Monday, December 23


अलवर में गाय के नाम पर जो कुछ हुआ, उसे किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार मानें ऐसा भी ठीक नहीं


कुछ वक्त पहले दिल्ली के एक मुशायरे में राहत इंदौरी साहब का सुना एक शेर याद आ गया-

कौन जालिम हैं यहां, जुर्म हुआ है किस पर, क्या खबर आएगी, अखबार को तय करना है.

अपने घर में मुझे क्या खाना-पकाना है, ये भी मुझको नहीं, सरकार को तय करना है.

राजस्थान के अलवर से जब खबर आई, तो दिल को तकलीफ सी दे गई, खासतौर से इसलिए क्योंकि मैं अरसे से राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को जानता हूं, थोड़ा-थोड़ा वो भी मुझे पहचानती होंगी. वसुंधरा जी की छवि एक मुख्यमंत्री के तौर पर, एक प्रशासक के तौर पर एक जन प्रतिनिधि के तौर पर भी बेहद दमदार हैं. उन्हें कमजोर मुख्यमंत्री नहीं कहा जा सकता और यह भी नहीं माना जा सकता कि वे हमेशा ही सिर्फ लोक लुभावन फैसले करती हैं.

मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होंनें बहुत बार ऐसे कदम भी उठाए हैं जिनका फायदा दूरगामी हो, ज्यादा से ज्यादा लोगों को होता होगा, लेकिन कई बार वे चुनावी राजनीति के तौर पर फायदेमंद नहीं होते. भारतीय जनता पार्टी जैसे बड़े संगठन में उनकी आवाज को ना तो दबाया जा सकता है और ना ही नजरअंदाज किया जा सकता है, यह कई बार उन्होंने साबित किया है. उनके इस अंदाज से अक्सर बहुत से लोग परेशान भी रहते हैं.

मुझे याद आते हैं वो दिन जब राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत बीजेपी के सबसे बड़े नेता होते थे, या ये कहना भी गलत नहीं होगा कि किसी दूसरी पार्टी में भी उनके बराबर के कद का नेता नहीं था. कांग्रेस में जो कद मोहन लाल सुखाड़िया को हासिल हुआ, वो शख्सियत शेखावत की रही, लेकिन तमाम वर्षों में बीजेपी को कभी बहुमत वाली सरकार नहीं मिल पाई और वे दूसरे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाते रहे, चलाते रहे, साथ ही पार्टी के भीतर लगातार चलती रहती उठापटक से भी निपटते रहे. शेखावत और राजमाता रही विजया राजे सिंधिया के बीच बेहद अच्छे संबंध थे.

माना जाता है कि वसुंधरा जी को राजनीतिक तौर पर तैयार करने में शेखावत का भी अहम योगदान रहा, लेकिन जो लोग उस वक्त उन्हें एक कमजोर या नौसिखिया नेता के तौर पर देख रहे थे, उनको जवाब दिया उन्होंनें पहली बार राजस्थान में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाकर. ज्यादातर लोगों को 2014 के आम चुनावों के नतीजे याद होंगें जब नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की अगुवाई में बीजेपी ने पहली बार केंद्र में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई, लेकिन इससे पांच महीने पहले दिसंबर 2013 के चुनाव में राजस्थान में वसुंधरा के नेतृत्व में बीजेपी ने 160 से ज्यादा सीटें हासिल कर ली थीं और फिर आम चुनाव में सभी 25 संसदीय सीटें भी जितवाई.

जाहिर है कि वसुंधरा जी की ताकत को केंद्रीय आलाकमान नजरअंदाज नहीं कर सकता था और तमाम कोशिशों के बावजूद हुआ वही जो वसुंधरा जी को पसंद था. तो क्या इतनी ताकतवर मुख्यमंत्री से राज्य में कानून-व्यवस्था कायम रखने की उम्मीद करना नाइंसाफी होगा?

अलवर में गाय के नाम पर जो कुछ हुआ, उसे किसी भी हालत में जायज नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन इसके लिए मुख्यमंत्री को जिम्मेदार मानें ऐसा भी ठीक नहीं. लेकिन गाय और मरते हुए आदमी में से पहले गाय को गौशाला छोड़ना और फिर अस्पताल जाने की पुलिस की कारवाई इस बात का अंदाजा तो देती ही है कि या तो पुलिस और प्रशासन को एक ताकतवर मुख्यमंत्री की परवाह नहीं या फिर उनकी शह है. इससे भी ज़्यादा इस घटना के बाद उनकी सरकार के मंत्री, विधायक और हाल में बने बीजेपी अध्यक्ष के बयान और उन सब पर मुख्यमंत्री की चुप्पी हैरान करती है.

1992 में 6 दिसंबर की घटना याद आती है कि बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरने के बाद देश भर में दहशत का माहौल था, और जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे. उस रात राजस्थान के मुख्यमंत्री भैरोंसिह शेखावत अपने निवास पर बैठे पूरे माहौल पर नजर रखे हुए थे. तब रात को करीब दस बजे खबर मिली कि जयपुर की एक मुस्लिम बस्ती पर हमला हो सकता है, मुख्यमंत्री ने पुलिस प्रशासन को तो सख्ती का आदेश दिया ही साथ में वह अपने अफसरों के साथ उस बस्ती में पहुंच गए और देर रात तक सड़क पर ही डेरा डाल कर बैठे रहे.

नतीजा एक मुस्लिम बस्ती बच गई,किसी की हिम्मत नहीं हुई हमला या दंगा करने की. शेखावत जी अक्सर कहा करते थे कि सरकार सिर्फ़ रुआब से चलती है यानी आपका डर होना चाहिए कि अगर कोई गड़बड़ हुई तो फिर किसी को बख्शा नहीं जाएगा और रुआब इस बात से बनता है कि आपने किसी घटना पर किस तरह का प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवहार किया, जिसे वाजपेयी जी की जबान में राजधर्म कहते हैं.

 

राजस्थान में इस साल के आखिर में चुनाव होने हैं यानी जनता फिर से याद आने लगी है और अब हर दरवाजे तक पहुंचना है. अच्छी बात है. मुख्यमंत्री चार अगस्त से सुराज यात्रा शुरू कर रही हैं. सुना है कि रथ तैयार हो गया है, दूसरी तैयारियां भी पूरी होने को होंगी. यह मौका हो सकता है जनता में इस बात का विश्वास दिलाने का कि वे एक निष्पक्ष और ताकतवर मुख्यमंत्री हैं और उनके रहते हुए किसी को किसी बात की चिंता की जरूरत नहीं हैं.

वसुंधरा जी बीजेपी की नई पीढ़ी का नेतृत्व करती हैं. उनके साथ के शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह मुख्यमंत्री के तौर पर तीन-तीन पारी पूरी कर चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में लगातार तीन बार चुनाव जीत कर दिल्ली पहुंचे हैं यानी वसुंधरा जी को राजस्थान में हर चुनाव में दूसरी पार्टी की सरकार के खेल को बदलने की तैयारी करनी है.

माफी के साथ, एक बार फिर शायर राहत इंदौरी याद आ रहे हैं कि–

झूठ से, सच से, जिससे भी यारी रखें, आप तो अपनी तकरीर जारी रखें.

इन दिनों आप मालिक हैं बाजार के, जो भी चाहें वो कीमत हमारी रखें..