सिद्धार्थ बिश्नोई ने राजस्थान के 363 पर्यावरण शहीदों का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवाया
रामगढ़, 6 अक्टूबर 2018:
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय चौ. भजनलाल जी के 88 वें जन्मदिवस पर खेज़ड़ली गाँव में पेड़ों की रक्षा हेतु प्राणो की आहुति देने वाले सभी 363 बिशनोई अमर-शहीदों को श्री चंद्रमोहन और सिद्धार्थ बिशनोई ने परिवार सहित श्रद्धांजली दी। चन्द्रमोहन बिश्नोई के बेटे और भजनलाल फाऊंडेशन के संस्थापक सिद्धार्थ बिश्नोई ने , इस जगह पर राजस्थान में पर्यावरण के लिए शहीद हुए 363 बिश्नोईयों की याद में एक सार्वजनिक स्मारक बनाया है जिसकी शुरुआत उन्होने एक 8 टन और 9 फूट के पत्थर को स्थापित कर के की। इस पत्थर पर सिद्धार्थ ने सभी 363 शहीदों का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवाया है।
इस मौके पर बिश्नोई समाज के अग्रणी सन्त राजिन्द्रानंद जी महाराज हरिद्वार वाले भी मौजूद रहे । उनके आशीर्वाद से ही शहीदी स्मारक की नींव का पत्थर स्थापित किया गया । बिश्नोई समाज का पर्यावरण से प्रेम जगजाहिर है जिसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिद्धार्थ बिश्नोई द्वारा भजनलाल फाऊंडेशन का गठन करते ही सबसे पहले पर्यावरण को बचाने के लिए साइकिल रैली करी जिसमें वे 50 साथियों के साथ 500 किलोमीटर से अधिक साइकिल चलाकर 200 से ज्यादा गाँवों में पौधारोपण किया।
चंद्रमोहन बिशनोई ने सभी समर्थकों को आने व इस शुभकार्य में सहयोग देने के लिए आभार प्रकट किया। सिद्धार्थ बिश्नोई ने लोगों को सम्बोधित करते हुए अपने दादा जी के आदर्शों को याद किया व युवाओं को पर्यावरण के क्षेत्र में हर सम्भव पर्यास करने का सुझाव दिया । उन्होंने कहा कि 363 वृक्षों की रक्षा करते हुए शहीदों के लिए 1989 में जोधपुर में स्मारक बना था और पंजाब सरकार ने घोषणा की थी कि पंजाब में भी स्मारक बनेगा लेकिन हरियाणा में खेज़ड़ली आंदोलन का कोई भी स्मारक ना होने के कारण उन्होंने यह मेमोरीयल बनाया। स्मारक में 8 टन के पत्थर के आस-पास एक पब्लिक पार्क का निर्माण किया जाएगा जिसमें वे खेजरी के पेड़ भी लगाएँगे। वह चाहते है कि हरियाणा के लोग खेज़ड़ली के शहीदों से प्रेरणा ले और अपने पर्यावरण व अधिकारो के लिए लड़ें। सिद्धार्थ ने कहा कि जिस प्रकार जोधपुर में खेज़ड़ली आंदोलन के बाद हरे पेड़ न काटने का शाही आदेश जारी किया गया था उसी प्रकार इस सरकार को भी लोगों की आवाज़ सुनकर उचित नितिया बनानी चाहिए।
दान में सबसे बड़ा दान प्राणों का दान होता है। पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़ों को बचाने के लिए 363 बिश्नोई समाज के लोगों ने प्राणों की आहुति दी । सन् 1730 में राजस्थान के जोधपुर से 25 किलोमीटर दूर छोटे से गांव खेजड़ली में यह घटना घटित हुई । सन् 1730 में जोधपुर के राजा अभयसिंह ने नया महल बनाने के कार्य में चूने का भट्टा जलाने के लिए इंर्धन हेतु खेजड़ियाँ काटने के लिए अपने कर्मचारियों को भेजा । वहां अमृतादेवी बिश्नोई की अगुवाई में सभी ग्रामवासीयों ने पेड़ों से गले लगकर उन्हें जकड़ लिया और एक एक करते हुए 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। विश्व में ऐसा अनूठा कोई दूसरा उदाहरण नहीं है जिसमे कि गुरु जम्भेश्वर महाराज के उपदेश “सिर साटे रुख रहे तो भी सस्तो जाण” – को सही साबित कर दिया। जिसका अर्थ है कि अगर हम अपनी गर्दन कटा कर भी वृक्ष को बचा सकते हैं तौ भी वो हमारे लिए बहुत सस्ता सोदा है।
उन सभी शहीदों के साहस को नमन करते हुए सिद्धार्थ बिश्नोई ने इस शाहिद स्मारक की स्थापना अपने दादाजी के जन्मदिवस पर करी। बिशनोई रतन, युग पुरुष, जननायक, गरीबों के मसीहा व पर्यावरणप्रेमी स्वर्गीय चौ भजनलाल जी के जन्मोत्सव पर उनके सबसे बड़े पोत्र सिद्धार्थ ने 363 बिशनोई शहीदों को श्रधांजलि देकर बिशनोई समाज का नाम और भी ऊँचा किया। रामगढ़ में चौ चन्द्रमोहन के छोटे बेटे मोहित बिश्नोई के समाधिस्थल पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
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