Saturday, December 21


‘दामाद श्री’ पुस्तिका में लिखे आरोपों और इस संबंध में गुरुग्राम पुलिस द्वारा दायर की गई एफआईआर में जबरदस्त समानता है.


2014 के लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने तत्कालीन यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का आरोप लगाते हुए ‘दामाद श्री’ नाम की एक पुस्तिका जारी की थी. अब इसे संयोग कहें या कुछ और, ‘दामाद श्री’ पुस्तिका में लिखे आरोपों और इस संबंध में गुरुग्राम पुलिस द्वारा दायर की गई एफआईआर में जबरदस्त समानता है. ये एफआईआर गुरुग्राम के खेड़की दौला पुलिस स्टेशन में सुरेंद्र शर्मा नाम के एक शख्स ने राबर्ट वाड्रा के खिलाफ दर्ज करायी है.

‘दामाद श्री’ नाम की इस बुकलेट के कवर पर राबर्ट वाड्रा की फोटो छपी हुई है और वो अपने अक्सर पहने जाने वाले परिधान,टाइट फिटिंग शर्ट, टाई डार्क सन ग्लासेज पहने हुए हैं. उनकी तस्वीर के पीछे बैकग्राउंड में सोनिया गांधी और राहुल गांधी दिखाई दे रहे हैं. इस बुकलेट की शुरुआत होती है वाड्रा के स्काईलाइट हॉस्पिटैलिटी रजिस्ट्रेशन की कहानी के साथ.

नवंबर 2007 में एक लाख रुपए की इक्विटी के साथ इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराने के बाद गुड़गांव के सेक्टर 83 स्थित शिखपुर गांव में 3.51 एकड़ जमीन की खरीद की गयी वो भी फर्जी चेक के सहारे. इस जमीन के एवज में ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज को 7.5 करोड़ रुपए का एक चेक फरवरी 2008 में कंपनी की तरफ से जारी किया गया जो कि बाद में फर्जी पाया गया था.

इस जमीन की खरीद के बाद इस जमीन का लैंडयूज बदला गया और उसके बाद इस जमीन को देश की बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में से एक डीएलएफ को अगस्त 2008 में 58 करोड़ रुपए में बेच दिया गया.

पुलिस को जो शिकायत सुरेंद्र शर्मा ने की है उसमें भी इसी तथ्य को इंगित किया गया है. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि इस मामले में तथ्य एक जैसे ही हैं ऐसे में शिकायत और उससे संबंधित जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की है उसमें एकसमान चार्ज एकसमान तरीके से लगाए गए होने चाहिए. लेकिन सच्चाई ये है कि एफआईआर किसी निजी व्यक्ति द्वारा दर्ज कराया गई है न कि किसी स्टेट एजेंसी के द्वारा. इसके अलावा एफआईआर करने का समय भी मायने रखता है. इसका असर निश्चित रूप से हरियाणा की राजनीति और अन्य मामलों पर पड़ सकता है.

यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि इस मामले की पड़ताल राज्य की एजेंसियां पहले कई सालों से कर रही थी. इस मामले पर कॉन्सोलिडेशन ऑफ लैंड होल्डिंग के डायरेक्टर जनरल अशोक खेमका पहले भी ऐतराज जताने के बाद इस मामले का खुलासा वो पब्लिक में 2012 में ही कर चुके थे. जस्टिस एस.एन ढींगरा कमेटी ने भी इस संबंध में सरकार को अपनी रिपोर्ट पिछले साल के शुरू में ही सौंप दी थी. इसके बावजूद भी अधिकारिक एजेंसियों ने इस मामले में वाड्रा और हुडा के खिलाफ के अपराधिक मामला दर्ज करने के लिए किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया था.

कांग्रेस की समस्या ये है कि इस मामले में केवल वाड्रा ही आरोपी नहीं हैं बल्कि हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा भी इस मामले में अभियुक्त बनाए गए हैं. उसी तरह से ओंकारेश्वर प्रॉपर्टीज और रियल एस्टेट कंपनी डीएलएफ का नाम भी आरोपियों की सूची में दर्ज है.

जिन धाराओं के तहत पुलिस ने वाड्रा और हुडा पर मामला दर्ज किया है वो काफी गंभीर हैं. धारा 420 (धोखाधड़ी),120 B (आपराधिक साजिश), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी),471 (जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करना) और प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 13 के तहत इन पर मुकदमा दर्ज किया गया है.

हालांकि अभी तक एफआईआर करने वाले सुरेंद्र शर्मा और बीजेपी के बीच किसी तरह के संबंध की बात साबित नहीं हुई है लेकिन ये मानना सही नहीं होगा कि कोई साधारण व्यक्ति किसी पुलिस स्टेशन में जाकर इस तरह का कोई गंभीर एफआईआर दर्ज कराने की हिम्मत करेगा और वो भी वाड्रा और भूपेंद्र सिंह हुडा जैसे शक्तिशाली और रसूखदार व्यक्तियों और डीएलएफ जैसी बड़ी कंपनी के खिलाफ. सत्ताधारी दल बीजेपी के कुछ नेताओं का मानना है कि सरकार का ये चाहना कि इस मामले में कोई सामान्य नागरिक वाड्रा और हुडा के खिलाफ क्रिमिनल केस फाइल कराए, उसकी गंभीरता को दर्शाता है. अब ये स्पष्ट हो चुका है कि सरकार इस मामले को तार्किक तरीके से आगे ले जाने को प्रतिबद्ध है.

