Saturday, December 21

इनेलो वाले मित्र यह कहते नहीं थकते कि उनके पार्टी के नेता जुबान के धनी हैं और जो कह देते हैं, उस पर कायम रहते हैं। उनकी इस गलतफहमी को इनेलो का मौजूदा नेतृत्व दूर करने में जुटा हुआ है। रविवार को बहादुरगढ़ में इस बात का सुबूत पेश किया गया।
पूर्व विधायक नफे सिंह राठी की इनेलो में वापसी करवाकर इनेलो नेताओं ने ओमप्रकाश चौटाला के उस एलान को ठेंगा दिखा दिया है जिसमें उन्होंने कहा था कि मुश्किल वक्त में पार्टी छोड़कर जाने वालों को किसी हालत में वापस नहीं लिया जाएगा। यही नहीं, ओमप्रकाश चौटाला ने तो ऐसे लोगों को गद्दार की उपाधि दी थी और कहा था कि ऐसे लोगों की वापसी की सिफारिश लेकर भी कोई कार्यकर्ता उन तक ना आए।
अभय चौटाला और अशोक अरोड़ा की मौजूदगी में नफे सिंह राठी की इनेलो वापसी दर्शाती है कि इस पार्टी में ओमप्रकाश चौटाला अब अप्रासांगिक हो गए हैं। अब उनकी बातों का कोई महत्व नहीं है। यह कुछ वैसा ही है जैसे 1990 से लेकर अपने जीवन के अंत तक स्वर्गीय चौधरी देवीलाल जी की अपनी पार्टी में स्थिति थी । इतिहास दोहराया जा रहा है।
यह नफे सिंह राठी के लिए भी सोचने का वक्त है कि जिस दल ने उनकी दशकों की निष्ठा को दरकिनार कर 2014 में उनकी टिकट काट दी थी और जिसके नेता ने उनके लिए गद्दार शब्द का इस्तेमाल किया था, वहां उन्हें अब क्या मिलेगा।
कमाल की बात यह भी है कि ओमप्रकाश चौटाला ने पार्टी छोड़कर जाने वालों को वापिस ना लेने की बात तिहाड़ जेल दिल्ली से हरियाणा में घुसते समय सबसे पहले बहादुरगढ़ में ही कही थी और उसके बाद प्रदेश के अलग अलग कोनों में अनेक बार पूरे जोरशोर से कही। इस बात को साल भी पूरा नहीं हुआ।जहां चौटाला जी ने दिल से यह ऐलान किया, सबसे पहले वहीं के नेता को ज्वाइन करवाकर इनेलो ने कहीं अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष के सीधे-सीधे अप्रासांगिक होने का जानबूझकर इशारा तो नहीं कर दिया ? आने वाला समय बताएगा चौटाला जी के शब्द इस प्रकार अपमानित होते रहेंगे या नहीं। बसपा से समझौता होने के बाद भी सता में नही आ रही तो इसके लिए क्या इनेलो गद्दारों( चौटाला जी के अनुसार ) को गले लगा के एक असफल प्रयास करेगी ?