Sunday, December 22
महाराष्ट्र से आईं दो स्त्रियॉं द्वारा मनुस्मृति के रचयिता आदिपुरुष मनु जी की कालिख पुती मूर्ति

मनु कहते हैं- जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं। वर्तमान दौर में ‘मनुवाद’ शब्द को नकारात्मक अर्थों में लिया जा रहा है। ब्राह्मण वाद  भी  मनुवाद के ही पर्यायवाची के रूप में उपयोग किया जाता है। वास्तविकता में तो मनुवाद की रट लगाने वाले लोग मनु अथवा मनुस्मृति के बारे में जानते ही नहीं है या फिर अपने निहित स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग अलापते रहते हैं। दरअसल, जिस जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया जाता है, उसमें जातिवाद का उल्लेख तक नहीं है। 


ख़बर फोटो और विडियो: दिनेश पाठक

 

 

राजस्थान हाईकोर्ट बेंच जयपुर मे मुख्य भवन के सामने स्थित मनु की मूर्ति पर महाराष्ट्र से आई दो महिलाओ ने कालिख पोत दी ‌‌‌‌‌‌राजस्थान उच्च न्यायालय परिसर मे आज भारी सुरक्षा वन्दोबस्त मे सेंध लगाकर महाराष्ट्र के औरंगाबाद से आई दो महिलाएं घुस गयी और परिसर मे स्थित मनु की मूर्ति को कालिख पोत दी जिन्हे सीसीटीवी के जरिये उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार द्वारा पुलिस को सूचित कर घटना स्थल से ही गिरफ्तार कर लिया ! ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ ‌ परिसर स्थित चौकी पुलिस ने उक्त दोनो महिलाओ को गिरफ्तार कर अशोक नगर पुलिस के हवाले कर दिया तथा पुलिस ने मामला दर्ज कर दोनो महिलाओ से पूछताछ शुरू कर जांच शुरु कर दी‌‌ ! ‌हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने रजिस्ट्रार से मिलकर परिसर की सुरक्षा बढाने तथा गिरफ्तार लागो के खिलाफ कडी कार्यवाही की मांग की ‌बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल उपमन एवं महासचिव संगीता शर्मा ने पुलिस आयक्त को पत्र लिखकर घटना मे शामिल स्थानीय लोगो एवं इनके तार कहां कहां जुडे है को मद्देनजर रखकर जांचकर कठोर कार्यवाही की मांग की है ‌! उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट परिसर मे 28 जून 1989 को मनु की प्रतिमा की स्थापना की थी जिसका विरोध दलित संगठनो ने किया जिसके बाद एक पीठ ने उसे हटाने के आदेश दिये जिसके विरोध मे विश्व हिन्दु परिषद के आचार्य धर्मेन्द्र ने ने एक याचिका माननीय न्यायाधीश महेन्द्र भूषण के समक्ष प्रस्तुत की जिसमे उक्त आदेश को स्टे कर दिया ! मनु की प्रतिमा पर कालिख पोतने की घटना का शहर के विभिन्न संघटनो ने कडी निंदा की तथा कायरना हरकत बताया तथा चेतावनी दी कि यदि दोषियो के खिलाफ कठोर कार्यवाही नही की तो आन्दोलन किया जायेगा !

और अंत में 

मनुस्मृति में दलित विरोध : मनुस्मृति न तो दलित विरोधी है और न ही ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देती है। यह सिर्फ मानवता की बात करती है और मानवीय कर्तव्यों की बात करती है। मनु किसी को दलित नहीं मानते। दलित संबंधी व्यवस्थाएं तो अंग्रेजों और आधुनिकवादियों की देन हैं। दलित शब्द प्राचीन संस्कृति में है ही नहीं। चार वर्ण जाति न होकर मनुष्य की चार श्रेणियां हैं, जो पूरी तरह उसकी योग्यता पर आधारित है। प्रथम ब्राह्मण, द्वितीय क्षत्रिय, तृतीय वैश्य और चतुर्थ शूद्र। वर्तमान संदर्भ में भी यदि हम देखें तो शासन-प्रशासन को संचालन के लिए लोगों को चार श्रेणियों- प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में बांटा गया है। मनु की व्यवस्था के अनुसार हम प्रथम श्रेणी को ब्राह्मण, द्वितीय को क्षत्रिय, तृतीय को वैश्य और चतुर्थ को शूद्र की श्रेणी में रख सकते हैं। जन्म के आधार पर फिर उसकी जाति कोई भी हो सकती है। मनुस्मृति एक ही मनुष्य जाति को मानती है। उस मनुष्य जाति के दो भेद हैं। वे हैं पुरुष और स्त्री।