सरदार पटेल जयंती-राष्ट्रीय एकता दिवस

भारत की आजादी एक लंबे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष का नतीजा थी। इसे हासिल करने के लिए महात्मा गांधी , जवाहर लाल नेहरू , भगत सिंह से लेकर सुभाषचंद्र बोस सभी ने अपनी-अपनी तरह से योगदान दिया है । आम जनता ने भी आजादी की जंग में अपना खून पसीना एक किया। सभी किसी न किसी तरह से भारत की सत्ता पर स्वदेशी हुकूमत देखना चाहते थे।

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया।

देश पर एकीकरण का एक भयावह खतरा मंडरा रहा था जिसे न जवाहर लाल नेहरू कर पाते और न राष्ट्रपिता महात्मा गांधी। सरदार बल्लभ भाई पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति, लौह जैसे इरादे के बूते भारत आजाद और संगठित हुआ। आज जिस अखंड और एक भारत को हम देख रहे हैं यह पूरा भारत हम सबको इसी शख्स का दिया हुआ ऐसा अनमोल तोहफा है, जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते। लौह जैसे इरादों के चलते पटेल लौह पुरूष के नाम से पूरे भारत में लोकप्रिय रहे। दरअसल, भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ा और चुनौतीपूर्ण काम था रियासत में खंड-खंड रूप से बंटे, राजे-रजवाड़ों के छोटी-छोटी सल्तनों की हुकूमतों के अहंकार में डूबे हिंदुस्तान को एक करना कोई आसान काम नहीं था। अंग्रेज भारत को आजाद तो कर गए, लेकिन उन्होंने देश का बंटवारा भी कर दिया । पाकिस्तान के बनाने का निर्णय अंग्रेजों द्वारा अधिकृत लार्ड माउंटबेटन कर गए, लेकिन वे हिंदुस्तान को अखंड बनाने वाली 536 छोटी-बड़ी रियासतों को लेकर चुप्पी साध गए। उस समय नेहरू के लिए भी रियासतों को एक करना सबसे बड़ी और गंभीर चुनौती थी, जिसकी जिम्मेदारी उन्होंने सरदार बल्लभ भाई पटेल को सौंपी । इस तरह एक दृढ़ इच्छाशक्ति के कुशल संगठक, शानदार प्रशासक, पटेल के लिए 500 से ज्यादा राजाओं को आजाद भारत में शामिल करना आसान नहीं था। वे उन्हें नई कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि के रूप में इस बात के लिए राजी करने का प्रयास करना चाह रहे थे कि वे भारत की कांग्रेस सरकार के अधीन आ जाए। जिस तरह से उन्होंने हैदराबाद, जूनागढ़ जैसी रियासतों को एक किया वह काबिले तारीफ था।

सन् 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भारत स्वतंत्र रियासतों में बंटा हुआ था। 15 अगस्त 1945 को जापान आत्म समर्पण कर दिया था, तब माउण्टबैटन सेना के साथ बर्मा के जंगलों में थे। इसी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए माउण्टबैटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था। वास्तव में, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, या यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए। भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। तब सरदार पटेल ने कोई 600 देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। एक कुशल प्रशासक होने के कारण कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें ’लौह पुरुष‘ के रूप में भी याद करता है।सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, काश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी। 26 अक्टूबर को कश्मीर पर पाकिस्तान का आक्रमण हो जाने पर वहाँ के महाराजा हरी सिंह ने उसे भारतीय संघ में मिला दिया। पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में विद्रोह हो गया जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया। वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। 1948 में पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया। इस प्रकार रियासतों का अन्त हुआ और पूरे देश में लोकतन्त्रात्मक शासन चालू हुआ। इसके एवज़ में रियासतों के शासकों व नवाबों को भारत सरकार की ओर से उनकी क्षतिपूर्ति हेतु निजी कोष प्रिवीपर्स दिया गया।

