Sunday, December 22

भारत की आजादी एक लंबे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष का नतीजा थी। इसे हासिल करने के लिए महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू , भगत सिंह से लेकर सुभाषचंद्र बोस सभी ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया है । आम जनता ने भी आजादी की जंग में अपना खून पसीना एक किया। सभी किसी न किसी तरह से भारत की सत्ता पर स्वदेशी हुकूमत देखना चाहते थे।

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

देश पर एकीकरण का एक भयावह खतरा मंडरा रहा था जिसे न जवाहर लाल नेहरू कर पाते और न राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। सरदार बल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति, लौह जैसे इरादे के बूते भारत आजाद और संगठित हुआ। आज जिस अखंड और एक भारत को हम देख रहे हैं यह पूरा भारत हम सबको इसी शख्स का दिया हुआ ऐसा अनमोल तोहफा है, जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते। लौह जैसे इरादों के चलते पटेल लौह पुरूष के नाम से पूरे भारत में लोकप्रिय रहे। दरअसल, भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण काम था रियासत में खंड-खंड रूप से बंटे, राजे-रजवाड़ों के छोटी-छोटी सल्तनों की हुकूमतों के अहंकार में डूबे हिंदुस्तान को एक करना कोई आसान काम नहीं था। अंग्रेज भारत को आजाद तो कर गए, लेकिन उन्होंने देश का बंटवारा भी कर दिया । पाकिस्तान के बनाने का निर्णय अंग्रेजों द्वारा अधिकृत लार्ड माउंटबेटन कर गए, लेकिन वे हिंदुस्तान को अखंड बनाने वाली 536 छोटी-बड़ी रियासतों को लेकर चुप्पी साध गए। उस समय नेहरू के लिए भी रियासतों को एक करना सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती थी, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी । इस तरह एक दृढ़ इच्छाशक्ति के कुशल संगठक, शानदार प्रशासक, पटेल के लिए 500 से ज्यादा राजाओं को आजाद भारत में शामिल करना आसान नहीं था। वे उन्हें नई कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करना चाह रहे थे कि वे भारत की कांग्रेस सरकार के अधीन आ जाए। जिस तरह से उन्होंने हैदराबाद, जूनागढ़ जैसी रियासतों को एक किया वह काबिले तारीफ था।

सन् 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भारत स्वतंत्र रियासतों में बंटा हुआ था। 15 अगस्त 1945 को जापान आत्म समर्पण कर दिया था, तब माउण्टबैटन सेना के साथ बर्मा के जंगलों में थे। इसी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए माउण्टबैटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था। वास्तव में, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, या यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए। भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। तब सरदार पटेल ने कोई 600 देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। एक कुशल प्रशासक होने के कारण कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें ’लौह पुरुष‘ के रूप में भी याद करता है।सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, काश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को भारत सरकार की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष प्रिवीपर्स दिया गया।

भोपाल का विलय:- भोपाल स्टेट की नींव रखी मुग़ल फ़ौज के एक अफ़ग़ान पश्तून फौजी दोस्त मोहम्मद खान ने। आगे चलकर 1818 में यह अंग्रेज़ो के अधीन आगया और 1818 से 1947 तक यह अंग्रेज़ो की सुरक्षा में रहा। 1857 को भोपाल स्टेट के मौलवियों ने स्टेट की नीतियों के खिलाफ जाकर अंग्रेज़ो के खिलाफ जिहाद का फतवा देदिया और लगातार तात्या तोपे, टोंक के नवाब और रानी लक्ष्मी बाई से संपर्क में रहे। यह मौलवी घर घर में अपनी बात पहुंचाने के लिए चपाती पर सन्देश लिखने लगे। उस वक़्त की रानी सिकंदर जहां बेगम को जब पता लगा तो उन्होंने चपातियों के वितरण पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मार्च 1948 में यह स्टेट भी इंडिया में ले लिया गया।भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। जूनागढ़: जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में नवाब के विरुद्ध बहुत विद्रोह हो गया वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया।
 हैदराबाद:- 1798 में हैदराबाद के तहत एक राजसी राज्य बन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य में जाना जाता है । एक सहायक गठबंधन करके यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए अपनी विदेश का नियंत्रण सौंप दिया था। 1903 में बरार राज्य के क्षेत्र अलग और मध्य प्रांतों में विलय कर दिया गया था। 1948 में हैदराबाद के लिए तो बाकायदा उन्हें सेना की एक टुकड़ी भेजनी पड़ी। पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया।
कश्मीर समस्या:- कश्मीर रियासत पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु इतिहासकारों की मानें तो सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे, और हम कम से कम इस बात में यकीं कर सकतेहैं कि पटेल होते तो कश्मीर समस्या का आज इस तरह से विकराल नहीं हो सकती थी। बावजूद नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।”
सरदार पटेल की जयंती:31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत में वर्ष 2014 में पहली बार राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया गया। देश के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष खड़ा करने के अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।इसी क्रम में सरकार ने सरदार पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दिन देशभर में एकता दौड़ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री खुद भी दौड़ लगा सकते हैं।इसके अलावा ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री इसी दिन आकाशवाणी के जरिए मन की बात के तहत जनता से अपना दूसरा संवाद भी कर सकते हैं। केंद्र की सत्ता में आने से पहले से ही पीएम मोदी सरकार पटेल की विरासत को लेकर कांग्रेस से दो दो चार हाथ कर रहे हैं। उन्होंने गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने के लिए बाकायदा हर गांव से लोहा इकट्ठा करने का अभियान छेड़ा था।उन्होंने प्रस्ताव रखा है कि सरदार पटेल की इस प्रतिमा को दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा के तौर पर स्थापित किया जाएगा। मोदी ने कांग्रेस पर सरदार पटेल के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया था। साथ ही जवाहर लाल नेहरू पर भी सवाल खड़े किए थे।