरे मानव के मस्तिष्क ने बाकी सभी प्राणियों की तुलना में अधिक विकास किया। परिवारों ने रूप लिया और एक विकसित समाज बना। तब से मानव एक सभय प्राणी कहा जाने लगा। आज मनुष्य का मस्तिष्क वैज्ञानिकों की दृष्टि में ब्रह्मांड के बाद सबसे पेचीदा जैविक वस्तु माना जाता है। हलकी मनुष्य की उत्पत्ति ब्रह्मांड के बनने के बाद ही हुई है, ऐसा माना जाता है। बावजूद इसके मनुष्य का मस्तिष्क ब्रह्मांड के रहसय जानने में स्व्यं ही अग्रणी हुआ जा रहा है।

आज के न्यूटन कहे जाने वाले वैज्ञानिक स्वर्गीय स्टीफन हाकिन्स ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में कई वैज्ञानिक खोजें कीं हैं। लेकिन अलावा इसके मनुष्य ने अपने आपको आस्थाओं के भँवर में उलझा लिया है। मान्यताओं, धारणाओं और अंधविश्वासों के चलते मानवता ने अपने आपको बाँट लिया है, जिसके फलस्वरूप इस धरती पर माने जाने वाले कई धर्मों ने जन्म लिया और लोग उनके अनुयायाई बनते चले गए। धर्मों के अंदर भी अलग अलग समुदायों ने अपनी जगह बनाई, वैचारिक बौद्धिकता आपस में टकराने लगी और विवाद खड़े होते गए।

आजकल महाराष्ट्र में स्थित शिर्डी आ साइन मंदिर विवादों के घेरे में है। साइन के नाम पर मज़हब और धर्म की राजनीति अपनी चरम सीमा पर है। ख़बर है की साईं बाबा संस्थान के टीआरएसटी पर आई गंभीर आरोप लगे हैं कि इसका भगवाकरण हो रहा है। शिर्डी से लाखों करोड़ों लोगों कि भावनाएं जुड़ीं हैं, हर रोज़ हजारों लोग साईं बाबा के दर्शनार्थ शिर्डी पहुँचते हैं। आस्था के इस केंद्र पर कई आरोप लगे जो कि इस प्रकार हैं:-

  1. शिर्डी के इस मंदिर की कई चीजों को भगवा रंग में रंगा जा रहा है। ट्रस्ट ने कहा है की नीले और सफ़ेद रंग की चीज़ें जल्दी गंदी हो जातीं हैं इसीलिए भगवा रंग किया जा रहा है वैसे तो रंग किसी की बपौती नहीं होते, फिर भी नीला, हारा और भगवा रंग कुछ एक समुदायों की पहचान मानी जाती है।

  2. साईं बाबा की समाधि के शताब्दी समारोह पर इसी वर्ष बनाए गए मुख्य स्तम्भ पर एक त्रिशूल है और इस पर ॐ चिन्हित है। ट्रस्ट का कहना है कि यह साईं के एक भक्त ने भेंट किया है, इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए, जबकि औ, और त्रिशूल भारत के सबसे बड़े समुदाय कि पहचान हैं।

  3. “सबका मालिक एक” के संदेश को बदल कर “ॐ सरी साईं नारायण नाम:” कर दिया गया है। मैनेजमेंट का कहना है कि “सबका मालिक एक” संदेश अभी भी कई जघों पर सुनहरी अक्षरों में लिखा है।

  4. चौथा आरोप यह है कि वहाँ मौजूद द्वारका मई मंदिर मस्जिद बोर्ड पर मस्जिद शब्द कोछोटे आकार में लिखा गया है, ट्रस्ट का कहना है कि मंदिर और मस्जिद शब्द का साइज़ एक ही है।

इन विवादों का सच का है यह तो वक्त ही बतलाएगा। हमारे एष के अलग अलग धर्मों के लोग अपनी अपनी मान्यताओं के साथ श्रद्धा रखते हैं। साईं बाबा के श्रद्धालु सभी धर्मों में मौजूद हैं। भगवाकरन का आरोप लगाने वालों का कहना है कि संस्था के स्वरूप को ही बदल दिया गया है। इसमें एक धर्म को प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है। बाबा जिस मस्जिद में आए थे उसी मस्जिद को द्वारका माई कहा जाता है।

