माँ दुर्गा का पांचवां रूप : स्कंदमाता

 

 

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंद माता की पूजा करनी चाहिए। यह दिन इस बार नवरात्रि 2018  में 14  अक्टूबर को आएगी। देवी स्कंद माता वात्सल्य की मूर्ति है। दरअसल माता के इस रूप से साधक यह विचार कर सकते हैं कि उन्हें किसी तरह की हानि कोई भी व्यक्ति नहीं पहुंचा सकता है, अन्यथा मां क्रोध में आकर अपने साधक, भक्त या पुत्र को नुकसान पहुंचाने वाले का सर्वस्व मिटा सकती है। जब इंद्र कार्तिकेय को परेशान कर रहे थे, तब मां ने उग्र रूप धारण कर लिया। चार भुजा और शेर पर सवार मां प्रकट हुई। मां ने कार्तिकेय को गोद में उठा लिया। इसके बाद इंद्र आदि देवताओं ने मां की स्कंदमाता के रूप में आराधना की।

संतान सुख देती है स्कंदमाता 

स्कंद माता की आराधना करने से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है। नवरात्रि के पांचवें दिन लाल चुनरी, पांच तरह के फल, सुहाग का सामान आदि से धान/ चावल से मां की गोद भरनी चाहिए। इससे मां खुश होती है और भक्तों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती है।

बच्चे खुश तो मां खुश

स्कंद माता की कृपा तभी प्राप्त होती है, जब उनके भक्तों को नहीं सताया जाए। अनावश्यक मां के भक्तों को परेशान करने वालों से मां नाराज हो जाती है। इस दिन कार्तिकेय की पूजा का भी विधान है। लोगों को चाहिए कार्तिकेय की पूजा के बाद मां की पूजा करें और पांच कन्याओं के साथ छोटे बालकों को भी खीर का प्रसाद खिलाएं।

बुद्धिमता, ज्ञान की देवी : माँ स्कंदमाता

देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित्त है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक है। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है,जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।

शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है.इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया, कर्म भी कह सकते हैं।

प्रायः ऐसा देखा गया की है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रोयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। आप स्कूल, कॉलेज में भौतिकी, रसायन शास्त्र पड़ते हैं जिसका प्रायः आप दैनिक जीवन में कुछ अधिक प्रयोग करते। और दूसरी ओर चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। जब आप टेलीविज़न ठीक करना सीख जाते हैं तो अगर कभी वो खराब हो जाए तो आप उस ज्ञान का प्रयोग कर टेलीविज़न ठीक कर सकते हैं। इसी तरह जब कोई मोटर खराब हो जाती है तो आप उसे यदि ठीक करना जानते हैं तो उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मात्र देवी का एक और रूप है।

हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने अगर कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौनसा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।

 

इस मंत्र से करें मां की पूजा- 

 

सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

 

 इसके बाद इस मंत्र का जाप करना सुखद होता है।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

 

स्कंदमाता को प्रसन्न करके मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है 

भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। पुराणों में स्कंद को कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। देवी स्कन्दमाता की तीन आंखें और चार भुजाएं हैं। स्कंदमाता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं जबकि मां का चौथा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे होता है। ऐसा कहा जाता है कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से, मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी या बुद्धिमान बन सकता है। जीवनमें परिवर्तन पाने के लिए आज ही मेरु पृष्ठ श्री यंत्र का प्रयोग करें।

 

देवी स्कंदमाता अपने अमोघ भक्तों को मुक्ति प्रदान करती है 

नवरात्रि के पांचवें दिन, भक्त का मन विशुद्धा चक्र तक पहुंच जाता है और इसी में रहता है। इस स्थिति में, भक्त का मन अत्यधिक शांत रहता है। स्कंदमाता  की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इसके अलावा ये भक्त के लिए मुक्ति का रास्ता खोलती है और सूर्य की भांति अपने भक्तों को असाधारण तेज और चमक प्रदान करती है।

मां स्कंदमाता का मंत्र और संबंधित तथ्यः 

 

ध्यान

 

स्कंदमाता का मंत्रः ॐ ह्रीं सः स्कंदमात्रये नमः , इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

 

पांचवें दिन का रंग : क्रीम

 

पांचवें दिन का प्रसादः केसर पिश्ता वाला श्रीखंड

पूजा मे उपयोगी वस्तु

पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

स्कन्द माता की आरती

जय तेरी हो अस्कंध माता
पांचवा नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहू मै
हरदम तुम्हे ध्याता रहू मै
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कही पहाड़ो पर है डेरा
कई शेहरो मै तेरा बसेरा
हर मंदिर मै तेरे नजारे
गुण गाये तेरे भगत प्यारे
भगति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
‘भक्त’ की आस पुजाने आई

 

 

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