काशी घाट पर 150 पत्नी पीड़ित पुरुषों ने की पिशाचिनी मुक्ति पूजा
‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ के संस्थापक वकारिया ने कहा कि हर साल 92 हजार पुरुष मेंटल टॉर्चर की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं, जबकि महिलाओं में ये आंकड़ा 24 हजार का है.
वैसे तो कहा जाता है कि गंगा नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं. लेकिन भारतीय पुरुषों के एक ग्रुप ने हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जानी वाली गंगा में डुबकी लगाने का निर्णय लिया, जिससे दुनिया को ‘जहरीले नारीवाद‘ से छुटकारा पाने में मदद मिल सकेगी. पिछले हफ्ते पत्नियों से पीड़ित 150 पुरुषों ने बनारस आकर गंगा में डुबकी लगाई और अपनी पत्नियों के नाम पर पिंड किया. फिर पिशाचिनी मुक्ति पूजा की.
पत्नियों के हाथों सताए पीड़ित पुरुषों की संस्था ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ के दस साल पूरे होने पर आयोजित इस पूजा में करीब डेढ़ सौ लोगों ने हिस्सा लिया. इस संस्था के फाउंडर राजेश वकारिया ने बताया कि हमारे देश में जानवर संरक्षण के लिए भी मंत्रालय है, लेकिन मर्दों के हक की रक्षा के लिए कहीं कोई मंत्रालय नहीं है. यानी इस देश में मर्दों को जानवर से भी बदतर समझा जाता है.
एक और पत्नी पीड़ित अमित देशपांडे ने पतियों को अपनी पत्नियों का पिंडदान करने को कहा. उन्होंने कहा कि इन पत्नियों ने अपने-अपने पतियों की जिंदगी नरक कर दी है. उनसे दिमागी शांति छीन ली है. इन पत्नी पीड़ित पुरुषों ने जीते जी अपनी पत्नियों का पिंडदान किया, जो अब उनके साथ नहीं रहती हैं. साथ ही साथ अपनी पूर्व पत्नियों के लिए पिशाचिनी मुक्ति पूजा भी की ताकि उनकी पत्नी से जुड़ी बुरी यादें भी उनके साथ ना रहें.
‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ के संस्थापक वकारिया ने कहा कि हर साल 92 हजार पुरुष मेंटल टॉर्चर की वजह से आत्महत्या कर लेते हैं जबकि महिलाओं में ये आंकड़ा 24 हजार का है. वकारिया ने कहा कि दहेज विरोधी कानून यानी आईपीसी की धारा 498ए महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने और पति के घर में पत्नी के शोषण को रोकने के लिए बनाई गई थी, लेकिन पुरुषों के खिलाफ कई बार इस कानून का दुरुपयोग होता है और पुरुष इसके खिलाफ कुछ नहीं कर सकता.
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