खबरों की खबर तक कैसे पहुँचे नैयर
आपातकाल में अनेक लोगों को यह लग रहा था कि पता नहीं, अब इस देश में चुनाव होगा भी या नहीं. वैसे माहौल में खबरखोजी कुलदीप नैयर यह खबर देने जा रहे थे कि चुनाव होने ही वाले हैं. पर सवाल है कि उस खबर तक नैयर साहब कैसे पहुंचे?
चंडीगढ़, 27 अगस्त:
जनवरी, 1977 की बात है. आपातकाल की घनघोर छाया देश पर मंडरा रही थी. किसी को यह नहीं सूझ रहा था कि यह स्थिति कब तक रहेगी. आपातकाल 25 जून, 1975 की रात में लागू किया गया था. लगभग एक लाख राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. इनमें से केरल के एक इंजीनियर राजन सहित 22 कैदियों की जेल में ही मृत्यु हो चुकी थी.
कर्नाटक की मशहूर अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी जब जेल में सख्त बीमार हुईं तो उन्हें रिहा कर दिया गया. लेकिन उनका इसके कुछ दिन बाद निधन हो गया. विदेशी मीडिया में सरकार विरोधी ऐसी खबरें छपने से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चिंतित थीं. विदेशों में उन्हें अपनी छवि की चिंता थी. उन्होंने आईबी से सर्वे कराया कि क्या आज चुनाव हो जाए तो क्या नतीजे आएंगे.
IB के एक अफसर ने कुलदीप नैयर के कान में फुसफुसा दिया कि ‘चुनाव होने वाला है’
आईबी से प्रधानमंत्री को यह सूचना मिली कि नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आएंगे. इस पृष्ठभूमि में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चुनाव कराने की योजना बनाने लगीं. पर, बाहर इस बात की किसी को कोई भनक तक नहीं थी. पर,आईबी के एक परिचित अफसर ने एक दावत में कुलदीप नैयर के कान में फुसफुसा दिया कि ‘चुनाव होने वाला है.’
याद रहे कि आईबी से ही तो चुनाव संभावनाओं की जानकारी लेने को कहा गया था! हालांकि आईबी वाले इस बात का अनुमान नहीं लगा सके कि आतंक के माहौल में जिससे भी पूछोगे, वही कहेगा कि इंदिरा जी का राजपाट ठीक चल रहा है. हम खुश हैं. यही हुआ. इंदिरा जी धोखा खा गईं.
वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत से तो कांग्रेस का लगभग सफाया ही हो गया था. आपातकाल में अनेक लोगों को यह लग रहा था कि पता नहीं, अब इस देश में चुनाव होगा भी या नहीं. वैसे माहौल में खबरखोजी कुलदीप नैयर यह खबर देने जा रहे थे कि चुनाव होने ही वाले हैं. पर सवाल है कि उस खबर तक नैयर साहब कैसे पहुंचे?
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आईबी में कार्यरत पंजाब काडर के उस अफसर से मुलाकात के बाद नैयर साहब संजय गांधी के मित्र कमलनाथ के घर पहुंच गए. इस संबंध में कुलदीप नैयर लिखते हैं कि ‘कमलनाथ से मेरी अच्छी जान-पहचान हो गई थी. क्योंकि वो इंडियन एक्सप्रेस के निदेशक मंडल में थे.’
नैयर साहब ने कमलनाथ की पत्नी से कहा कि ‘मैं कमलनाथ जी का मित्र हूं.’ फिर उन्होंने अपना परिचय दिया. कमलनाथ की पत्नी ने नैयर का नाम सुन रखा था. पर कमलनाथ उस समय सो रहे थे. इसलिए उन्होंने नैयर को बिठाया. जल्दी ही कमलनाथ प्रकट हुए. फिर दोनों बालकानी में आकर बैठ गए.
कमलनाथ ने चुनाव की खबरों पर पूछे जाने पर प्रश्न टालने की कोशिश नहीं की
कुलदीप नैयर ने इस वाक्य से अपनी बात शुरू की कि ‘संजय गांधी किस चुनाव क्षेत्र में चुनाव लड़ने जा रहे हैं?’ नैयर ने अपनी पुस्तक ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखा कि ‘वो चौंक कर मेरी तरफ देखने लगे पर उन्होंने प्रश्न को टालने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा कि ‘यह अभी तय नहीं किया गया है.’ दरअसल वो लोग अपने एक संदेशवाहक की अहमदाबाद से वापसी का इंतजार कर रहे थे. वो संदेश वाहक वहां जेल में चंद्रशेखर से मिलने गया था.
चंद्रशेखर एक युवा तुर्क कांग्रेसी थे और इंदिरा गांधी के कटु आलोचक रह चुके थे. जेपी का साथ देने के कारण उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था. कमलनाथ ने नैयर को बताया कि कांग्रेस चंद्रशेखर को मनाने की कोशिश कर रही है. नैयर ने मन ही मन यह अनुमान लगाया कि इसका मतलब यह है कि चुनाव अगले कुछ ही हफ्तों में होने जा रहा है. जब नैयर ने कमलनाथ से पूछा कि चुनावों के कितनी जल्दी होने की संभावना है तो कमलनाथ ने उल्टे सवाल किया कि ‘आपको यह जानकारी कहां से मिली?’
नैयर लिखते हैं कि ‘इससे खबर की और भी पुष्टि हो गई.’ पर इतनी जानकारी मात्र से नैयर संतुष्ट नहीं थे. नैयर ने लिखा है ‘फिर भी मैं जोखिम उठाने के लिए तैयार हो गया.’ उन्होंने सोचा कि ज्यादा से ज्यादा एक बार फिर जेल ही न जाना पड़ेगा. जेल से एक बार हो ही आए थे. दरअसल एक बार जेल से हो आने के बाद नैयर में विपरीत स्थिति को झेलने के लिए आत्मविश्वास पैदा हो गया था.
18 जनवरी, 1977 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के सभी संस्करणों में मोटे-मोटे अक्षरों में यह खबर प्रमुखता से छपी. उन दिनों इन पंक्तियों के लेखक को भी इसी खबर से लग गया था कि अब देश की राजनीतिक स्थिति बदलेगी. खैर उधर प्रेस सेंसरशिप अफसर ने नैयर को फोन कर के कहा कि ‘मुझे इस खबर का खंडन करने के लिए कहा गया है.’
प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक घोषणा कर दी कि मार्च में लोकसभा के चुनाव होंगे
उस अफसर ने यह भी कहा कि ऐसी खबर देने पर आपकी दोबारा गिरफ्तारी भी हो सकती है. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. न तो खंडन और न ही गिरफ्तारी. उधर प्रधानमंत्री ने 23 जनवरी को यह सार्वजनिक घोषणा कर दी कि लोकसभा के चुनाव मार्च में होंगे.
आपतकाल में ढील दी गई. अधिकतर राजनीतिक कैदी रिहा कर दिए गए. चुनाव हुए और रिजल्ट एक इतिहास बन गया. संजय गांधी और इंदिरा गांधी तक अपनी सीटें हार गए. पर एक इतिहास पत्रकार कुलदीप नैयर के नाम भी लिख गया जिनका इसी महीने निधन हो गया.
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