स्मानतर अदालतें हमारे समाज का हिस्सा नहीं हो सकतीं: Nida


तीन तलाक पीड़िता निदा कहती हैं कि जिस देश में हम रह रहे हैं वहां एक संविधान है तो समानांतर कोर्ट नहीं चल सकती.


 

जुमे का दिन था और वक्त था जोहर की नमाज का जब हम बरेली के शामतगंज में निदा खान के घर पहुंचे. निदा तो घर पर थीं नहीं. लेकिन उनकी अम्मी अपना फोन लिए इधर-उधर कर रही थीं. पूछने पर पता चला कि वो निदा के अब्बू और भाई को फोन लगा रही हैं जो नमाज अदा करने घर के पास वाली मस्जिद में गए है.

विश्व प्रसिद्ध दरगाह आला हजरत के दारुल इफ्ता से निदा खान के खिलाफ फतवा जारी होने के बाद यह पहला जुम्मा था. किसी ने निदा की अम्मी को फोन कर बताया था कि निदा के अब्बू और भाई को नमाज अदा करने से रोक दिया गया है. और यही वजह थी उनके हैरान परेशान होने की.

हालांकि जब निदा के अब्बू और भाई घर लौटे तो वो खबर महज एक अफवाह थी. निदा के अब्बू ने बताया कि हमने किसी को मिलने का मौका ही नहीं दिया. हम ठीक उस वक्त पहुंचे जब नमाज शुरू होने को थी और बाकी भीड़ के निकलने से पहले हम खुद वहां से निकल गए. उन्होंने कहा, हम सिर्फ जुमे की नमाज पढ़ने मस्जिद जाते हैं बाकी दिन की नमाज हम घर से ही अदा करते हैं. 

16 जुलाई को मुफ्ती खुर्शीद आलम द्वारा जारी किए फतवे में निदा को इस्लाम से खारिज कर दिया गया था. फतवे में कहा गया था, ‘अगर निदा खान बीमार पड़ती हैं तो उन्हें कोई दवा उपलब्ध नहीं कराई जाएगी. अगर उनकी मौत हो जाती है तो न ही कोई उनके जनाजे में शामिल होगा और न ही कोई नमाज अदा करेगा’. फतवे में यह भी कहा गया है,’अगर कोई निदा खान की मदद करता है तो उसे भी इस्लाम से खारिज कर दिया जाएगा’.

तीन तालाक पर लड़ाई लड़ रही निदा कोर्ट की तारीख पर गई थीं. निदा के घर लौटने में अभी वक्त था तो हम मुफ्ती खुर्शीद आलम से मिलने जामा मस्जिद पहुंचे. हालांकि मौलाना ने कहा हम बात नहीं करेंगे, आप मीडिया वाले हमारी सुनते नहीं सिर्फ अपनी कहते हैं. हमारे तसल्ली देने के बाद उन्होंने कहा कि पहले आप मस्जिद में इकठ्ठा हुई महिलाओं से मीलिए फिर हम आपसे मिलेंगे.

मस्जिद में लगभग सौ महिलाओं की भीड़ थी. जिस वक्त हम मस्जिद पहुंचे तो नातशरीफ पढ़ रही थीं. हालांकि हमें देखते ही वो उस मुद्दे पर आ गईं जिसके लिए मौलाना ने हमें उनसे मिलने को कहा था. उनके लिए मुद्दा था इस्लाम की रक्षा करना जिसे निदा जैसी औरतें खराब कर रही हैं.

रफिया शबनम

रफिया शबनम नाम की एक महिला इस भीड़ को संबोधित कर रही थीं. वो बता रही थीं कि ‘सबकी आवाज’ नाम से उन्होंने एक मुहिम शुरू की है जिसमें एक लाख मुस्लिम महिलाओं के दस्तखत होंगे और ये मुहिम शरीयत के कानून पर उठाए जा रहे सवालों के खिलाफ है.

अपने संबोधन में उन्होंने कहा, कुछ महिलाओं द्वारा धर्म की गलत छवि पेश की जा रही है. अब और लोग हमें बताएंगे कि हम शरीयत के कानून से डरें नहीं? और लोग हमें बताएंगे कि हम अपने धर्म में सुरक्षित हैं? आप लोगों को पता है कि तलाक को मुश्किल करने के लिए हलाला है? और बड़ी बात तो ये कि जिस आदमी ने तुम्हें एक बार तालाक दे दिया उसके पास वापस जाने का मतलब क्या है? ये हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाना है. शरीयत ये इजाजत देती है कि एक बार तुम्हारे शौहर ने तुम्हें तलाक दे दिया तो तुम कहीं और निकाह कर सकती हो. नहीं जरूरी है दोबारा वापिस आओ. हलाला को रेप ओर दुष्कर्म क्यों बना दिया?

