पंचकूला जिला एवं सत्र न्यायाधीश ऋतु टैगोर ने इस मामले में कहा कि जांच अधिकारी ने जांच के दौरान लापरवाही बरती. कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की कमी का भी हवाला दिया है.
25 अगस्त 2017 वो तारीख है जब पंचकूला जल उठा था. ये वो काला दिन था जब हिंसा की आग में जल रहे पंचकूला में कई लोगों की जान चली गई, जिसके बाद शुरू हुई मामले की जांच में एसआईटी ने कई लोगों की आरोपी बनाया. लेकिन अब एसआईटी की जांच खुद सवालों के घेरे में है. दरअसल, पंचकूला हिंसा मामले की एफआईआर नंबर 362 के सभी 6 आरोपियों को पंचकूला जिला कोर्ट ने बरी कर दिया था. लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में लापरवाही बरती गई है.
पंचकूला जिला एवं सत्र न्यायाधीश ऋतु टैगोर ने इस मामले में कहा कि जांच अधिकारी ने जांच के दौरान लापरवाही बरती. कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की कमी का भी हवाला दिया है. कोर्ट का कहना था कि जांच अधिकारी की आम जनता के केस में न जुड़ने संबंधी साधारण-सी टिप्पणी बताती है कि उन्होंने आमजन के केस से जुड़ने के महत्व को पूरी तरह से अनदेखा किया और जांच में लापरवाही बरती.
जज ने ये भी कहा कि इससे ये स्पष्ट होता है कि अभियोजन पक्ष ने संदेह से अलग कोई भी अच्छे और विश्वसनीय तथ्य पेश नहीं किए जिससे कि आरोपियों पर मामला साबित हो पाता और ये सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देने का बिल्कुल सही मामला बनता है. कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी इन आरोपियों का डेरे से जुड़ाव और 25 अगस्त को पंचकूला में मौजूदगी भी साबित नहीं कर पाए. पुलिस को ज्यादा श्रम शक्ति का इस्तेमाल करना चाहिए. लेकिन पुलिस ने FIR दायर करने के लिए मैनुअल मोड अपनाया.
FIR दर्ज करने में दो दिन की देरी होने के लिए पुलिस ने जो जवाब दिया है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता. ऐसे में बचाव पक्ष की दलील कहीं ना कहीं सही लगती है कि मामले को जल्द निपटाने के लिए पुलिस ने दूसरे मामलों में फंसे आरोपियों को झूठे तौर पर फंसाया.