Thursday, December 5


बीजेपी के मुंह में ‘राम’ और दिल में ‘नाथूराम’ हैं


कांग्रेस ने अयोध्या से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पृष्ठभूमि में गुरुवार को बीजेपी पर आस्था के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया और कहा कि इस विवादित विषय में शीर्ष अदालत की तरफ से जो भी निर्णय आए, उसको सभी लोगों को स्वीकार करना चाहिए.

पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने भी आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ पार्टी के मुंह में राम और दिल में नाथूराम हैं. उन्होंने कहा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सदैव ये मत रहा है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के मामले में न्यायालय का जो भी निर्णय आए, उसे सभी पक्षों को मानना चाहिए और सरकार को उसे लागू करना चाहिए.’

प्रियंका ने कहा, ‘दुर्भाग्य से बीजेपी लगातार 30 सालों से (1992 के बाद) राम मंदिर मुद्दे पर देश की जनता को बरगलाने, बहकाने और बेवकूफ बनाने का षडयंत्र करती आई है. बीजेपी वो पार्टी है, जिसके मुंह में राम और बगल में छुरी, मुंह में राम और दिल में नाथूराम है.’

उन्होंने कहा, ‘1999 के बाद, यानी गत 20 वर्षों में आधा समय बीजेपी की सरकारें देश में रही हैं. वे राम मंदिर का नारा देकर हर बार वोट बटोरते हैं और गद्दी पर बैठने के बाद, कैकेयी की तरह भगवान राम को वनवास भेज देते हैं.’ कांग्रेस प्रवक्ता ने आरोप लगाया, ‘हर चुनाव से 6 महीने पहले इनको वोट बटोरने के लिए भगवान् राम की याद आ जाती है. सत्ता पाने के लिए भगवान राम और सत्ता में आने के बाद भगवान राम को वनवास’ यही असली बीजेपी का चेहरा है.’

राहुल गांधी की कैलाश यात्रा पर कुछ बीजेपी नेताओं के विवादित बयान की ओर इशारा करते हुए प्रियंका ने कहा, ‘इन अधर्मी लोगों ने बार-बार भोले शंकर की भक्ति तक पर सवाल खड़े किए. जब कांग्रेस अध्यक्ष, केदारनाथ धाम की दुर्गम यात्रा और कैलाश मानसरोवर जाते हैं, तब भी बीजेपी के पेट में दर्द होता है. आज जब वह चित्रकूट धाम से अपनी मध्यप्रदेश की यात्रा की शुरूआत कर रहे हैं तो बीजेपी की छटपटाहट और बौखलाहट सभी सीमाएं पार कर गईं हैं.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की ओर से मैं अनुरोध करूंगी कि बीजेपी के लोग घबराएं नहीं क्योंकि संयम, मर्यादा और ईश्वर की भक्ति- भारतीय सभ्यता का अटूट हिस्सा है. ये जान लें कि अगर आप ईश्वर की भक्ति में भी रुकावट डालेंगें तो पौराणिक मान्यताओं के अनुरूप पाप और श्राप के भागीदार बनेगें. हमारी यही पार्थना है कि ईश्वर आपको सद्बुद्धि दें.’

सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गई टिप्पणी से जुड़़ा सवाल पांच सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने से गुरूवार को इंकार कर दिया. शीर्ष अदालत ने 1994 के फैसले में टिप्पणी की थी कि मस्जिद इस्लाम का अंग नहीं है.

शीर्ष अदालत ने 2:1 के बहुमत से अपने फैसले में कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दीवानी वाद का निर्णय साक्ष्यों के आधार पर होगा और 1994 का निर्णय इस मामले में प्रासंगिक नहीं है.