हाल ही में बरेली से सामने आए शबीना हलाला मामले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, आज हमारे शहर की एक औरत ने 60 साल के पिता की उम्र के आदमी पर दुष्कर्म का आरोप लगा दिया. क्या उसे शर्म नही आई ये करते हुए? क्या उसे ये नहीं पता उसका सवाल शरीयत पर सवाल उठाता है? उसने सिर्फ अपना फायदा देखा. जितने बराबरी के हक शरीयत ने मर्द और औरत को दिए हैं उतने शायद ही किसी और धर्म ने दिए.

क्या 5 या 10 प्रतिशत महिलाओं के कहने से शरीयत का कानून यानी तलाक और हलाला गलत हो जाएगा? जो 1400 साल पहले हमारे हूजुर ने लिख वो आज गलत हो गया! निदा खान ने अपने व्यक्तिगत मामले से से आज हमारी शरीयत पर सवाल उठा दिए. एक बड़े खानदान को रुसवा कर दिया.

संबोधन खत्म हुआ तो मैंने रफिया शबनम से पूछा क्या निदा के साथ जो हुआ वो ठीक है? रफिया ने कहा, वो निदा का व्यक्तिगत मामला है. तलाक पीड़िताएं तो बरसों से है. व्यक्तिगत मामलों को धर्म से मत जोड़िए. मैंने पलट कर पूछ लिया तो जब मामला व्यक्तिगत था तो फतवा भी गलत हुआ? तो वो थोड़ा गुस्साईं और कहने लगीं, क्या एक निदा के कहने से शरीयत में लिखा ट्रिपल तलाक या हलाला गलत हो जाएगा, अपने पीछे खड़ी भीड़ की तरफ इशारा कर उन्होंने कहा कि क्या ये हजार महिलाएं अपने घर में महफूज नहीं है? एक तलाक पीड़िता के लिए क्या सब बदल दिया जाएगा?

निदा खान के खिलाफ जारी किए गए फतवे की तस्वीर

मैंने एक-एक कर उन्हीं में से कई महिलाओं से पूछा क्या आप तलाक-ए-बिद्दत को ठीक मानती हैं? कोई दूसरे का मुंह देखने लगी तो किसी ने मुस्कुराकर टाल दिया, तो किसी ने यहां तक कह दिया कि आपका सवाल ही गलत है. मैंने कहा चलिए ये बताइए कि तलाक के जिस तरीके को सुप्रीम कोर्ट ने बैन किया है क्या वो सही था? ऐसा लगा जैसे वो इस सवाल के लिए तैयार नहीं थीं. इस भीड़ में पीछे खड़ी एक औरत आगे बढ़ी और कहने लगी, हमें अपने हदीस और कुरान पर यकीन है. सुप्रीम कोर्ट कुछ भी कहे पर हम मानेंगे तो वही जो हमारा कुरान हमसे कहता है. संविधान ने हमें हक दिया अपने धर्म को पालन करने का और अगर संविधान हमारे शरीयत या हदीस के खिलाफ होगा तो हम संविधान के भी खिलाफ जाएंगे.

वक्त आया मौलाना जी से मिलने का. मैंने कहा, क्या निदा अपने हक के लिए लड़ नहीं सकती? और लड़ेगी तो आप उसे इस्लाम से खारिज कर देंगे? आपको ये हक किसने दिया? मौलाना ने कहा, मैं कौन होता हूं किसी को इस्लाम से खारिज करने वाला! जो कुरान ओर हदीस के खिलाफ जाएगा वो खुद ही इस्लाम से खारिज हो जाएगा. हम तो सिर्फ हुकम बताने वाले हैं. सवाल कायम किया हमने, फतवा दारुल इफ्ता से मिला और मैंने सिर्फ उसका जवाब पढ़कर सुना दिया.

उसमें लिखा है कि अगर किसी ने कुरान से इंकार करने की गलती की है तो वो तौबा करें, मांफी मांगे, जब वो मुस्लमान है. ये फतवा इसलिए जारी हुआ क्योंकि हमें कुरान और हदीस पर भरोसा है. अगर इसके खिलाफ कोई बात सामने आती है तो हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अवाम को आगाह किया जाए. जैसी कि बयानबाजी हो रही थी कि हलाला का कुरान में कोई सबूत नहीं हैं, हलाला औरतों पर जुल्म है. हलाला का तालुक खुदा के हुक्म से है. हलाला का मतलब नहीं कि जबरदस्ती किसी को मजबूर किया जाए.