मामले की जांच के दौरान ढींगरा कमेटी की रिपोर्ट का इस्तेमाल सोनिया गांधी के दामाद के खिलाफ केस को मजबूत करने के लिए किया जाएगा.

ये भी संयोग की बात है कि जिस दिन गुरुग्राम में रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करायी गयी, उस दिन राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर गुरुग्राम में ही मौजूद थे. हालांकि मुख्यमंत्री के एक सहयोगी ने इसे स्पष्ट किया कि इससे वहां उनकी मौजूदगी का कोई लेना देना नहीं और वो वहां पर अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक ही कार्यक्रमों में शामिल होने गए थे.

सवाल ये उठता है कि वाड्रा के खिलाफ केस दायर करना केवल राज्य के एक ईमानदार व्यक्ति की पहल है या फिर ये सत्ता पक्ष की तरफ से सोच विचार कर लिया गया फैसला है. वैसे दोनों मामलों में बीजेपी के लिए स्थिति अनुकूल ही है.‘दामाद श्री’ पुस्तिका के जारी किए जाने के चार साल बाद अब हरियाणा की बीजेपी सरकार ये दावा कर सकती है कि उसने इस मामले में कानून को अपना काम करने देने की पहल कर दी है.

फ़र्स्टपोस्ट को अपने विश्वसनीय सूत्रों ये पता चला है कि चार सालों तक वाड्रा के खिलाफ मुलायम रुख अपनाने के बाद सरकार को अब इस मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिए जांच में तेजी लाने की आवश्यकता महसूस हुई है. वाड्रा के मामले में बात करते हुए सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का कहना था, ‘किसी को बख्शा नहीं जाएगा. कानून तोड़ने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा.’ बीजेपी के एक और वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘वाड्रा के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई आने वाले समय में और की जाएगी. मैं जानता हूं की इस संबंध में कुछ प्रगति हुई है.’

राजस्थान के बीकानेर में भी वाड्रा की संदेहास्पद लैंड डील की जांच ने गति पकड़ी है. बीकानेर में जब वाड्रा की लैंड डील हुई थी तो उस समय देश में यूपीए का शासन था और राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार सत्ता में थी. संदेहास्पद लैंड डील के इस मामले में भी वाड्रा और गहलोत सरकार के बीच सांठगांठ को लेकर मीडिया में रिपोर्टों का प्रकाशन होता रहा है.

लेकिन राजस्थान में अभी तक इस संबंध में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है. पिछले साल अगस्त में राजस्थान पुलिस के द्वारा दायर किए गए 18 मामलों को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया था. इन मामलों में एक मामला वाड्रा से भी संबंधित था. एक अधिकारी का कहना था कि कागजातों की समीक्षा में दस्तावेजों के फर्जीवाड़े के चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा हुआ है. पता चला है कि जमीन के एक टुकड़े से रियल एस्टेट बिजनेस में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए जमीन को कई लोगों के हाथों से गुजारा गया जिनमें से कुछ लोगों का तो अस्तित्व तक नहीं है.

इस साल फरवरी में वाड्रा एसोसिएट्स के परिसर में इंफोर्समेंट डायरेक्टोरेट की ओर से जांच पड़ताल भी की गयी थी. इससे पहले ईडी ने जयप्रकाश भार्गव और अशोक कुमार को प्रिवेंशन ऑफ मनी लांड्रिंग के तहत इसी मामले में गिरफ्तार किया था. कुमार, काग्रेंस नेता और वाड्रा के नजदीकी महेश नागर का ड्राइवर है और इसका इस्तेमाल वाड्रा की ओर से राजस्थान में जमीन खरीदने में किया गया था.

सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शनिवार को इंडियन पोस्टल बैंक के उद्धाटन के समय दिए गए बयान का आशय भी इस तरह के मामलों में मिलता जुलता है. पीएम मोदी ने कहा था कि जिस समय अधिकतर लोग फोन बैंकिंग से अनजान थे उस समय भी नामदार (पीएम मोदी कांग्रेस के गांधी परिवार को इससे संबोधित करते रहे हैं) ने एक फोन कॉल के जरिए बैंकों को अपने चहेतों को लोन देने के चलन की शुरुआत की थी.

पीएम ने ये भी कहा कि 2014 के पहले मोटा लोन लेने वाले उन 12 डिफॉल्टरों पर भी कड़ी कार्रवाई की जा रही है और उन सबसे पाई पाई की वसूली की जाएगी. प्रधानमंत्री का बयान और उसका समय, सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है और लोगों को लग रहा है कि उन्होंने वाड्रा को लेकर भी इशारा किया है जिसमें कुछ डिफॉल्टर उद्योगपतियों को फोन पर लोन दिलाने के मामले में वाड्रा की भी भूमिका रही है.