जगत के पालनहार का कृष्ण अवतार विधि का विधान था और वे स्वयं दुनिया का भाग्य लिखते हैं, उनके भाग्य को कोई नहीं पढ सकता। लेकिन जैसे ही मानव योनि में अवतार आया तो वे संसार के बंधन में पड़ जाता है और इस कारण उसे दुनिया के लोकाचार को भी निभाना पडता है। जन्म से मृत्यु तक सभी संस्कार करने पडते हैं।
इन्हीं लोकाचारों में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर महर्षि गर्ग पधारे और उनका नामकरण संस्कार किया। उनका नाम कृष्ण निकाल कर उनके जीवन की अनेकों भविष्यवाणी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार की थी जो अक्षरशः सही रही। इस आधार पर श्रीकृष्ण की कुंडली में ग्रह क्या बोलते हैं का यह संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है।
भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र के संयोग में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। सोलह कला सम्पूर्ण महान योगी श्रीकृष्ण का नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार गर्ग ऋषि ने कुल गुरू की हैसियत से किया तथा कृष्ण के जीवन की सभी भविष्यवाणियां की जो अक्षरशः सही रहीं। भाद्रपद मास की इस बेला पर हम गर्ग ऋषि को प्रणाम करते हैं।
अष्टमी तिथिि की मध्य रात्रि में जन्मे कृष्ण का वृषभ लग्न में हुआ। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में बैठे व गुरू, शनि, मंगल, बुध भी अपनी-अपनी उच्च राशियों में बैठे थे। सूर्य अपनी ही सिंह राशि में बैठे।
योग साधना, सिद्धि एवं विद्याओं की जानकारी के लिए जन्म जन्म कालीन ग्रह ही मुख्य रूप से निर्भर करते हैं। अनुकूल ग्रह योग के कारण ही कृष्ण योग, साधना व सिद्धि में श्रेष्ठ बने। गुरू अष्टमेश बनकर तृतीय स्थान पर उच्च राशि में बैठ गुप्त साधनाओं से सिद्धि प्राप्त की तथा पंचमेश बुध ने पंचम स्थान पर उच्च राशि कन्या में बैठ हर तरह की कला व तकनीकी को सीखा।
चन्द्रमा ने कला में निपुणता दी। मंगल ने गजब का साहस व निर्भिकता दी। शुक्र ने वैभवशाली व प्रेमी बनवाया। शनि ने शत्रुहन्ता बनाया व सुदर्शन चक्र धारण करवाया। सूर्य ने विश्व में कृष्ण का नाम प्रसिद्ध कर दिया।
जन्म के ग्रहों ने कृष्ण को श्रेष्ठ योगी, शासक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, चमत्कारी योद्धा, प्रेमी, वैभवशाली बनाया। श्रीकृष्ण की कुंडली में पांच ग्रह चन्द्रमा, गुरू, बुध, मंगल और शनि अपनी उच्च राशि में बैठे तथा सूर्य व मंगल अपनी स्वराशि में हैं।
रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला बुद्धि और विवेक का धनी होता है। यही चन्द्रमा का अति प्रिय नक्षत्र और चन्द्रमा की उपस्थिति व्यक्ति को जातक मे आकर्षण बढा देती है। ऐसे व्यक्ति सभी को प्रेम देते हैं और अन्य लोगों से प्रेम लेते हैं। श्रीकृष्ण को इस योग ने सबका प्रेमी बना दिया और वे भी सबसे प्रेम करते थे।
जन्म कुंडली का पांचवा स्थान विद्या, बुद्धि और विवेक तथा प्रेम, संतान, पूजा, उपासना व साधना की सिद्धि का होता है। यहां बुध ग्रह ने उच्च राशि में जमकर इन क्षेत्रों में कृष्ण को सफल बनाया तथा राहू के संयोग से बुध ग्रह ने परम्पराओं को तुड़वा ङाला और भारी कूटनीतिकज्ञ को धराशायी करवा डाला।
स्वगृही शुक्र ने उन्हें वैभवशाली बनाया तो वहां उच्च राशि में बैठे शनि ने जमकर शत्रुओं का संहार करवाया। भाग्य व धर्मस्थान में उच्च राशि में बैठे मंगल ने उनका भाग्य छोटी उम्र में ही बुलंदियों पर पहुंचा दिया। मारकेश व व्ययेश बने मंगल ने धर्म युद्ध कराकर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कराया।
अष्टमेश गुरू को मारकेश मंगल ने देख उनके पांव के अगूठे में वार करा पुनः बैकुणठ धाम पहुंचाया। अष्टमेश और मारकेश का यह षडाष्ठक योग बना हुआ है और मारकेश मंगल ग्रह को पांचवी दृष्टि से राहू देख रहा। यह सब ज्योतिष शास्त्र के ग्रह नक्षत्रों का आकलन मात्र है। सत्य क्या था यह तो परमात्मा श्रीकृष्ण ही बता सकते हैं।