मैंने कहा कि क्या जिस तलाक-ए-बिद्दत पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगा दिया है, आप उसके विरोध में नहीं हैं?

मौलाना ने जवाब दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वो ही हमारी शरीयत भी कह रही है. एक साथ तीन तालाक गुनाह है, लेकिन अगर कह दिया तो तलाक हो जाएगा. वो गुनहगार है जिसने एक साथ तीन तलाक दिया.

मैंने कहा जब शरीयत भी कह रही है ये गलत है तो इसके खिलाफ लड़ना कैसे गलत है? मौलाना ने कहा, तलाक तो हो गया. निदा अपने हक के लिए लड़ें, हमें उससे कोई दिक्कत नहीं. लेकिन वो अपने हक की लड़ाई में शरियत को निशाना न बनाएं, कुरान और हदीस के खिलाफ न जाएं. फतवे की ये लाइनें हदीस से कोट की गई हैं. फतवे का मतलब है आगाह करना. ये फतवा सिर्फ निदा के लिए नहीं है. उसमे लिखा है जो भी कुरान या हदीस के कानून से इंकार करेगा उस पर इस्लाम का ये कानून लागू होता है.

आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड आपके फतवे से कोई इत्तेफाक नहीं रखता और उनका कहना है कि इस फतवे का कोई मतलब नहीं क्योंकि फतवा सिर्फ तब जायज है जब वो मांगा जाए, दागा नहीं जा सकता. तो उन्होंने कहा, हमारी जिम्मदारी है कानून और हदीस के कानून से अवाम को आगाह करना. लोगों को बताना.

मुफ्ती खुर्शीद आलम

इस तरह के फतवे जारी कर के आप इस्लाम को बदनाम कर रहें हैं? ये सोच है और सोच पर कोई पाबंदी नहीं लगा सकता. जिसका इमान कुरान पर है, हदीस पर है वो कभी ये नहीं बोल सकता कि इन फतवों से इस्लाम बदनाम होता है. बल्कि ये फतवा ईमान वालों के लिए रहमत है. शहर काजी के हुक्म से फतवा जारी हुआ हे और वो शब्द-शब्द सही है. कुरान का कानून है और कुरान के हर हर्फ पर मेरा ईमान है

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के मुताबिक फतवे की कोई कानूनी मान्यता नहीं है और संविधान से बड़ा तो कुछ नहीं? तो वो बोले कुरान सबसे बड़ा है हमारे लिए. पहले हम कुरान देखेंगे, फिर सुप्रीम कोर्ट का कानून.

मुफ्ती खुर्शीद आलम से लंबी बातचीत में बार-बार पूछने पर उन्होंने कहा कि तलाक ए बिद्दत शरीयत के हिसाब से भी गलत है लेकिन किसी ने दे दिया तो हो गया. हालांकि गलत के खिलाफ लड़ने पर उनके पास जवाब नहीं.

मौलाना से मिल हम निदा के घर लौटे. निदा अपने घर के आंगन में बैठी एक मां के आंसू पोंछ रही थीं. दरअसल वो मां थीं एक और पीड़िता की जिसे उसके शौहर की मृत्यु के बाद ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया था. निदा उन्हें समझा रहीं थी कि वे परेशान ना हो, ये लड़ाई कानूनी तौर पर लड़ी जाएं.

निदा 2017 से आला हजरत हेल्पिंग सोसायटी नाम की एक संस्था चलाती हैं जिसमें वो ट्रिपल तालाक, हलाला, बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं की मदद करती हैं. निदा कहती हैं कि हमारी पहली कोशिश होती है कि घर टूटने से बच सकें तो उसे बचा लें.

निदा यहां अपनी अम्मी, अब्बू, भाई के साथ रहती हैं.अक्सर न्यूज स्क्रीन पर जिस निदा को हमेशा नकाब में देखा वो एक बेहद दिलचस्प इंसान हैं. ट्रिपल तलाक, हलाला के खिलाफ लड़ाइ लड़ रही निदा चंचल, चुलबुल लड़की हैं.