भोपाल का विलय:- भोपाल स्टेट की नींव रखी मुग़ल फ़ौज के एक अफ़ग़ान पश्तून फौजी दोस्त मोहम्मद खान ने। आगे चलकर 1818 में यह अंग्रेज़ो के अधीन आगया और 1818 से 1947 तक यह अंग्रेज़ो की सुरक्षा में रहा। 1857 को भोपाल स्टेट के मौलवियों ने स्टेट की नीतियों के खिलाफ जाकर अंग्रेज़ो के खिलाफ जिहाद का फतवा देदिया और लगातार तात्या तोपे, टोंक के नवाब और रानी लक्ष्मी बाई से संपर्क में रहे। यह मौलवी घर घर में अपनी बात पहुंचाने के लिए चपाती पर सन्देश लिखने लगे। उस वक़्त की रानी सिकंदर जहां बेगम को जब पता लगा तो उन्होंने चपातियों के वितरण पर प्रतिबन्ध लगा दिया। मार्च 1948 में यह स्टेट भी इंडिया में ले लिया गया।भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। जूनागढ़: जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था पाकिस्तान में सम्मिलित होने की घोषणा से जूनागढ़ में नवाब के विरुद्ध बहुत विद्रोह हो गया वहाँ का नवाब पाकिस्तान भाग गया। जिसके कारण प्रजा के आवेदन पर राष्ट्रहित में उसे भारत में मिला लिया गया।
 हैदराबाद:- 1798 में हैदराबाद के तहत एक राजसी राज्य बन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के आधिपत्य में जाना जाता है । एक सहायक गठबंधन करके यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए अपनी विदेश का नियंत्रण सौंप दिया था। 1903 में बरार राज्य के क्षेत्र अलग और मध्य प्रांतों में विलय कर दिया गया था। 1948 में हैदराबाद के लिए तो बाकायदा उन्हें सेना की एक टुकड़ी भेजनी पड़ी। पुलिस कार्रवाई द्वारा हैदराबाद भी भारत में मिल गया।
कश्मीर समस्या:- कश्मीर रियासत पंडित नेहरू ने स्वयं अपने अधिकार में लिया हुआ था, परंतु इतिहासकारों की मानें तो सरदार पटेल कश्मीर में जनमत संग्रह तथा कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे, और हम कम से कम इस बात में यकीं कर सकतेहैं कि पटेल होते तो कश्मीर समस्या का आज इस तरह से विकराल नहीं हो सकती थी। बावजूद नि:संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्य था। भारत की यह रक्तहीन क्रांति थी। महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को इन रियासतों के बारे में लिखा था, “रियासतों की समस्या इतनी जटिल थी जिसे केवल तुम ही हल कर सकते थे।”
सरदार पटेल की जयंती:31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत में वर्ष 2014 में पहली बार राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया गया। देश के पहले गृहमंत्री और उपप्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के समकक्ष खड़ा करने के अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।इसी क्रम में सरकार ने सरदार पटेल की जयंती 31 अक्तूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। इस दिन देशभर में एकता दौड़ का आयोजन किया जाएगा, जिसमें प्रधानमंत्री खुद भी दौड़ लगा सकते हैं।इसके अलावा ऐसी भी संभावना जताई जा रही है कि प्रधानमंत्री इसी दिन आकाशवाणी के जरिए मन की बात के तहत जनता से अपना दूसरा संवाद भी कर सकते हैं। केंद्र की सत्ता में आने से पहले से ही पीएम मोदी सरकार पटेल की विरासत को लेकर कांग्रेस से दो दो चार हाथ कर रहे हैं। उन्होंने गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा बनाने के लिए बाकायदा हर गांव से लोहा इकट्ठा करने का अभियान छेड़ा था।उन्होंने प्रस्ताव रखा है कि सरदार पटेल की इस प्रतिमा को दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिमा के तौर पर स्थापित किया जाएगा। मोदी ने कांग्रेस पर सरदार पटेल के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया था। साथ ही जवाहर लाल नेहरू पर भी सवाल खड़े किए थे।

भाजपा वर्सेज भाजपा का मुद्दा, कमिश्नर ने स्पष्ट की एजेंडे की बात

चंडीगढ़:

नगर निगम की 263वीं सदन बैठक के दौरान आज हंगामा ही हंगामा देखने को मिला। हैरानी की बात यह है कि निगम सदन में कभी सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष में बहसबाजी होती थी। किन्तु आज का मंजर देख कर यही आभास हो रहा था कि भाजपा में स्पष्ट रूप से दो धड़े खुलकर आमने-सामने आ गए है। आज सुबह मीटिंग की कार्रवाई शुरू होते ही भाजपा पार्षद राजेश कालिया ने यह सवाल किया कि डोर टू डोर कूड़ा कलेक्टर्स के लिए वाहनों की खरीद का विस्तृत मामला सदन पटल पर विस्तार पूर्वक बताया जाए। क्योंकि एजेंडे में मामले की डीटेल नहीं दी गई है।

इनके कुछ देर बाद पूर्व मेयर एवं भाजपा पार्षद अरुण सूद ने इस मामले को और ज्यादा तूल देते हुए इस पर बार-बार बहस करते रहे। उन्होंने मेयर और कमिश्नर को शक के दायरे में लेते हुए आरोप लगाया कि वाहनों की खरीद-फरोख्त का विस्तृत ब्यौरा दिए बगैर इनकी खरीद के लिए एजेंडे कैसे तैयार कर दिया गया। इसके साथ ही उनकी हां में हां मिलाते हुए रविकांत शर्मा भी मैदान में कूद पड़े। बाद में सीनियर डिप्टी मेयर गुरप्रीत ढिल्लो भी मैदान में कूद पड़े।

अभी इनकी बहस चल ही रही थी कि भाजपा की ही पार्षद श्रीमती चन्द्रावती शुक्ला ने गंदे पानी की भरी कुछ बोतलें सदन में लहराते हुए कहा कि उनके वार्ड में विगत ३ माह से गन्दे पानी की सप्लाई हो रही है। किन्तु निगम की तरफ से इसके लिए कुछ भी नहीं किया गया।
मेयर और कमिश्नर बार-बार स्पष्टीकरण देना चाहते थे, किन्तु उनकी एक भी नहीं सुनी गयी। सदन में ऐसा दृश्य प्रस्तुत किया जा रहा था, मानो निगम सदन की बैठक न होकर किसी लड़ाई का मैदान हो। जवाब में भाजपा के ही मेयर समर्थक गुट के अनिल कुमार दुबे, श्रीमती हीरा नेगी, कंवरजीत राणा, सतीश कुमार कैंथ ने भी इनकी काट करने की कोशिश की। किन्तु मामला शांत होने का नाम नहीं ले रहा था। विवश होकर मेयर और कमिश्नर को चुप रहना पड़ा। पूरे सदन में अव्यवस्था का वातावरण पैदा हो गया था।

