दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.
दिग्विजय सिंह अक्सर अपने बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं. उनके बयान और विवाद का चोली दामन का रिश्ता रहा है. लेकिन अपने खास अंदाज में बात करने वाले दिग्विजय सिंह अपनी बातों को सामने रखने में तनिक भी संकोच नहीं करते. खासकर तब जब बीजेपी को किसी मसले पर घेरना हो तो ऐसा मौका गंवाना उन्हें गवारा नहीं है. वैसे हाल की गतिविधियों से पता चलता है कि कांग्रेस पार्टी उनसे किनारा करने लगी है. लेकिन ये दिग्विजय सिंह हैं, जो अपने एक के बाद दूसरे बयानों से मीडिया की सुर्खियां बटोरने में पिछड़ते नहीं हैं.
भले ही वो सोशल मीडिया में ट्रोल हों या फिर टीवी या अखबारों में उनके बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया हो. लेकिन दिग्गी राजा सुर्खियों में न रहें ये ज्यादा दिन तक हो नहीं सकता. बीजेपी पर अटैक करने में वो कई बार जल्दबाजी दिखा चुके हैं.
इन दिनों वो सोशल मीडिया पर एक ट्वीट करने के चलते खूब चर्चा में हैं. इस ट्वीट में उन्होंने योगी आदित्यनाथ को यूपी में जर्जर हो रहे स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए आड़े हाथों लिया है. वैसे उन्होंने जिस फोटोग्राफ का चयन ट्वीट में किया है, उसमें एंबुलेंस के ऊपर तेलगु में शब्द लिखे हुए हैं. इस सच्चाई के सामने आने पर सोशल मीडिया में फेक फोटोग्राफ इस्तेमाल करने को लेकर उनकी खूब खिंचाई हो रही है.
लेकिन दिग्विजय सिंह कभी भी इसकी परवाह नहीं करते. वो कहते हैं कि मोदी, शाह, बीजेपी और संघ का विरोधी वो शुरू से रहे हैं. और आगे भी देश को तोड़ने वाली ताकतों के खिलाफ लड़ते रहेंगें. लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने उन्हें बीजेपी और आरएसएस का एजेंट करार देकर डिफेंसिव कर दिया है.
दरअसल मायावती ने यह आरोप लगा दिया है कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होने की वजह दिग्विजय सिंह हैं और वो आरएसएस और बीजेपी के एजेंट के रूप में कांग्रेस पार्टी के अंदर कार्य कर रहे हैं. इस बयान से तिलमिलाए दिग्विजय सिंह ने कहा कि वो हमेशा से कांग्रेस और बीएसपी गठबंधन के पक्षधर रहे हैं और वो मायावती का सम्मान करते हैं. वो राहुल गांधी को अपना नेता मानते हैं और कोई भी काम उनकी मर्जी के बगैर नहीं करते हैं.
दिग्विजय सिंह ने बीएसपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में तालमेल करने में बीएसपी ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई, वहीं मध्यप्रेदश में जब बात चल ही रही थी, उसी दरमियान बीएसपी ने अपने 22 उम्मीदवार घोषित कर दिए. इतना ही नहीं आरोप-प्रत्यारोप के दौर में दिग्विजय सिंह ने मायावती पर आरोप लगाया कि वो सीबीआई के डर से गठबंधन में शामिल नहीं हो रही हैं. जाहिर है इस बयान से तिलमिलाई मायावती ने गठबंधन नहीं होने का सारा ठीकरा दिग्विजय के मत्थे फोड़ा और उनके बहाने कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया.
दिग्विजय सिंह अपने ऊपर लगे इन आरोपों का जवाब खुद को संघ और बीजेपी का धुर विरोधी बताते हुए देते हैं. जाहिर है सालों से बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे दिग्विजय के ऊपर मायावती ने संघ और बीजेपी का एजेंट बताकर उनकी राजनीतिक साख की जड़ें हिलाने की कोशिश की है. जिसने दिग्गी राजा को थोड़ा डिफेंसिव कर दिया है.
