Sunday, December 22


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर संसद से सड़क तक संग्राम छिड़ा है.


राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के मुद्दे को लेकर संसद लेकर सड़क तक संग्राम छिड़ा है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में जैसे ही इस मुद्दे पर बोलना शुरू किया, हंगामा तेज हो गया. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही अगले दिन तक के लिए स्थगित करनी पड़ी.

आखिर विपक्षी दल एनआरसी के मुद्दे पर इतना हंगामा क्यों कर रहे हैं. विपक्षी दल लगातार बीजेपी पर हमलावर क्यों है. ये चंद सवाल हैं जिसको लेकर गुवाहाटी से लेकर दिल्ली तक की राजनीति गर्म है.

दरअसल, असम में एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी करने के बाद से ही हंगामा तेज हो गया है. इस मसौदे के मुताबिक 2 करोड़ 89 लाख 83 हजार 677 लोगों को भारत का वैध नागरिक मान लिया गया है. हालांकि, वैध नागरिकता के लिए 3,29,91,384 लोगों ने आवेदन किया था, लेकिन, इनमें से 40,07,707 लोग यह साबित नहीं कर पाए कि वे भारत के नागरिक हैं.

एनआरएसी के नए ड्राफ्ट के हिसाब से अब चालीस लाख से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ेगा. इसी के बाद हंगामा तेज हो गया है. विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है. कांग्रेस से लेकर टीएमसी तक और एसपी-बीएसपी तक सबकी तरफ से सरकार पर हमला तेज कर दिया गया है.

विपक्षी दलों ने एनआरएसी के मुद्दे को लेकर सरकार पर राजनीति करने का आरोप लगाया है, जबकि सरकार की तरफ से सफाई यही दी जा रही है कि यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है.

बात पहले विपक्ष की करें तो इस मुद्दे पर कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे पर चर्चा के दौरान कहा कि एनआरसी को लेकर राजनीति नहीं होनी चाहिए और इसका इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए. ये मानवाधिकार का मामला है, हिंदू-मुस्लिम का नहीं. कांग्रेस की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरा जा रहा है. सरकार पर ध्रुवीकरण की राजनीति का आरोप लगाया जा रहा है.

उधर, टीएमसी ने भी इस मुद्दे को लेकर हंगामा शुरू कर दिया है. टीएमसी ने इस मुद्दे को लेकर संसद परिसर में धरना भी दिया. राज्यसभा में इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है, लेकिन, अब लोकसभा के भीतर भी टीएमसी इस मुद्दे पर चर्चा चाहती है.

असम में भारतीय नागरिकता साबित करने को लेकर एनआरसी तैयार हो रहा है, लेकिन, इसका असर पश्चिम बंगाल में भी दिख रहा है. पश्चिम बंगाल में भी अवैध रूप से रह-रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद को लेकर सियासत होती रही है. अब जबकि बीजेपी नेताओं की तरफ से असम की ही तर्ज पर पश्चिम बंगाल में भी ऐसा करने की बात कही जा रही है तो फिर टीएमसी इस मुद्दे पर पलटवार कर रही है.

लेकिन, टीएमसी ही नहीं इस मुद्दे पर एसपी, बीएएसपी और आरजेडी जैसे विरोधी दल भी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. मायावती ने इसे बीजेपी और आरएसएस की विभाजनकारी नीतियों का परिणाम बताया है. समाजवादी पार्टी सांसद रामगोपाल यादव ने भी सरकार पर एनआरसी के मुद्दे को लेकर हमला बोला है.

लेकिन, विपक्ष के हमले का बीजेपी भी अपने अंदाज में जवाब दे रही है. राज्यसभा में चर्चा के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने जैसे ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिया वैसे ही सदन में कांग्रेस के सदस्यों ने हंगामा कर दिया. अमित शाह ने कहा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर किया था, जिसकी आत्मा एनआरसी है. उन्होंने कहा कि अवैध घुसपैठियों की पहचान की बात इसमें की गई थी. अमित शाह ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि आपमें हिम्मत नहीं थी इसलिए आप इस पर आगे नहीं बढ़ पाए, लेकिन, हमारे अंदर हिम्मत है तो हम इस पर आगे बढ पा रहे हैं.

बीजेपी अध्यक्ष के संसद के भीतर कांग्रेस को घेरने के बाद कांग्रेसी सांसद राज्यसभा में वेल में आ गए. हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई. लेकिन, बीजेपी इस मुद्दे पर विपक्ष को घेरने की पूरी कोशिश कर रही है. उसे लगता है कि इस मुद्दे पर जितनी चर्चा होगी, विपक्ष उतना ही बैकफुट पर जाएगा. लिहाजा बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अलग से प्रेस कांफ्रेस बुलाकर इस मुद्दे पर विपक्ष के रवैये को लेकर सवाल खड़ा कर दिया.

बीजेपी इस मुद्दे पर असम समेत पूरे नॉर्थ-ईस्ट में विपक्ष पर बढ़त लेना चाहती है. भले ही यह सबकुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रहा है, लेकिन, अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे को बीजेपी पहले से ही उठाती रही है. एनआरसी के मुद्दे पर भले ही हंगामा कर विपक्ष की तरफ से बीजेपी को घेरने की कोशिश हो रही है, लेकिन,इस मुद्दे पर बीजेपी को सियासी फायदा ही मिलने वाला है, क्योंकि यह उसके मुख्य मुद्दे में से एक रहा है.