इस दौरान विरोध करने वाले पार्षदों ने वेल में खड़े होकर जोर-जोर शोर करने लगे। इसी बीच चन्द्रावती शुक्ला ने भी अपनी बोतलों का गंदा पानी लहराते हुए सभी का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया। अंत में उन्होंने रोष स्वरूप गंदे पानी को सदन के फर्श पर फैंक दिया। इस पर सभी लोग हैरान रह गए। इसके बाद कमिश्नर ने निगम कानून का हवाला देकर चन्द्रावती शुक्ला के इस कृत्य को गंभीरता से लिया। उनका कहना था कि निगम की कोई भी चीज किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है। यह पब्लिक और निगम की संपत्ति है। इसलिए इसे क्षति पहुंचाने का अधिकार किसी को नहीं है। तब जाकर चन्द्रावती ने अपना आसन ग्रहण किया।

मामले पर निगम के एसई संजय अरोड़ा ने कहा कि चन्द्रावती के वार्ड के ऊपर-नीचे के सभी फ्लैटों में पानी के मोटर चलाते रहते हैं। इसी के चलते इस वार्ड में पीने के पानी की सप्लाई की साथ गन्दा पानी शक होकर आ जाता है। यह मोटर अवैध् हैं। कमिश्नर ने इन मोटरों को अवैध करार देते हुए इन्हें शीघ्र हटाने के आदेश दिए। बैठक में पूर्व मेयर अरुण सूद ने उनके वार्ड के एजेंडों को रोकने का आरोप लगाया। मेयर ने स्पष्ट किया कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। सूद ने कमिश्नर से एजेंडे की बात पर चर्चा की।

उन्होंने कहा कि कमिश्नर से उन्होंने एजेंडों पर चर्चा की थी। जवाब में कमिश्नर ने कहा कि वह देश के बाहर थे। दिल्ली लैंड करने के बाद उन्होंने सूदको कहा कि कुछ एजेंडा तो उन्होंने ओ.के. कर दिया था, जो नितांत आवश्यक थे। किन्तु कुछ रोक लिया था। इस दौरान मनोनीत पार्षद अजय दत्ता ने वेल में खड़े सभी पार्षदों को अपनी सीट पर बैठ जाने का आग्रह किया। इसके बाद कार्यवाही शांतपूर्ण ढंग से चलती रही। खबर छापे जाने तक सदन की कार्रवाई जारी थी।

बेनीवाल का उदय बीजेपी के लिए अच्छी खबर क्यों है?


माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा


जाट लीडर हनुमान बेनीवाल के नेतृत्व में राजस्थान तीसरे मोर्चे का उदय देख रहा है. यह पिछले तमाम महीनों में बीजेपी के लिए सबसे अच्छी खबर है. नई पार्टी न सिर्फ आने वाले विधान सभा चुनाव में, बल्कि अगले साल लोक सभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए मददगार साबित होगी.

बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) मुख्य तौर पर ऐसे पूर्व बीजेपी नेताओं का एक साथ आना है, जो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में अपने लिए कोई भविष्य नहीं देखते. इन लोगों का सामूहिक लक्ष्य खुद को ऐसी जगह ले जाना है, जहां से वो कांग्रेस और राजे दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उनकी राजनीति का खेल कुछ ऐसा है, जहां राजे को खत्म किया जा सके और राजस्थान में नया पावर सेंटर बनकर बीजेपी में वापसी की जा सके.

वोट एकजुट करने की कोशिश

आने वाले विधानसभा चुनाव में, इनकी उम्मीद बीजेपी के खिलाफ वोट को एकजुट करने की है. इस तरह वे कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे. बेनीवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि वे त्रिशंकु विधान सभा में अच्छे नंबर के साथ आएं. इसके बाद वे किंग मेकर्स बन जाएं. ठीक वैसे ही, जैसे कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी ने किया. अगर ऐसा होता है, तो उनकी पहली पसंद राजे रहित बीजेपी होगी.

तीसरे मोर्चे में एकमात्र अहम नेता बेनीवाल हैं. अहम होने की वजह उनका जाट नेता होना है. जाटों के बारे में माना जाता है कि वे एकजुट होकर एक पार्टी को  वोट देते हैं. राजस्थान में पुरानी कहावत है -जाट की रोटी, जाट का वोट, पहले जाट को. अभी जाटों के पास ऐसा कोई नेता नहीं है, जिसकी पूरे राजस्थान में धमक हो. बेनीवाल का लक्ष्य उसी खालीपन को भरना और निर्विवाद तौर पर जाटों का नेता बनने का है. राज्य में जाटों की तादाद करीब 12 से 14 फीसदी है, बेनीवाल इन्हीं को एकजुट करना चाहते हैं.

यह ऐसा इलेक्शन है, जिसे एंटी इनकंबेंसी के अंडर करंट की तरह से देखा जा रहा है, जो राजे के खिलाफ है. ऐसे में जाटों के लिए स्वाभाविक पसंद कांग्रेस है. बेनीवाल के होने से समुदाय के पास एक और विकल्प होगा, जो कांग्रेस के नुकसान पहुंचाएगा. लेकिन बेनीवाल के लिए चुनौती होगी जाटों को कांग्रेस से दूर रखना. वो इसकी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने पूर्व मुख्य मंत्री अशोक गहलोत पर हमला बोला है. गहलोत को जाटों में नापसंद किया जाता है. माना जाता है कि उन्होंने कांग्रेस में जाट नेताओं को खत्म कर दिया. हालांकि सचिन पायलट के उभरने से यह रणनीति नाकाम रह सकती है. जाटों के लिए पायलट क्लीन स्लेट की तरह शुरुआत कर रहे हैं. ऐसे में गहलोत के लिए जाटों का गुस्से का कोई मतलब नहीं बचता.