वैसे इन दिनों दिग्विजय सिंह पार्टी के भीतर भी हाशिए पर दिखाई पड़ने लगे हैं. उन्हें पार्टी अध्यक्ष ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में जगह न देकर सबको चौंका दिया है. पार्टी के इतने बड़े कद्दावर नेता को कांग्रेस के होर्डिंग और कट आउट में जगह नहीं दिया जा रहा है. भोपाल में संपन्न हुई रैली में पार्टी के पोस्टर में सिंधिया, कमलनाथ, और कांतिलाल भूरिया जैसे नेताओं को जगह दिया गया लेकिन दिग्विजय सिंह नदारद रहे. जाहिर है इसके बाद प्रदेश में उनकी अहमियत को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं.
वैसे दिग्विजय सिंह कांग्रेस के नेताओं में वो पहले शख्स हैं, जिन्होंने राहुल गांधी को नेतृत्व देने को लेकर सबसे पहले आवाज बुलंद करना शुरू किया था. माना जा रहा था कि राहुल राजनीतिक शह और मात का खेल दिग्विजय सिंह की देख रेख में सीख रहे थे. इतना ही नहीं भट्ठा परसौल में राहुल के किसान प्रेम को लेकर जो सुर्खियां बटोरी गई थी. उसका सारा क्रेडिट भी दिग्विजय सिंह ने ही लिया. लेकिन हाल के कई डेवलपमेंट पार्टी के भीतर उनकी कमजोर होती पकड़ को साफ बयां कर रही हैं.
ऐसे में दिग्विजय सिंह का नीतीश कुमार पर जोरदार हमला कई मायनों में अखबार की सुर्खियों से ज्यादा कुछ लग नहीं रहा है. दिग्विजय सिंह ने हाल के अपने बयान में नीतीश कुमार को सत्ता का भूखा करार दिया है, साथ ही ये भविष्यवाणी कर डाली है कि नीतीश लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए की हार के खतरे को भांप कर यूपीए गठबंधन में शामिल होंगे.
सवाल उनके इस बयान को लेकर गंभीरता का है. ये महज राजनीतिक है या फिर आने वाले समय में होने वाली राजनीतिक गोलबंदी की भविष्यवाणी. वैसे जानकार इसे राजनीतिक टीका टिप्पणी से ज्यादा कुछ खास तवज्जो नहीं देते हैं.
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कांग्रेस की वर्तमान टीम में दिग्विजय सिंह का रोल नीति निर्धारक के तौर पर तो बिल्कुल नहीं दिखता है. मध्य प्रदेश में 10 साल सीएम के पद पर कार्य कर चुके दिग्विजय सिंह के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ की जोड़ी भारी पड़ने लगी है. कभी नक्सल के ऊपर कांग्रेस सरकार के एक्शन की हवा निकाल देने वाले दिग्विजय सिंह के लिए उनकी अपनी छवि ही उन्हें भारी पड़ने लगी है.
गोवा में सरकार नहीं बनने का जिम्मेदार उन्हें ठहराया जा रहा है. उन पर आरोप था कि उनकी निष्क्रियता के चलते पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. इतना ही नहीं उन पर बीजेपी के आगे झुक जाने का भी आरोप लगा क्यूंकि दिग्विजय वहां के प्रभारी थे. वैसे दिग्विजय खुद कहते हैं कि उनका नाम मध्य प्रदेश में जो भी सीएम के तौर पर ले रहा है, वो उनका और पार्टी का हितैषी नहीं हो सकता है. लेकिन दिग्विजय सिंह के ये बयान पूरी तरह राजनीतिक हैं, इससे इनकार नहीं किया जा सकता. परंतु पार्टी उन्हें खास तवज्जो दिखाई देती नहीं दिख रही है.