बात करने पर निदा ने कहा कि वो कोर्ट के उस फैसले से खुश है जिसमे कोर्ट ने उनके तीन तलाक को अवैध करार दे दिया है. निदा ने कहा फतवे का इस्तेमाल हमेशा से कानून को चकमा देने के लिए किया गया है. जो चीज असंवैधानिक है उसका कोई वजूद नहीं. इसका इस्तेमाल सलाह मशविरा के लिए किया जा सकता है, किसी को बेइज्जत करने के लिए नहीं. जिस तरह की बात फतवे में हुई है वो मेरे मौलिक अधिकारों का हनन है. और उनके इस फतवे का जवाब देने से अच्छा मैं समझती हूं कि मैं उस पर कार्रवाई करूं.

2016 से शुरू हुई इस लड़ाई में मुझ पर अटैक हुए, केस वापस लेने का दबाव बनाया गया और अब ये फतवा लेकिन एक इंसान जितना डर सह सकता है उससे ज्यादा हो चुका है, तो अब इन चीजों का फर्क नहीं पड़ता. मेरे संविधान ने मुझे अधिकार दिया है कि मैं जो धर्म चाहूं उसका पालन करूं और कोई भी फतवा मुझे ये करने से रोक नहीं सकता. मैं इस फतवे को सुप्रीम कोर्ट लेकर जाउंगी. जो संदेश उन्होंने इस फतवे से समाज को देने की कोशिश की है उसका उल्टा संदेश मैं सामाज को दूंगी…मैं इस लड़ाई को पूरी तरह से लड़ूंगी.

अजीब ये है कि जिन मौलानाओं को इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने का काम दिया गया है वो ऐसे फतवों से इस्लाम की गलत तस्वीर पेश करते हैं. इस तरह का फतवा देकर वो समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं कि जो कोई अपने हक की लड़ाई लड़ेगा उसे हम इस्लाम से खारिज कर देंगे. मुझे लगता है तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत हमारी सोसायटी का एक बुरा सच है जिसका खत्म होना बेहद जरूरी है.

और रही बात हलाला की तो हलाला शरीयत के हिसाब से मर्दों के लिए सजा थी और लेकिन इसमें असली सजा तो महिलाओं को भुगतनी पड़ती है. आज के वक्त में इसे बिजनेस बना दिया गया है.

निदा कहती हैं, सोसायटी का एक हिस्सा है जिन पर फतवे से फर्क पड़ा हैं. मैं कोर्ट गई थी और वहां मेरी पहचान के ही किसी ने कहा मैं आपसे बात नहीं करूंगा वरना मेरा ईमान चला जाएगा.

जब निदा से मैंने पूछा कि वो सरकार से क्या चाहती हैं? निदा ने कहा, ये अकेली और पहली सरकार है जिसने तीन तलाक का मुद्दा उठाया है और शायद पहली बार इससे पीड़ित महिलाएं इसके खिलाफ आवाज उठा रही हैं. अब तक तीन तलाक शरीयत के नाम पर चलाया जा रहा था लेकिन अब जब सुप्रीम कोर्ट ने ही इसे बैन कर दिया तो अब क्या? हालांकि सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत को बैन करने से चीजें नहीं बदलेंगी क्योंकि वो तलाक तो आज भी हो रहे हैं. कानून तो हमारे पास रेप का भी है लेकिन अमल होना जरूरी हैं. ठीक है कि ये कानून बनने से मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा लेकिन सिर्फ तब जब उस कानून का सही से पालन होगा. रिफॉर्म सोसायटी के लिए जरूरी है.

निदा कहती हैं जब तक मैं अपने शौहर को सलाखों के पीछे नहीं पहुंचाती, जिसकी वजह से मैंने अपन बच्चा खोया, ये लड़ाई जारी रहेगी. जिस देश में हम रह रहे हैं वहां एक संविधान है तो समानांतर कोर्ट नहीं चल सकती. अगर इतना है तो पहले सुप्रीम कोर्ट जाएं और शरीयत को कोडिफाई कराएं.

मेरी अम्मी, अब्बू, भाई ने मुझे बहुत सहारा दिया है. कोर्ट के वातावरण का अंदाजा तो जॉली एलएलबी के बाद से सबको हो ही गया है. उस वातावरण में मेरे भाई ने मुझे काफी सपोर्ट किया है. हमें बहुत सारी कामयाबी मिली है.

पानी जब तक दूर है तब तक उससे डर लगता है लेकिन एक बार समुद्र की लहर पैरों को छू जाएं तो वो डर खत्म हो जाता है.

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