शताब्दी वर्ष ए दौरान पूजा स्थल पर त्रिशूल और ॐ के निशान मौजूद हैं। उस पर विवाद यह है कि यहाँ सभी धर्मों के निशान होने चाहियेँ। शिरी के साईं बाबा म्यूसियम में राखी गईं कई वस्तुओं पर ॐ के निशान मौजूद हैं। लेकिन ट्रस्ट पर आरोप लगाने वालों के विचार अलग हैं, कहा यह भी जाता है कि साईं बाबा द्वारका माई में अपने भक्तों द्वारा कुरान भी सुनते थे। लेकिन अब यहाँ कुरान शरीफ का पाठ बंद हो ज्ञ है और अः भी कहा जाता है कि यह स्थान कुरान पढ़ने के लिए उचित नहीं है। आरोप यह भी लगाया जा र्हहा है कि इस पर एक ही राजनाइटिक दल का वर्चस्व है, इसीलिए यह सब हो रहा है। लेकिन संस्थान के ट्रस्टी डॉ॰ राजेन्द्र सिंह ने इन आरोपों का खंडन किया है। उनका कहना है कि बाबा के ओनोन तरफ लिखा “सबका मालिक एक है” कहीं भी हटाया नहीं गया है। द्वारका माई को द्वारका माई ही पुकारा जाता है। न तो उसे मंदिर और न ही मस्जिद कहा जाता है। यह स्थान धर्म निरपेक्ष, पंथ निरपेक्ष और जाती निरपेक्ष है। संस्था के मुखा कार्यकारी अधिकारी अग्रवाल जी ने भी इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है। कई लोगों का मानना है कि संस्थान में किसी के लिए भी कोई रोक टॉक नहीं है। खाने के लंगर से लेकर प्रसाद तक किसी भी हरम के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।

मंदिर परिसर में साईं भक्त अब्दुल बाबा कि मज़ार भी है। यहाँ हिन्दू मुस्लिम और सीख समेत सभी आते हैं अब्दुल बाबा साईं के साथ 26 वर्षों तक रहे थे। ‘नज़ीर खान’ अब्दुल बाबा कि चौथी पीढ़ी के हैं जो मज़ार की सेवा कर रहे हैं। अब्दुल बाबा के वंशज नज़ीर खान का कहना है कि संस्थान पर आरोप लगाने वाले लोग एक खास विचारधारा से पीड़ित हैं, भक्तों का इससे कोई सरोकार नहीं है। साईं के ऐतिहासिक जीवन पर लोगों में मतभेद हो सकते हैं और लोगों को साईं बाबा कि शिक्षाओं पर ध्यान देने कि ज़रूरत है।

साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट  ने अपनी वेब साइट में साइनबाबा को भारत के महान संतों में से एक बताया है साईं का मतलब होता है साक्षात ईश्वर। साईं शिरडी में ही पीआरकेटी हुए और जीवन भर शिरडी ही में रहे। वर्ष 1918 में समाधि ली परंतु जन्म के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, कोई निश्चित तिथि नहीं है। विश्व ज्ञानकोश यानि ‘BRITANICA ENCYCLOPEIDIA’ में लिखा है कि बाबा का जन्म वर्ष 1838 हो सकता है। साईं बाबा अपने हिन्दू भक्तों का सम्मान करते थे। सभी धर्मों के लोगों को उनकि आस्थानुसार उपासना करने कि इजाज़त दी थी। वेब साइट पर यह भी उल्लेख मिलता है कि बाबा के होंटों पर अल्लाह का उच्चारण होता था। अल्लाह के सामने सम्पूर्ण समर्पण कि बात करते थे और उनका मुख्य उद्देश्य था “अल्लाह मालिक एक”। हीरे धीरे बाबा के भक्तों कि संख्या महाराष्ट्र से बाहर उत्तर भारत के राजों में फैलती चली गयी। आज उत्तर भारत के बहुत से मंदिरों में देवी देवताओं के साथ साथ साईं बाबा कि मूर्ति भी खने को मिल जाती है। इस पर पहले भी काफी विवाद हो चुका है।

ENCLOPEDIA BRITANICA केई अनुसरसाइन फारसी का शब्द है और बाबा हिन्दी का। मुसलमान आदरणीय और पवित्र व्यक्तियों के लिए ‘साईं’ शब्द का प्रयोग करते हैं। साईं बाबा के बारे में यह भी कहा गया है कि बाबा एक ब्रहमीन के घर पैड हुए और बाद में उन्होने सूफी वाद को अपना लिया था। वह सर पर एक सफ़ेद रंग का सफा पहनते थे जिस मस्जिद मेंवाह रहते थे उसे उन्होने द्वारका माई का नाम दिया था। यह भी कहा जाता है कि उन्हे कुरान गीता और हिन्दू धर्मग्रंथों का अच्छा ज्ञान था

साईं बाबा ने अपने जीवन में एक बात बार बार कहि कि मैं सबको एक निगाह से देखता हूँ। वोह हिन्दू और मुसलमानों में कोई भेदभाव नहीं करते थे परंतु आज के माहौल में साईं बाबा का मंदिर भी रंगों से अछूता नहीं रहा।

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