क्या है समस्या

तीसरे मोर्चे के लिए एक और समस्या है बड़े स्तर पर सामाजिक गठबंधन का अभाव. बिहार में लालू यादव या उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास मुसलमानों सहित कुछ और जातियों, समुदायों का समर्थन रहा है. लेकिन यहां बेनीवाल के साथ अकेले जाट हैं. ऐसे में 12 से 14  फीसदी वोट किसी उम्मीदवार को हराने में काम आ सकते हैं, लेकिन वे अपने उम्मीदवार को इलेक्शन नहीं जिता सकते.

इसके अलावा, जब भी राजस्थान में कोई ताकतवर समुदाय एक साथ आता दिखता है, तो उसके खिलाफ काउंटर पोलराइजेशन या जवाबी ध्रुवीकरण होने लगता है. समस्या तब नहीं होती, अगर नए फ्रंट के बाकी नेताओं का बड़ा आधार होता. लेकिन बेनीवाल के साथी, जैसे घनश्याम तिवाड़ी अपनी खुद की सीट जीतने की क्षमता नहीं रखते. ऐसे में सिर्फ एक अहम नेता को आगे रखकर नैया पार करना आसान नहीं होगा.

हां, लंबे समय में बेनीवाल के उदय से बीजेपी को फायदा होगा. माना जा रहा है कि नतीजा कुछ भी हो, बीजेपी लोकसभा चुनाव नए नेता के साथ लड़ेगी. नया नेता राजे की जगह लेगा. संभावना है कि बीजेपी या तो राजपूत या ब्राह्मण को नए चेहरे के तौर पर पेश करेगी. अगर बेनीवाल नए नेतृत्व के साथ पार्टी से जुड़ते हैं, तो बीजेपी एक बड़ा सामाजिक गठजोड़ बनाने में कामयाब होगी. ऐसे में उसका वोट बेस विधान सभा चुनावों के मुकाबले काफी बड़ा होगा.

मिज़ोरम को मणिपुर बोल गए राहुल

मिज़ोरम = मणिपुर


राहुल गांधी ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करने के दौरान मिजोरम को मणिपुर लिख दिया


देश की राजनीति में हमारे राजनेताओं की जबान गाहे-बगाहे तो फिसलती ही रहती है. लेकिन कभी-कभी उनसे बहुत सामान्य सी गलतियां भी हो जाती हैं, जो उनके एक राजनेता होने के नाते उनसे उम्मीद नहीं की जाती है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी ऐसे ही एक स्थिति का शिकार हो गए और बीजेपी ने उन्हें आड़े हाथों ले लिया.

दरअसल, राहुल गांधी ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करने के दौरान मिजोरम को मणिपुर लिख दिया. गलती तो बड़ी थी और इसे ‘सुनहरा मौका’ समझकर बीजेपी ने तुरंत झपट लिया और राहुल गांधी की बकायदा क्लास लगा दी.

राहुल गांधी ने मिजोरम में आधी सदी के बाद सैनिक स्कूल में लड़कियों के लिए खुले दरवाजे पर एक लिंक शेयर किया. उन्होंने इसकी तारीफ की लेकिन गलती से वो मिजोरम को मणिपुर लिख गए.

इस पोस्ट को बाद में डिलीट कर दिया गया लेकिन बीजेपी की आईटी सेल को मौका मिल चुका था. आईटी सेल के हेड अमित मालवीय बकायदा राहुल गांधी को लिखने के लिए सबक दे दिया. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, ‘राहुल गांधी जाइए और ये लाइन हजार बार लिखिए कि- मणिपुर और मिजोरम उत्तर-पूर्वी भारत के दो अलग-अलग राज्य हैं और इसे याद रखिए.’


Amit Malviya

@amitmalviya

Rahul Gandhi go and write this a hundred times, “Mizoram and Manipur are two different states in the North East of India and I will remember that for the rest of my term as President of the Congress party!” (Edits note after being called out!)


अमित मालवीय ने ये भी कहा कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रति ऐसी लापरवाही समस्या है.

राहुल गांधी को उनके बयानों की वजह से हमेशा ही ट्रोल किया जाता है. इस साल मार्च में राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि उन्हें एनसीसी ट्रेनिंग को लेकर बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. इसपर उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी.

पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए दिल्ली के प्रदूषण पर कंट्रोल किया जाएगा


प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है और प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाती है


दिल्ली की हवा जानलेवा हो चुकी है. सुबह के वक्त घरों से बाहर न निकलने की चेतावनी दी जा रही है. लेकिन राजनीति की फिजां उससे भी ज्यादा खराब है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बीजेपी और कांग्रेस पर दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने का आरोप लगाया है. वो कहते हैं कि केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है. पिछले साल भी सीएम केजरीवाल ने ऐसा ही कहा था. केजरीवाल ये मानते हैं कि दिल्ली की हवा में बढ़ते प्रदूषण के पीछे राजनीतिक साजिशें हैं और दिल्ली सरकार उन साजिशों का शिकार.


