खट्टर सरकार यह बताए कि वो खाद व डीज़ल की कीमतों में राहत देने के लिए क्या कदम उठाएगी?: सुरजेवाला

Photo by Rakesh Shah

जनता से नहीं सरोकार – किसान विरोधी है खट्टर सरकार

बेमौसमी बारिश, ओलावृष्टि व जलभराव से फसलों को 25 % – 40 % तक नुकसान, जल्द हो मुआवजे का भुगतान

गन्ने की फसल को 50,000 व जीरी/कपास किसानों को मिले 30000 रु. प्रति एकड़ मुआवजा

धान व बाजरे की खरीद में हो रही व्यापक धांधलेबाजी ने हरियाणा के किसान की कमर तोड़ दी है। बैमौसमी बारिश, ओलावृष्टि व जलभराव ने गन्ना, धान, कपास व बाजरे की फसलों को 25 प्रतिशत से 40 प्रतिशत तक जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है।

शोषण का शिकार किसान दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर है, पर खट्टर सरकार जानबूझकर हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रही है। नष्ट हुई फसलों की न स्पेशल गिरदावरी कर और न ही मुआवज़ा दे खट्टर सरकार का किसान विरोधी चेहरा एक बार फिर बेनकाब हो गया है।

बेमौसमी बारिश, ओलावृष्टि, जलभराव ने किया जबरदस्त नुकसान- किसान बेहाल और परेशान

22 से 24 सितंबर, 2018 के बीच बेमौसमी बारिश से पूरे हरियाणा, खासतौर से दक्षिणी व उत्तरी हरियाणा में बाजरा, कपास, धान व गन्ने की फसलों को भारी नुकसान हुआ। 50 मन (20 क्विंटल) प्रति एकड़ से अधिक कपास की पैदावार की उम्मीद कर रहे किसान को खड़ी फसल में बेमौसमी बारिश ने ऐसा वज्रपात किया कि पैदावार घटकर 20 मन (8 क्विंटल) प्रति एकड़ के करीब रह गई। यही हाल बाजरे की फसल का हुआ, जहाँ एक तरफ नमी ने मारा और दूसरी तरफ बारिश से दाना काला पड़ गया। धान पैदा करने वाले किसान की तो हालत और बुरी हुई। 1509 व 1121 बासमती किस्म का धान पैदा करने वाले उत्तर हरियाणा के किसान की तो पूरी फसल गिर गई व मेहनत पर पानी फिर गया।

आज भी दादरी, बाढड़ा, मुंढाल, झज्झर, महम, जुलाना, सफीदों, जीन्द, कैथल के हजारों एकड़ क्षेत्र में जलभराव की स्थिति है व खट्टर सरकार सो रही है। दूसरी तरफ नारनौल, महेंद्रगढ़, कणीना, अटेली, बावल, रेवाड़ी, हेलीमंडी, फरुखनगर इत्यादि दक्षिण हरियाणा के इलाकों में बाजरा व कपास की फसलों को बारिश से भारी नुकसान हुआ।

11 व 12 अक्टूबर, 2018 की भारी व अप्रत्याशित ओलावृष्टि-बारिश-तूफान ने तो उत्तर हरियाणा के अंबाला, यमुनानगर व पंचकुला जिलों की धान व गन्ने की खेती व्यापक तौर से नष्ट कर डाली। हरियाणा के इतिहास में पहली बार शायद किसी ओलावृष्टि ने गन्ने की खड़ी फसल को इस प्रकार से नष्ट किया।

इस सबके बावजूद खट्टर सरकार ने न तो स्पेशल गिरदावरी ऑर्डर की और न ही एक फूटी कौड़ी मुआवजा दिया। यहां तक कि भारत सरकार से भी मुआवज़े की कोई मांग नहीं की गई।

धान व बाजरा खरीद घोटाले ने किसान को किया बेज़ार

सामान्य धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है, 1770 रु. क्विंटल, पर लगभग सब मंडियों में किसान को लग रही है मोटी चपत व मिल रहा है धोखा, क्योंकि सामान्य धान बिक रहा है, 150 रु. से 200 रु. क्विंटल कम तक, यानि लगभग 1575-1625 रु. क्विंटल तक। चौंकानेवाली बात यह है कि सरकार के खाते में पूरा 1770 रु. क्विंटल का भाव दिखाया जा रहा है। सरकार के सर्वोच्च आला अधिकारियों के समक्ष यह हेराफेरी और गड़बड़झाला रखा गया पर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सवाल यह है कि यह 150-200 रु. क्विंटल का मुनाफा किसान से लूटकर किसकी जेब में डाला जा रहा है?

