“एसवाईएल हिमाचल मार्ग समिति” ने हरियाणा के हित में सुझाया नया ‘जल मार्ग’

फोटो: राकेश शाह


हिमाचल के बद्दी से पिंजौर लाया जा सकता है

राजनैतिक दलों पर लगाया हरियाणा व पंजाब के किसानों की बरगलाने का आरोप

एडवोकट जितेंद्र्नाथ के नेतृत्व मे समिति जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर प्रधान मंत्री को सौंपेगी ज्ञापन


चंडीगढ़, 23 अगस्त-

हरियाणा व पंजाब के बीच राजनैतिक फुटबाल बना एसवाईएल का पानी अगर केंद्र सरकार चाहे तो एक साल के भीतर दक्षिणी हरियाणा के सूखे खेतों को सींच कर हारा-भरा कर सकती है बेशर्ते बिना राजनैतिक स्वार्थ के दृढ़ संकल्प होना चाहिए। यह पानी भी ऐसे रास्ते से आएगा की न पंजाब के किसानों को कोई क्षति होगी ओर न हरियाणा को उसके भाग में कमी आएगी।*

यह रास्ता सुझा रहे हैं “एसवाईएल हिमाचल मार्ग समिति” के अध्यक्ष अडवोकेट जितेंद्र्नाथ। उन्होने आज यहाँ प्रैस क्लब में पत्रकार वार्ता के दौरान बताया कि उन्होने एसवाईएल नहर के पानी को भाखड़ा डैम से हरियाणा तक लाने का शांति व सद्भाव से मार्ग तलाशने के लिए विस्तार से अध्ययन किया। उन्होने जो मार्ग तालाश किया उससे न तो पंजाब के किसानों को कोई एतराज़ होगा ओर न ही हरियाणा के किसानों के हक़ में कोई कटौती होगी। अगर सरकार ने उनके द्वारा सुझाए हुए मार्ग के रास्ते एसवाईएल का पानी लाने के लिए कोई कार्यवाही शुरू नहीं कि तो आगामी 28 अगस्त से शुरू करके करीब 4 महीने तक विभिन्न गतिविधियां आयोजित कि जाएंगी ओर 1 दिसम्बर 2018 को दिल्ली के जंतर मंत्र पर प्रदर्शन करके प्रधान मंत्री को ज्ञापन सोनपा जाएगा।

उन्होने बताया अगर केंद्र की भाजपा सरकार वास्तव में एसवाईएल के पानी कि समस्या का हल चाहती है तो भाखड़ा डैम से हिमाचल के रास्ते बद्दी होते हुए पिंजौर के साथ से पंचकुला के पास टांगरी नदी से पानी जनसुई हैड तक लाया जा सकता है। उन्होने एक डॉक्यूमेंटरी के मधायम से एसवाईएल के वर्तमान हालात व उनके सुझाए गए रस्तों को दिखते हुए बताया कि जनसुई हैड से आगे नहर का काम पूरा हो चुका है।  भोगोलिक दृष्टि से देखें तो भाखड़ा डैम से वाया हिमाचल हरियाणा कि सीमा मात्र 67 किलोमीटर दूऋ पर है जबकि पंजाब के रास्ते हरियाणा सीमा कि दूरी 156 किलोमीटर पड़ती है।

अडवोकेट जातींद्र्नाथ ने बताया कि उनकी “एसवाईएल हिमाचल मार्ग समिति” ने जो रास्ता सुझाया है उस रास्ते में पड़ने वाली हिमाचल प्रदेश की ज़मीन पहाड़ी व वीरानी है ओर सरकारी भी है जिसको हिमाचल सरकार बड़ी आसानी से दे सकती है। यहाँ उन्होने बताया कि हिमाचल प्रदेश के भाखड़ा डैम का पानी भी तेज़ बहाव से नीचे कि तरफ आता है जिससे बिजली बनाई जाती है। भाखरा डैम से विद्युत उत्पादन के बाद यह पानी सतलुज नदी में गिरता है। हिमाचल में सतलुज नदी 11 किलोमीटर तक बहती है जिसमें कहीं पर भी एसवाईएल को जोड़ कर पानी लाया जा सकता है। समुद्र तल से सतलुज नदी का लेवल वहाँ पर 1203 फीट है, पंचकुला में 1000 फीट  और अंबाला  में 900 फीट व जनसुई हैड तक 823 फीट समुद्र ताल से ऊंचाई है। कहने का भाव यह है कि सतलुज नदी से लेकर जनसुई हैड तक एसवाईएल का पानी सरपट दौड़ता हुआ आएगा।