Arvind Kejriwal

@ArvindKejriwal

पूरा साल दिल्ली में प्रदूषण ठीक रहा।

पर इस वक़्त हर साल दिल्ली को हरियाणा, केंद्र और पंजाब की भाजपा और कांग्रेस सरकारों की वजह से दम घोंटने वाले प्रदूषण को झेलना पड़ता है। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद ये कुछ करने को तैयार नहीं। इन राज्यों के किसान भी अपनी सरकारों से परेशान हैं


आम जनता के नायक बन कर अरविंद केजरीवाल उभरे थे. गले में मफलर और खांसती हुई उनकी तस्वीरें लोगों को आम आदमी साबित करने का काम करती थीं. लेकिन आज प्रदूषण से दिल्ली खांस रही है. प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है. प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाते हैं.

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में पांच गुना कमी आई है तो हरियाणा सरकार का कहना है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी कमी की गई है. लेकिन केजरीवाल का आरोप है कि पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में सांस लेने में घुटन हो रही है.

दिल्ली के वाहनों से सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है. साल भर दिल्ली की हवा गाड़ियों से निकलते धुएं, निर्माण कार्य से उठने वाली धूल और औद्योगिक प्रदूषण की वजह से हवा जहरीली होती जाती है. अब सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर सख्ती दिखाते हुए दस साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल के वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया है. ऐसे में दिल्ली सरकार को पुराने और जहरीला धुआं उगलते वाहनों पर सख्ती करने की जरूरत है ताकि कोर्ट का आदेश पूरा हो सके.

दिल्ली में 1 नवंबर से 10 नवंबर तक निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है. सवाल उठता है कि ये कदम कुछ पहले क्यों नहीं उठाए गए? कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री जैसे रेत, ईंट, मलबा या दूसरी चीजों को ढंक कर रखना जरूरी होता है. लेकिन दिल्ली में जगह-जगह इनका ढेर खुले में दिखाई देना आम बात है. चाहे वो प्राइवेट कंस्ट्रक्शन हो या फिर सरकारी निर्माण हो. प्रदूषण के खिलाफ पर्यावरण को लेकर बनाए गए नियमों की खुलेआम धज्जियां हवा में धूल की तरह उड़ती दिखाई देती हैं.

सच तो ये है कि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों का दिल्ली सरकार पालन नहीं करवा सकी है.  प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है. जरूरी ये है कि दिल्ली सरकार ऐसी टीमें बनाएं जिनमें पीडब्लूडी और एमसीडी के साथ दिल्ली पुलिस के कर्मी भी शामिल हों ताकि जहां सख्ती की जरूरत हो वहां सख्ती से निपटा जा सके.

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खुले में कूड़ा जलाने को रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने अबतक क्या सख्त कदम उठाए? भलस्वा लैंडफिल साइट में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही जिससे  जिससे दिल्ली की हवा में जहर घुलता जा रहा है. वहीं नरेला और बवाना में भी कूड़े के ढेर खुलेआम जलाए जाते हैं. खुद EPCA यानी पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण संरक्षण प्राधिकरण ये जानता है तो DPCB यानी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी ये मानता है.

ऐसे में NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल जब द‍िल्ली सरकार से प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए एक्शन प्लान मांगती है तो दिल्ली सरकार पांच महीनों का समय मांगती है. ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली पहली बार प्रदूषण की मार झेल रही है और ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल सरकार को दिल्ली की आबो-हवा का पुराना अनुभव नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों फिर दिल्ली सरकार अपनी तैयारियों का खाका इतने साल बाद भी नहीं बना सकी?

खुद सीएम केजरीवाल का कहना था कि अगर राजनीति से ऊपर उठ कर एक साथ सहयोग करें तो दिल्ली की हवा की सूरत बदली जा सकती है. ऐसे में क्या सिर्फ ऑड-ईवन के भरोसे और पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल किया जा सकेगा? जाहिर तौर पर दिल्ली के पड़ौसी नहीं बदले जा सकते हैं. वहां से हवा आएगी और उन हवाओं का रूख नहीं बदला जा सकता है.

सरकार को सबसे पहले प्रदूषण के कारकों को चिन्हित करना होगा और उनका विकल्प सोचना होगा. सरकार ये सुनिश्चित करे कि लैंडफिल साइट और दूसरी जगहों पर कचरा न जलाया जाए, पॉवर कट की वजह से डीज़ल जेनरेटर का ज्यादा इस्तेमाल न हो, धुआं फेंकने वाले पुराने वाहन सख्ती से जब्त हों, ईंट-भट्टे सर्दियों के मौसम में बंद रखे जाएं और धूल भरी सड़कों पर पानी का लगातार छिड़काव हो.

बहरहाल, एक बार फिर प्रदूषण से गहराती धुंध में दिल्ली सरकार अपनी राजनीति की आबो-हवा ठीक करने में जुटी हुई है. एक दूसरे पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ने की कवायद हो चुकी है. हर साल सर्दियां आएंगी. आबोहवा में धुंध का पहरा होगा. पड़ौसी राज्यों में पराली जलेगी और फिर दिवाली भी आएगी. उसी कोहरे की राजनीति में बयानों की जहरीली हवा भी चलेगी जो ये कहेगी कि इस दमघोंटू हवा के लिए हम नहीं ‘वो’ जिम्मेदार हैं. उस ‘वो’ की तलाश जारी रहेगी.

