तारिक अनवर ने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल को मुद्दा बनाकर शरद पवार और पी ए संगमा के साथ कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था
तो क्या अब तारिक अनवर बतौर सांसद भी इस्तीफा देंगे या ….
बात पिछले 22 फरवरी की है. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पुणे में अपनी सक्रिय राजनीति की 50वीं वर्षगांठ बिलकुल यूनिक तरीके से मना रहे थे. आयोजनकर्ता ‘जगटीक मराठी ऐकेडमी’ ने एमएनएस चीफ राज ठाकरे को खुले मंच पर शरद पवार के साक्षात्कार के लिये आमंत्रित किया था. इस पब्लिक मेगा शो का नाम रखा गया था ‘फ्री एक्सचेन्ज विटविन टू जेनेरेशन’.
राज ठाकरे ने सीधा सवाल किया ‘राजनीति में सत्य बोलने का खामियाजा आपने कभी झेला है?’ शरद पवार ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘राजनीति में सच बोलना चाहिए. लेकिन सच बोलने से उस समय बचना चाहिए जब लगे कि ऐसा करने से व्यक्तिगत और समाज को क्षति होगी’.
मराठी मूल के पुणे वासी एक कलमजीवी ने इस वाकये को याद करते हुए बताया कि ‘शरद पवार का राफेल डील पर दिया गया बयान इसी सोच के परिप्रेक्ष्य में लोगों को देखना चाहिए. उनका बयान लॉन्ग रन में उनको व्यक्तिगत लाभ पहुंचाएगा और समाज की क्षति से बचाएगा’.
गुरुवार को एक मराठी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में पूर्व रक्षा मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि ‘देश की जनता को मोदी सरकार की नीयत पर कोई शक नहीं है और राफेल फाइटर विमान के तकनीकी पहलुओं पर चर्चा करने की विपक्ष की मांग उचित नहीं है’.
विषय वस्तु को आगे बढ़ाते हुए हम बिहार की धरती पर लाते हैं. क्योंकि शरद पवार ने शब्द बाण पुणे में छोड़ा परन्तु घायल हो गए कटिहार के 67 वर्षीय एनसीपी सांसद और राज्य के कद्दावर ‘सेक्युलर’ नेता तारिक अनवर. अपने संगठन के चीफ के ‘बयान’ से आहत तारिक अनवर ने बागी रूख अपनाते हुए सांसदी और राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा करने की घोषणा कर दी.
कन्फर्म सूचना है कि तारिक अनवर 20 साल बाद दोबारा अपने पुराने राजनीतिक घर कांग्रेस में वापस जाएंगे और मीडिया में एक लिखित बयान देंगे कि ‘शाम का भूला सुबह को घर आ गया’. अनवर के करीबी बताते हैं कि कांग्रेस में जाने की बात बहुत पहले से चल रही है. उचित मौके का इन्तजार हो रहा था, जिसे शरद पवार ने अपने बयान से दे दिया.
तारिक अनवर ने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल को मुद्दा बनाकर शरद पवार और पी ए संगमा के साथ कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था. इन तीनों का तर्क था कि किसी विदेशी महिला को कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए. कांग्रेस ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए तीनों को पार्टी से निलंबित भी कर दिया था.
तारिक अनवर सत्तर के दशक से ही सक्रिय राजनीति में हैं. 1975 से 1977 के बिहार यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे. 1977 लोकसभा हार गए लेकिन 1980 और 1984 में कटिहार से जीते. इस कालखंड में यूथ कांग्रेस और सेवा दल के नेशनल अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 1989 और 1991 लोकसभा में हारने के बाद 1996 में भारी मतों से जीते थे. बिहार प्रदेश कांग्रेस पार्टी के एक साल तक अध्यक्ष भी थे, जब भागवत क्षा आजाद बिहार के सीएम बने थे. यूपीए द्वितीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे हैं.
कांग्रेस के इनसाइडर बताते हैं कि तारिक अनवर को गांधी परिवार में मोह भंग अस्सी दशक के अंतिम समय में होना शुरू हो गया था. क्योंकि आश्वासन के बावजूद भी पीएम राजीव गांधी ने इनको बिहार का सीएम नहीं बनाया. अनवर के साथ दशकों तक काम किए एक नेता बताते हैं कि राजीव गांधी ने यहां तक कह दिया था कि बिहार के सीएम सत्येन्द्र नारायण सिंह आपको डिप्टी सीएम भी रखने को तैयार नहीं हैं. क्योंकि ऐसे प्रशासनिक दायित्वों के लिए आप परिपक्व नहीं हैं.
तारिक अनवर इतना तो समझते हैं कि एनसीपी का बिहार में कोई वजूद नहीं है. अगले महाभारत के लिए सारे दल तैयारी में लग गए हैं. कहते हैं कि आरजेडी के एक बड़े नेता ने भी तारिक अनवर को शरद पवार को तलाक देकर कांग्रेस में जाने सलाह दी थी. बकौल एक एनसीपी लीडर ‘ लोकसभा क्षेत्र मैक्सिमम वोटर्स दबाव बनाए हुए थे कि जितना जल्दी हो सके सांसद महोदय कांग्रेस में चले जाएं’.
बहरहाल, तारिक अनवर के जाने से शरद पवार के राजनीतिक हेल्थ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि महाराष्ट्र में कटिहार के सांसद का एक प्रतिशत भी लोगों के बीच प्रभाव नहीं है. वैसे, बिहार में ऐसे लोग भी हैं, जो तारिक अनवर के उपर विश्वासघाती होने का आरोप लगाते हैं. जनता दल यू के प्रवक्ता राजीव रंजन सिंहा तो यहां तक कहते हैं कि शरद पवार ने तारिक अनवर जैसे जमीन रहित व्यक्ति को दो बार राज्यसभा भेजा लेकिन बदले में इन्होंने उस उपकार को ठेंगा दिखा दिया.