उन्होने बताया कि कि ऐसे में यदि एसवाईएल का निर्माण पंजाब के बजाए हिमाचल से सीधा करवाते हैं तो प्रदेश सरकार को खर्चा भी अधिक वहन नहीं करना पड़ेगा ओर पुनर्वास कि समस्या भी नहीं आएगी। इस रास्ते से हरियाणा में पानी लाये जाने से 1100 मेगावाट बिजली भी बनाई जा सकती है ओर प्रदेश वासियों को उनके हक का पानी भी मिल जाएगा, दक्षिणी हरियाणा की पानी की कमी से जूझती बंजर होती जा रही भूमि सिंचित हो जाएगी। दक्षिण हरियाणा का किसान पिछले करीब 43 साल से एसवाईएल के पानी का इंतज़ार कर रहा है। वहाँ का भूमिगत जल स्तर काफी नीचे चला गया है, खेत व जोहड़ की बात तो दूर पीने का पानी तक खारा हो गया है। ख़राब भूमिगत पानी पीने से लोगों में कैंसर जैसी भयानक बिमारियाँ फैलने लगीं हैं।

उन्होने हरियाणा के पंजाब से अलग होने पर एसवाईएल के पानी के मुद्दे पर अभी तक सत्ता में आए सभी राजनैतिक दलों द्वारा मात्र राजनीति किए जाने का आरोप लगाया। सर्वोच्च नयायालय के निर्णय के बावजूद राजनैतिक दलों ने ऐसे हालात पैदा कर दिये है कि अगर पंजाब के रास्ते जबरन एसवाईएल का पानी हरियाणा में लाया जाता है तो पंजाब के भोलेभाले किसान राजनेताओं के बहकावे में आ कर कोई अवांछित कदम उठा सकते हैं। दोनों प्रदेशों के लोगों में रोटी बेटी का नाता है ओर यहाँ के जवानों का राष्ट्र कि सीमा पर और क्षेत्र के किसानों का राष्ट्र के अन्न भंडार में भरपूर योगदान रहा है। ऐसे में “एसवाईएल हिमाचल मार्ग समिति” चाहती है कि किसी भी कीमत पर हरियाणा व पंजाब के बीच सामाजिक सद्भाव व प्रेम खत्म नहीं होना चाहिए।

फोटो: राकेश शाह

कभी कांग्रेस तो कभी आईएनएलओ ओर भाजपा सरकारें मामले को सर्वोच्च नयायालय में लंबित बता मुद्दे को लटकती आ रहीं हैं॥ पिछले दिनों सर्वोच्च नयायालय ने अपने फैसले में कहा है कि एसवाईएल नहर बनानी चाहिए  ताकि ब्यास नदी का अतिरिक्त पानी दक्षिणी हरियाणा की प्यासी भूमि को मिल सके। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने यह बिलकुल नहीं कहा कि यह पानी पंजाब के रास्ते ही आना चाहिए, या यह पानी हिमाचल के रास्ते नहीं आना चाहिए।