श्री ज्ञान चन्द गुप्ता का आशियाना फ्लैट्स सैक्टर 20, पंचकूला में भव्य स्वागत।

दिनांक 30 अक्तूबर 2018 को पंचकूला के विधायक एवं सरकारी मुख्य सचेतक (राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त) श्री ज्ञान चन्द गुप्ता ने आशियाना फ्लैट सेक्टर 20 पंचकूला में एक विशाल जनसभा को संबोधित किया। इस पर बोलते हुए ज्ञान चन्द गुप्ता ने कहा कि हरियाणा सरकार ने गरीबों के हितों के लिए बहूत से नए कार्य शुरू किए हैं। उन्होंने कहा की मुख्यमंत्री हरियाणा सरकार श्री मनोहर लाल ने गरीबों के बिजली के बिलों में भारी कटौती की है 200 यूनिट तक के बिजली के बिल के रेट 4.50 रुपए प्रति यूनिट से घटाकर 2.50 रुपए की हैं और श्री गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री ने आशियाना फ्लैट्स की दिक्कतों को दूर करने के लिए 10 करोड़ रूपए का विशेष अनुदान दिया है। जिससे आशियाना के रहने वाले लोगों की बिजली, पानी, सड़क एवं अन्य दिक्कतों का समाधान होगा। उन्होंने कहां की पंचकूला में उत्तर प्रदेश और बिहार में रहने वाले लोगों के लिए 2.50 करोड रुपए की लागत से लगभग 1 एकड़ जमीन पर एक छठ पूजा घाट का निर्माण कार्य कराया जा रहा है। जिससे पूर्वांचल के लोग छठ पूजा का उत्सव बड़ी धूमधाम से मना सकेंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री के द्वारा गरीबों के लिए शुरू की गई योजनाओं जैसे जन-धन योजना, उज्जवला योजना, आयुष्मान योजना और बुढ़ापा पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांग पेंशन 2 हजार रूपय प्रतिमाह करने की शुरुआत की है।

इस अवसर पर आशियाना वासियों ने स्कूल को अपग्रेड कराने तथा आशियाना के फ्लैट्स के किसतो का ब्याज माफ कराने की मांग की। श्री ज्ञान चन्द गुप्ता ने आशियाना के लोगों की मांगों की समस्याओं का समाधान कराने का आश्वासन दिया।

इस आयोजन में जिला अध्यक्ष दीपक शर्मा, जिला महामंत्री हरिन्द्र मलिक, मंडल अध्यक्ष श्री राजेन्द्र नोनीवाल, मंडल महामंत्री राकेश अग्रवाल, बूध अध्यक्ष कर्मजीत, काशीनाथ पंडित, बी०एल०ओ० पार्ट-2 सैक्टर 20, गांधी, रणजीत कुमार, सुरज पाल, ललन यादव, सुभाष, रामनमन, श्रीमती बाबी देवी, विमला, सुनीता, दुजी व अन्य कार्यकताओं का विशाल जनसमूह उपस्थित रहें।

AIBOC & SBIOA extended whole heartly support to the ongoing strike of Haryana Roadways

 

All India Banks officers Association (AIBOC), an umbrella of banks union,  representing more than 3.20 lacs bank officers across the country and State Bank of India officers Association (SBIOA) , Chandigarh Circle extended whole heartly support to the ongoing strike of Haryana Roadways against its privatisation.

Comrade Deepak Sharma, Joint General Secretary of AIBOC and General Secretary SBIOA, Chandigarh Circle addressing the huge gathering of striking employees promised full support for their ongoing struggle against privatisation. He further stated that with the induction of private players in state transport will lead to privatisation.  He further stated that state transport has played a vital role in the overall development of the state and a cheaper mode of conveyance for the common people.

Speaking on the occasion  Com. Sanjay Sharma , President SBIOA Chandigarh Circle strongly criticise the government for its move of privatisation and demanded rollback of private buses, withdrawal of cases against roadways employees and revocation of their suspension.

The privatisation will undeniable pave the way for gradual shift towards the era of the rise and dominance of private sector.

It systemic lead to job cut, decline in new job opportunities, youth unemployment. Thus we have no other alternate other than to oppose it.

Com. Jitender Siwatch, Com Rajesh Bamal, Com Priyvrat and Com Naresh Mukheja others were also present there.

राहुल को चौहान का कानूनी नोटिस


शिवराज ने ट्वीट करते हुए कहा, मिस्टर राहुल गांधी, आपने मेरे और परिवार के खिलाफ व्यापम और पनामा पेपर मामले में झूठे आरोप लगाए 

क्या कोर्ट की कार्यवाही अगले 5 वर्ष तक हो पाएगी ?


कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. राहुल के बयान के खिलाफ मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान के बेटे कार्तिकेय ने मानहानि का मुकदमा दर्ज कराया है. भोपाल कोर्ट में दायर किए गए इस मुकदमें की अगली सुनवाई 3 नवंबर को होगी.

शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि वह मंगलवार को राहुल के खिलाफ मानहानि का केस करेंगे. शिवराज का कहना है कि राहुल ने व्यापम और पनामा पेपर्स जैसे मामलों में उनके परिवार और खुद उनकी छवि को धूमिल किया है.

शिवराज ने ट्वीट करते हुए कहा था, ‘मिस्टर राहुल गांधी, आपने मेरे और परिवार के खिलाफ व्यापम और पनामा पेपर मामले में झूठे आरोप लगाए. अब मैं आपके दिए गए बयानों के लिए मानहानि का केस करूंगा. अब कानून अपना काम करेगा.’

चौहान ने कहा था, ‘कांग्रेस लगातार बीजेपी पर आपत्तिजनक बयान देती है. उसने पीएम मोदी को मौत का सौदागर कहा, नीच और बिच्छू कहा. इस पार्टी ने मुझे नालायक और मदारी कहा. सत्ता से दूर रहने की वजह से कांग्रेस की मानसिक हालत खराब हो गई है.’

सोमवार को झाबुआ में रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था, ‘पनामा मामले में सीएम शिवराज के बेटे का नाम आने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. जबकि पाकिस्तान ने पनामा मामले में अपने पूर्व पीएम के खिलाफ कार्रवाई की।’

 

 

किस करवट बैठेगा उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति का ऊँट?


कुशवाहा को बीजेपी की तरफ से 2 सीटों के ऑफर के बारे में साफ-साफ बता दिया गया है और उन्हें भी त्याग करने को कह दिया गया है


आरएलएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा सोमवार रात को ही पटना से दिल्ली आ गए थे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बुलावे पर दिल्ली पहुंचे उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात बीजेपी के महासचिव और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव से मंगलवार 30 अक्टूबर को हुई. बातचीत के पहले उपेंद्र कुशवाहा के कदम को लेकर कई कयास लगाए जा रहे थे.

लेकिन, मीडिया से बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी अध्यक्ष के उस फॉर्मूले को लेकर अपनी सहमति जताई जिसमें वो सभी पार्टनर से जेडीयू की एंट्री के बाद ‘त्याग’ करने की बात कह चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने मीडिया के सामने जो बातें की उसमें तीन बातें ऐसी रही जिसको देखकर ऐसा लग रहा था कि कुशवाहा फिलहाल एनडीए में बने रहने के लिए कुर्बानी को तैयार हो गए हैं.

‘कुर्बानी’ को तैयार कुशवाहा !

सबसे पहले ‘त्याग’ के फॉर्मूले की बात करें तो कुशवाहा ने कहा, ‘हम उनकी (बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह) बात से सहमत हैं. हम ‘कुर्बानी’ को तैयार हैं. लेकिन, जब कई हिस्सेदार एक साथ हैं और उनमें नुकसान जब सभी शेयरधारी और पार्टनर करते हैं तो फिर लाभ वाले मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ ? कुशवाहा ने सवाल उठाया कि हम लाभ वाले मामले में क्यों वंचित हुए ?’ उपेंद्र कुशवाहा ने उस वक्त का जिक्र किया जब पिछले साल नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की फिर से एनडीए में एंट्री हुई और उस वक्त जेडीयू-बीजेपी ने मिलकर फिर से सरकार बना ली.

उस वक्त बिहार में एलजेपी और आरएलएसपी दोनों के दो-दो विधायक थे. लेकिन, विधानसभा का उपचुनाव हार चुके एलजेपी से रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को एमएलसी भी बनाया गया और नीतीश सरकार में मंत्री पद भी मिला. उस वक्त कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को नीतीश सरकार में जगह नहीं मिली. कुशवाहा ने बीजेपी की तरफ से नीतीश की एंट्री के बाद ‘त्याग’ के फॉर्मूले पर अपनी तरफ से बीजेपी के सामने यह तर्क रख दिया है.

हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने फिलहाल बिहार सरकार में मंत्री पद के मुद्दे पर साफ-साफ कुछ नहीं कहा, लेकिन, हो सकता है कि अगर कुशवाहा बीजेपी की तरफ से दी गईं 2 लोकसभा सीटों के फॉर्मूले पर तैयार हो गए तो उनके एक एमएलए को बिहार सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है. ऐसा करते वक्त नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्ते और समीकरण पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा.

कैसा होगा नीतीश-कुशवाहा का समीकरण ?

उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से दूसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना बड़ा भाई बताकर अपनी तरफ से नरमी के संकेत दिए हैं. उनके इस बयान का बड़ा सियासी मतलब निकाला जा रहा है. जब चार रोज पहले दिल्ली में नीतीश कुमार और अमित शाह ने संयुक्त रूप से मीडिया के सामने आकर बराबर- बराबर सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो उस वक्त नीतीश कुमार की अहमियत का अंदाजा साफ दिख रहा था. बीजेपी किसी भी हालत में नीतीश कुमार को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी.

दूसरी तरफ, एनडीए के भीतर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के बीच तल्खी कई बार दिख चुकी है. आरएलएसपी के नेता और यहां तक कि उनके कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि ने तो नीतीश कुमार को उनकी जाति यानी कूर्मी जाति के डेढ़ फीसदी लोगों का नेता तक बता दिया था, जबकि उपेंद्र कुशवाहा और अपनी पार्टी को 10 फीसदी लोगों का नेता तक कह दिया था. इस तरह की तल्खी के बावजूद बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ मुलाकात के बाद अगर कुशवाहा ने नीतीश कुमार को बड़ा भाई बताया है तो यह भी उनके रुख में नरमी का संकेत दे रहा है.

मोदी को फिर से ‘प्रधानमंत्री’ बनाएंगे कुशवाहा

कुशवाहा की तीसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने फिर से नरेंद्र मोदी को अगले पांच साल के लिए प्रधानमंत्री पद पर बैठाने की बात दोहराई. हालाकि कुशवाहा यह बात पहले से भी बोलते आए हैं. लेकिन, इस वक्त सीट बंटवारे को लेकर नाराजगी की अटकलों के बीच उनकी तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने वाले बयान से भी यह संकेत मिला कि कुशवाहा फिलहाल एनडीए के साथ ही रहने को तैयार हो गए हैं.

कैसा रहेगा सीटों का फॉर्मूला ?

