Sunday, December 22


उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गौहत्या और गौमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में गौवंश की रक्षा के लिए खुद को कानूनी संरक्षक घोषित किया है


उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गौहत्या और गौमांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया है. कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में गौवंश की रक्षा के लिए खुद को कानूनी संरक्षक घोषित किया है. कोर्ट ने गाय, बछड़ा और बैलों की हत्या के लिए उनके परिवहन और उनकी बिक्री पर भी प्रतिबंध लगा दिया है. इस संबंध में दायर एक जनहित याचिका में कहा गया है कि रूड़की के एक गांव में कुछ लोगों ने साल 2014-15 में पशुओं का वध करने और मांस बेचने की अनुमति ली थी जिसका बाद में कभी नवीनीकरण नहीं हुआ.

याचिका में कहा गया है कि हालांकि, अब भी कुछ लोग गायों का वध कर रहे हैं और गंगा में खून बहा रहे हैं. यह न केवल कानून के खिलाफ है बल्कि यह गांव के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है.

सड़क पर घूमते मिले आपके मवेशी तो होगी FIR

मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों के तहत आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. कोर्ट ने उत्तराखंड गौवंश संरक्षण अधिनियम 2007 की धारा सात के तहत सड़कों, गलियों और सार्वजनिक स्थानों पर घूमते पाए जाने वाले मवेशियों के मालिकों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करने को कहा.

पशुओं को अनावश्यक दर्द और कष्ट न सहना पड़े

आदेश में कहा गया है कि मुख्य अभियंता, अधिशासी अधिकारी और ग्राम प्रधान यह सुनिश्चित करेंगे कि गाय और बैल समेत कोई आवारा मवेशी उनके क्षेत्र में सडकों पर न आए और ऐसे पशुओं को सड़कों से हटाते समय उन पशुओं को अनावश्यक दर्द और कष्ट न सहना पड़े. कोर्ट ने पूरे प्रदेश के सरकारी पशु अधिकारियों और चिकित्सकों को सभी आवारा मवेशियों का इलाज करने के निर्देश देते हुए कहा कि उनके इलाज की जिम्मेदारी नगर निकायों, नगर पचायतों और सभी ग्राम पंचायतों के अधिशासी अधिकारियों की होगी.

इसके अलावा, अदालत ने जानवरों के इलाज और उनकी देखभाल के लिए राज्य सरकार को तीन सप्ताह के भीतर अस्पताल खोलने के निर्देश भी दिए. सभी नगर निगमों, नगर निकायों और जिलाधिकारियों को अपने क्षेत्रों में गौवंश और आवारा मवेशियों को रखने के लिए एक साल की अवधि में गौशालाओं का निर्माण करना होगा.