जितेंद्र्नाथ ने बताया कि उनकी समिति द्वारा तैयार किए गए ‘वैकल्पिक’ जल मार्ग का खाका बना कर उन्होने 8 जनवरी 2017 को हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री, राज्यपाल व हिमाचल प्रदेश की सरकार को दिया था, जिसका अभी तक कोई संज्ञान नहीं लिया गया। सरकारों के मंसूबों को भाँप कर सर्वोच्च नयायालय में एक जनहित याचिका दायर की, कि नयायालय केंद्र एवं राज्य सरकारों को समिति द्वारा सुझाए गए जल मार्ग को प्रशस्त करने के लिए प्रोत्साहित कर सके, इस मांग को नयायालय ने अपने कार्यक्षेत्र के बाहर कि बात कह कर समिति को सरकारों के द्वार खटखटाने के लिए कहा।

जितेंद्र्नाथ ने कहा कि एसवाईएल मामले पर केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा उदासीन रवैये के चलते वह अपने वैकल्पिक जल मार्ग का रास्ता जनता के बीच ले कर आए हैं ताकि प्रदेश की जनता को साथ लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा सके। इसके लिए उनकी समिति पूरे हरियाणा में 28 अगस्त से जागरूकता अभियान चलाएगी ओर करीब चार महीने तक गाँव, ब्लाक, कालेज व विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को एसवाईएल के पानी के महत्व व सरकार द्वारा इस मुद्दे की उपेक्षा के बारे में समझाया जाएगा। बाद में, ‘एसवाईएल हिमाचल मार्ग समिति’ के नेतृत्व में प्रदेश की जनता द्वारा एक दिसंबर 2018 को जंतर मंतर पर प्रदर्शन कर देश के प्रधान मंत्री श्री मोदी को ज्ञापन सौंपा जाएगा जिसमें एसवाईएल का पानी समिति द्वारा सुझाए गए मार्ग से लाने की मांग की जाएगी। इससे पंजाब व हरियाणा के बीच सामाजिक सद्भाव भी बना रहेगा और हरियाणा के किसानों को उनके हक का पानी भी मिल जाएगा।

एडवोकेट जितेंद्र्नाथ ने एसवाईएल नहर के पानी के मुद्दे के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए बताया कि 29 जनवरी 1955 को पंजाब, राजस्थान व जम्मू कश्मीर के पानी का बटवारा हुआ था। वर्ष 1966 में हरियाणा बनाने के बाद पंजाब के पानी का बंटवारा हुआ था जिसमें हरियाणा को 3.50 मिलियन एकड़ फुट पानी दिया गया था जो एसवाईएल नहर का निर्माण कर दक्षिण हरियाणा कि भूमि को पंहुचना था, उस नहर का निर्माण आज तक नहीं हुआ।इस पर पिछले 43 सालों से पंजाब ओर हरियाणा में विवाद चल रहा है। वर्ष 1990 तक नहर का थोड़ा बहुत निर्माण चलता रहा परंतु 2 जुलाई 1990 को एक मुखी अभियंता, एक अधीक्षक अभियंता व 22 मजदूरों कि गोली मर कर हत्या कर देने के बाद से नहर निर्माण के लिए पंजाब में कोई नहीं गया। वर्ष 1996 में हरियाणा सरकार उच्चतम नयायालय में चली गयी, जिसका फैसला 2002 में आया लेकिन उस पर भी अमल नहीं हुआ। हम सब जानते हैं कि पंजाब सरकार ने पिछले दिनों नहर कि भूमि के आबंटन रद्द कर नहर कि भूमि किसानों को लौटा दी व पंजाब के किसानों के इंतकाल कार्वा दिये गए।इस हालत में नहर के पुनर्निर्माण के लिए ज़मीन सरकार के पास नहीं है, पंजाब सरकार ने उच्च नयायालय मे शपथ पत्र दाखिल कर कहा है कि पंजाब के पास नहर के पुनर्निर्माण के लिय भूमि नहीं है।

ऐसे में केंद्र व राज्य सरकारों से समिति का अनुरोध है कि दोनों प्रदेशों के भाई चारे व हरियाणा के किसानों के हित को देखते हुए इनके द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक जल मार्ग से एसवाईएल का पानी हरियाणा को दिया जाये

 

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply