अब सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. हिंदी भाषी राज्यों में अपनी जड़े जमाने वाली बीजेपी इस तबके के वोटरों को लेकर सशंकित भी है और चिंतित भी
एससी-एसटी एक्ट में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाले सरकार के कदम का विरोध तेज हो रहा है. मध्यप्रदेश के ग्वालियर के फूलबाग मैदान में जुटे करीब दर्जन भर संगठनों की तरफ से इस मुद्दे पर हल्लाबोल शुरू किया गया है. मध्यप्रदेश में सवर्ण संगठनों ने विरोध ज्यादा तेज कर दिया है.
क्षत्रिय महासभा, गुर्जर महासभा, परशुराम सेना जैसे सवर्ण जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों की ओर से विरोध का बिगुल फूंका गया है. 6 सितंबर को इस मुद्दे पर भारत बंद का आह्वान भी किया जा रहा है. इनकी नाराजगी बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ है. लेकिन, निशाने पर बीजेपी के नेता और केंद्र और राज्य सरकार के मंत्री ज्यादा हैं. क्योंकि सरकार बीजेपी की ही है.
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एससी-एसटी एक्ट से जुड़े मामले में किसी भी व्यक्ति पर मुकदमा दर्ज होने से पहले उस पर आरोपों की जांच की जाएगी. इसी के बाद देशभर में एसएसी-एसटी तबके की तरफ से विरोध तेज हो गया था. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों और बीजेपी के सहयोगी दलों की तरफ से भी इस मुद्दे पर सरकार से हस्तक्षेप की मांग की गई थी.
राजनीतिक दबाव में केंद्र की बीजेपी सरकार ने इस मामले में संसद के मॉनसून सत्र में कानून पास कराकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. अब एक बार फिर से पुराने ढर्रे पर ही एससी-एसटी कानून के तहत कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त हो गया है. यानी इस एक्ट में फिर से बिना जांच के भी मुकदमा दायर करने और गिरफ्तारी का रास्ता साफ हो गया है.
एससी-एसटी संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए पिछले 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया था, जिसमें काफी हिंसक झड़पें भी हुई थीं. मध्यप्रदेश समेत देश भर में बंद का असर भी दिखा था. सरकार को लगा कि इस तबके को मनाने और विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने वाला कानून पास कराना होगा. सरकार ने ऐसा कर भी दिया. लेकिन, अब यह मुद्दा उसके गले की हड्डी बनता जा रहा है.
बीजेपी के खिलाफ सवर्ण हो रहे लामबंद:
अब सवर्ण संगठनों का विरोध सरकार और बीजेपी के लिए परेशानी का कारण बनता जा रहा है. सबसे ज्यादा विरोध मध्यप्रदेश में दिख रहा है, जहां, दो महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव होना है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस वक्त राज्य भर का दौरा कर रहे हैं. लेकिन, उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी नेता प्रभात झा, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे कई दूसरे नेताओं को भी सवर्ण संगठनों की तरफ से घेरा जा रहा है. उनसे जवाब मांगा जा रहा है. लेकिन, बीजेपी के इन सवर्ण नेताओं के लिए उन्हें समझा पाना मुश्किल हो रहा है.
विरोध की आग मध्यप्रदेश से आगे भी पहुंच रही है. बिहार और यूपी समेत दूसरे प्रदेशों में एससी-एसटी एक्ट के मुद्दे पर विरोध हो रहा है. बिहार के बेगूसराय, गया, नालंदा और बाढ़ जिलों में सवर्ण संगठनों ने बंद भी बुलाया. कई जगह पर नेशनल हाईवे भी जाम किया और जमकर विरोध किया.
विरोध बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ दिख रहा है. लेकिन, इससे सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को होता दिख रहा है. इन सवर्ण संगठनों की तरफ से विरोध के क्रम में अगले चुनाव में नोटा दबाने की अपील की जा रही है. इनकी तरफ से बार-बार यही कहा जा रहा है कि नोटा के जरिए हम बीजेपी और कांग्रेस दोनों का विरोध करेंगे.
दरअसल, बीजेपी को अबतक सवर्णों की पार्टी कहा जाता रहा है. ब्राम्हण –बनिया की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने धीरे-धीरे समाज के हर तबके में अपना विस्तार भी किया है. पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों के अलावा, एससी-एसटी तबके में भी बीजेपी का जनाधार पहले से कहीं ज्यादा बेहतर हुआ है. खासतौर से 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में कास्ट बैरियर टूट जाने के बाद बीजेपी के वोट शेयर में जबरदस्त इजाफा हुआ. अपने दम पर बीजेपी पहली बार सत्ता में आई.
लोकसभा में कितने हैं एससी-एसटी सांसद?
यहां तक कि लोकसभा में एससी-एसटी सांसदों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 131 है. जिसमें 84 एससी और 47 एसटी सांसदों की संख्या है. मौजूदा वक्त में बीजेपी के पास इस तबके के 67 सांसद हैं. ऐसे में बीजेपी किसी भी कीमत पर इस तबके की नाराजगी नहीं मोल लेना चाह रही थी. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने का फैसला किया गया.
लेकिन, अब सवर्णों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी को सवर्णों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. हिंदी भाषी राज्यों में अपनी जड़े जमाने वाली बीजेपी इस तबके के वोटरों को लेकर सशंकित भी है और चिंतित भी. तभी तो पार्टी नेताओं और मुख्यमंत्रियों को सवर्ण तबके को समझाने की जिम्मेदारी दी गई है कि आखिर यह फैसला क्यों करना पड़ा.
वजह जो भी हो, लेकिन, सवर्ण मतदाताओं के भीतर अब यह बात घर कर गई है कि एससी-एसटी तबके को साधने के लिए सरकार ने उनके साथ अन्याय किया है. अब इस बात को लेकर उनका विरोध शुरू हो गया है. मंडल कमीशन लागू होने के बाद शायद यह पहला मौका है कि सवर्ण तबका भी अब खुलकर अपनी बात कर रहा है. चुनावी साल में राजनीतिक दल परेशान हैं. बीजेपी डरी है कहीं यह नाराजगी उस पर भारी न पड़ जाए ?