सूत्रों के मुताबिक, सीट बंटवारे पर बीजेपी-जेडीयू के अलावा एलजेपी से भी समझौता हो गया है. समझौते के मुताबिक, बीजेपी और जेडीयू कुल 40 सीटों में से 17-17 सीटों पर लड़ेगी, जबकि, 4 सीटें एलजेपी के खाते में जाएगी, जबकि 2 सीटें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को दी जाएगी. सूत्रों के मुताबिक, चार सीटों के अलावा राज्यसभा के लिए भी बीजेपी अपने खाते से एक सीट एलजेपी को देगी. सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा. हालाकि एलजेपी सूत्रों के मुताबिक, उन 4 सीटों के अलावा एक और लोकसभा की सीट झारखंड या यूपी में एलजेपी को मिल सकती है.

कुशवाहा के सामने पार्टी नेताओं को मनाने की चुनौती

इस तरह कुशवाहा को बीजेपी की तरफ से 2 सीटों के ऑफर के बारे में साफ-साफ बता दिया गया है और उन्हें भी त्याग करने को कह दिया गया है. लेकिन, कुशवाहा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि महज 2 सीटों पर मानकर वे अपने पार्टी नेताओं को कैसे मना पाएंगे ? इस वक्त उपेंद्र कुशवाहा खुद बिहार की काराकाट से सांसद हैं. इसके अलावा उनके दूसरे सांसद रामकुमार शर्मा सीतामढ़ी से सांसद हैं. इन दो सीटों पर तो उनका ही दावा बनता है.

लेकिन, उनकी पार्टी में पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि भी कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नंबर दो की हैसियत में हैं. नागमणि भी चुनाव लड़ना चाहते हैं. ऐसे में 2 सीटों के ऑफर को मानने पर पार्टी नेताओं में नाराजगी हो सकती है. दूसरी तरफ, पार्टी कार्यकर्ताओं को भी इस फॉर्मूले पर मनाने और बेहतर संदेश देने की चुनौती होगी. उपेंद्र कुशवाहा अब चार दिन बाद फिर दिल्ली में होंगे, जिसमें बीजेपी नेताओं के साथ सीटों के समझौते को लेकर अंतिम फैसला हो सकता है.

अभी खुला रखना चाहते हैं विकल्प

दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले पांच सालों में केंद्र में मंत्री रहते अपनी पार्टी का संगठन पूरे बिहार में खड़ा कर लिया है. उनको भी लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़कर भी जीत मिल गई तो उस हालत में उन्हें फिर से सरकार बनने की सूरत में मंत्री पद मिल सकता है. इस तरह से उन्हें फिर से अपना संगठन और मजबूत करने और विधानसभा चुनाव में अपनी हैसियत बढ़ाने का मौका मिल सकता है.

जीतन राम मांझी ने उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर तंज

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने केंद्रीय मंत्री एवं रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर तंज कसा है. जीतन राम मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए को ब्लैकमेल कर रहे हैं. यह बस उनका व्यक्तिगत स्वार्थ है. मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा को दो नाव की सवारी नहीं करनी चाहिए. दो नाव की सवारी करनेवाला सफल नहीं होता है.

दूसरी तरफ, अगर दोबारा एनडीए सत्ता में नहीं भी आई तो उस हालात में उनके पास फिर भी नए समीकरण का विकल्प रह सकता है. लालू परिवार से उनकी हो रही समय-समय पर बातचीत इस बात का संकेत है, क्योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है.

मप्र भाजपा के दो विधायक कांग्रेस में शामिल


संजय शर्मा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की, शर्मा नरसिंहपुर जिले के तेंदूखेड़ा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं


मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. मंगलवार को मौजूद बीजेपी विधायक संजय शर्मा ने इंदौर में कांग्रेस का हाथ थाम लिया. शर्मा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की. शर्मा नरसिंहपुर जिले के तेंदूखेड़ा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. शर्मा के अलावा किरार समाज के अध्यक्ष और राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त रहे गुलाब सिंह किरार और पूर्व विधायक कमलापत आर्य भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.

सूत्रों की मानें ऐसी चर्चा चल रही थी कि शर्मा का टिकट इस बार कट सकता है और उनकी जगह किसी अन्य को बीजेपी उम्मीदवार बनाया जा सकता है. कांग्रेस का हाथ थामते ही संजय शर्मा ने शिवराज सरकार पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि उके नेतृत्व में घुटन महसूस हो रही थी. शर्मा ने आरोप लगाया कि सीएम ने मेरे विधानसभा क्षेत्र के लिए कुछ नहीं किया.

संजय शर्मा पहले भी कांग्रेस में ही थे लेकिन बीच में वे बीजेपी में शामिल हो गए थे. कांग्रेस छोड़ने के बाद बीजेपी ने उन्हें तेंदूखेड़ा से टिकट दिया और वह विधानसभा पहुंचे. बताया जा रहा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी ने शर्मा की कांग्रेस में घर वापसी कराई है.

तेंदूखेड़ा की स्थिति

तेंदूखेड़ा विधानसभा क्षेत्र में 156196 मतदाता हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी की टिकट पर संजय शर्मा ने जीत हासिल की थी. इस सीट पर बीजेपी को 64.11 प्रतिशत को कांग्रेस को कुल 29.21 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए थे. कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह उम्मीद लगाई जा रही है कि शर्मा यहां से पार्टी के उम्मीदवार होंगे.