बाजरा खरीद में तो धांधली और भी बड़ी है। बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है, 1950 रु. प्रति क्विंटल। परंतु 70 प्रतिशत से अधिक किसान को मिल रहा है, 1300/1350 रु. प्रति क्विंटल। इस बात की रेवाड़ी/बावल/अटेली/कोसली/कणीना/फारुखनगर/ नारनौल/महेंद्रगढ़ मंडियों से पुष्टि की जा सकती है। कारण बड़ा स्पष्ट है। खट्टर सरकार ने हर किसान की ई-पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य किया है। यदि खसरा व खेवट नंबर का मिलान नहीं होता, तो किसान की खरीद नहीं होती। इसके अलावा किसान के नाम बैंक खाता व मोबाईल होना अनिवार्य है। यदि बैंक खाता व मोबाईल परिवार के किसी और सदस्य के नाम भी हो, तो भी उसे अयोग्य ठहरा दिया जाता है। अधिकतर मंडियों में इंटरनेट काम ही नहीं कर रहा, या फिर उसकी स्पीड इतनी कम है कि एक किसान को रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए एक-एक हफ्ते का इंतजार करना पड़ता है। ऊपर से खट्टर सरकार ने 8 क्विंटल प्रति एकड़ की पाबंदी लगा रखी है। सवाल यह है कि किसान को एमएसपी पर 650 रु. प्रति क्विंटल की चपत लगाने के लिए क्या खट्टर सरकार जिम्मेदार नहीं?

खाद व डीज़ल की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी ने किया किसान का जीना दूभर – गेहूं की बुआई पर पड़ेगा असर

डीएपी खाद के 50 किलो के थैले की कीमत मई, 2014 में थी, 1075 रु.। भाजपा सरकार के केवल 53 महीनों में यह बढ़कर 1450 रु. प्रति 50 किलो हो गई है। इस प्रकार एक खाद के कट्टे में 375 रु. की बढ़ोत्तरी हो गई। पोटाश खाद का 50 किलो का कट्टा मई, 2014 में 450 रु. का था, जो आज बढ़कर 969 रु. हो गया है। यानि भाजपा के 53 महीनों की सरकार में 505 रु. की बढ़ोत्तरी। भाजपा सरकार ने यूरिया के तो 50 किलो के कट्टे में से 5 किलो चुरा उसे 45 किलो का कर दिया।

किसान के ईंधन, डीज़ल का भाव मई, 2014 में 55.49 रु. प्रति लीटर था, जो आज बढ़कर 74.03 रु. प्रति लीटर हो गया है। 53 महीनों की भाजपाई सरकार में यह बढ़ोत्तरी भी 18.54 रु. है। इसके अतिरिक्त खट्टर सरकार ने तो डीज़ल पर वैट 9.24 प्रतिशत से 17.22 प्रतिशत बढ़ा डाला व साल 2014-15 से साल 2018-19 की पहली तिमाही तक अकेले पेट्रोल/डीज़ल पर वैट से 27,985 करोड़ की कमाई कर जनता की जेब पर डाका डाला।

हमारे 5 सवालः-

1. खट्टर सरकार स्पेशल गिरदावरी कर नष्ट हुई गन्ना, धान, कपास व बाजरे की फसलों का मुआवज़ा कब देगी?

2. क्या स्पेशल गिरदावरी इसलिए नहीं की जा रही, ताकि किसानों को मुआवज़ा न दे फसल बीमा कंपनियों को मुनाफा पहुंचाया जा सके?

3. धान की फसल को एमएसपी से 150 रु. क्विंटल कम की खरीद के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या खट्टर सरकार इसकी जाँच करवाएगी।

4. बाजरा खरीद में किसान को एमएसपी से कम भाव दे 600-650 रु. क्विंटल के लिए कौन जिम्मेदार है? क्या खट्टर सरकार जाँच करवा किसान को पूरी कीमत देगी?

5. खट्टर सरकार यह बताए कि वो खाद व डीज़ल की कीमतों में राहत देने के लिए क्या कदम उठाएगी?

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