राज्य सरकार ने कोर्ट के समक्ष लगभग स्वीकार कर लिया है कि अनुच्छेद 35-ए के कुछ हिस्से हटाने के लायक हैं: फारूक अब्दुल्ला
सुनवाई के दौरान एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि अनुच्छेद 35ए में लिंग भेदभाव भी एक पहलू है
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 35ए को लेकर एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) की सुप्रीम कोर्ट में दी गई दलील की आलोचना की है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट में एएसजी ने दलील दी थी कि संविधान के अनुच्छेद 35ए में ‘एक पहलू लिंग भेदभाव का भी है.’
दरअसल एएसजी ने सुनवाई के दौरान इस दलील पर सहमति व्यक्त की कि अनुच्छेद 35ए और कुछ खास पहलुओं पर बहस की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, ‘इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि इसमें लिंग भेदभाव का एक पहलू है.’
अब्दुल्ला ने एक बयान में कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार की तरफ से कोर्ट के समक्ष अगर इस तरह का बयान दिया गया है. तो इस से संकेत मिलता है कि अनुच्छेद 35-ए का पक्ष लेने और चुनौती को संविधान पीठ के पहले के फैसले के आधार पर खारिज करने की मांग करने के बदले राज्य सरकार ने कोर्ट के समक्ष लगभग स्वीकार कर लिया है कि अनुच्छेद 35-ए के कुछ हिस्से हटाने के लायक हैं.
महा-अधिवक्ता जम्मू कश्मीर के लोगों के हितों के संरक्षक हैं
उन्होंने चिंता जताई कि ऐसे संवेदनशील मुकदमे में जम्मू-कश्मीर के महा-अधिवक्ता को हाशिए पर डाल दिया गया है. जो जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत राज्य के अनोखे कानूनी इतिहास और संवैधानिक दर्जे से संबंधित है. अब्दुल्ला ने कहा कि महा-अधिवक्ता को राज्य के लिए नियुक्त किया गया है और वह राज्य के लोगों के हितों की रक्षा करने और उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए बाध्य हैं. वह संवैधानिक अधिकारी हैं और सभी अदालतों के समक्ष जम्मू-कश्मीर के लोगों के हितों के संरक्षक हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 35ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर महत्वपूर्ण सुनवाई शुक्रवार को अगले साल जनवरी तक स्थगित कर दी थी. यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के मूल निवासी को विशेष अधिकार प्रदान करता है.
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