Sunday, December 22


तेलंगाना के सीएम की तारीफ करके मोदी ने ये सुनिश्चित कर लिया है कि 2019 में उनके पास एक संभावित सहयोगी के तौर पर टीआरएस होगी


शुक्रवार देर रात, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में अपना जवाब पूरा किया, तो, विजयवाड़ा से सांसद केसीनेनी नानी बोलने के लिए खड़े हुए. नानी ने शुरुआत में पीएम मोदी की भाषण कला की तारीफ की और कहा कि जब प्रधानमंत्री भाषण दे रहे थे, तो, उन्हें लगा कि वो एक ब्लॉकबस्टर बॉलीवुड फ़िल्म देख रहे हैं. लेकिन, कुछ सेकेंड के बाद ही नानी के बयान में तुर्शी नजर आ गई, जब उन्होंने कहा कि दुनिया में मोदी से बड़ा कोई अभिनेता नहीं. सत्ता पक्ष के सांसदों ने नानी के इस बयान पर कड़ा ऐतराज जताया.

लेकिन, फिल्मी दुनिया से प्रभावित विजयवाड़ा के सांसद नानी के आरोप में कुछ तो दम जरूर है. पीएम मोदी सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के हीरो हैं. उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में टीडीपी अध्यक्ष को आंध्र के विकास का विलेन ठहराने की कोशिश की थी. पीएम ने टीडीपी नेता को झगड़ालू बताया और कहा कि वो अक्सर तेलंगाना की सत्ताधारी पार्टी टीआरएस से झगड़ते रहते थे. जिसकी वजह से कई बार राज्यपाल, गृह मंत्री और खुद पीएम को ये झगड़ा शांत कराना पड़ता था.

टीडीपी की आलोचना टीआरएस की तारीफ के साथ

चंद्रबाबू नायडू के जख्मों पर और नमक डालते हुए पीएम मोदी ने टीआरस प्रमुख और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव की तारीफ की और कहा कि चंद्रशेखर राव, नायडू की तरह झगड़ने के बजाय अपने राज्य के विकास को तरजीह देते हैं. नायडू को इस बात से और भी गुस्सा आया होगा.

लेकिन, मोदी यहीं पर नहीं रुके. नायडू के साथ अकेले में हुई अपनी बातों को सार्वजनिक करते हुए पीएम ने कहा कि जब मार्च में टीडीपी ने एनडीए से बाहर जाने का फैसला किया, तो उन्होंने नायडू को आगाह किया था कि आप वायएसआर कांग्रेस के जाल में फंस रहे हैं. मोदी ने अपने भाषण के जरिए चंद्रबाबू नायडू को एक छोटे से क्षेत्रीय दल का नेता ठहरा दिया, जो अपने घरेलू मसले निपटाने के लिए झगड़ता है. मगर दावे ऐसे करता है कि वो बहुत बड़ा नेता हो और देश की बड़ी सियासी तस्वीर समझता है.

लोकसभा में पीएम मोदी ने चंद्रबाबू नायडू पर जो तीखे हमले किए उसमें एक बात सबसे अहम है, वो ये कि नायडू के साथ बीजेपी की दोस्ती गए जमाने की बात हो गई है. हालांकि गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि नायडू अभी भी उनके दोस्त हैं, लेकिन, पीएम के भाषण से साफ है कि नायडू के एनडीए छोड़ने को मोदी निजी दुश्मनी के तौर पर देख रहे हैं. निजी स्तर पर नायडू के राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और प्रकाश जावडेकर से रिश्ते अब भी बहुत अच्छे हैं. लेकिन अमित शाह और पीएम मोदी के साथ उनकी केमिस्ट्री गड़बड़ा गई है. और आज की तारीख में मोदी और शाह ही बीजेपी में सबसे अहम हैं.

आंध्र को विशेष दर्जा दिलाने पर नायडू का यू-टर्न

पीएम मोदी के भाषण पर पहली प्रतिक्रिया में नायडू ने उन्हें अहंकारी कहा. लेकिन तल्ख हकीकत ये है कि आंध्र प्रदेश और टीडीपी, राज्य को विशेष दर्जा दिलाने की ये सियासी लड़ाई हार गए हैं. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि आंध्र को विशेष दर्जा दिलाने पर उन्होंने यू-टर्न लिया है क्योंकि ये नायडू ही थे जिन्होंने 2016-17 में राज्य के लिए विशेष वित्तीय पैकेज को स्वीकार किया था. केवल यही नहीं, मार्च 2017 में नायडू ने आंध्र प्रदेश विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पेश किया था जिसमें इस पैकेज के लिए आंध्र प्रदेश की जनता की तरफ से केंद्र को दिल से शुक्रिया कहा गया. इस प्रस्ताव में साफ लिखा था कि भले ही नाम अलग हो, लेकिन ये पैकेज असल में राज्य के लिए विशेष दर्जे जैसा ही है. उस वक्त नायडू के प्रचारकों ने इसे जोर-शोर से आंध्र प्रदेश की जनता और नायडू की जीत के तौर पर पेश किया था. बल्कि, लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की शुरुआत करने वाले टीडीपी सांसद जयदेव गल्ला ने मार्च 2017 में कहा था कि, ‘स्पेशल पैकेज विशेष राज्य के दर्जे से बेहतर है’. गुंटूर से सांसद गल्ला अब कह रहे हैं कि, ‘मेरे लिए विशेष दर्जा ही सब कुछ है’. ये आला दर्जे का सियासी दोगलापन है.

 

पीएम ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा न देने के लिए वित्तीय आयोग की सिफारिशों का बहाना बनाया. मोदी ने कहा कि उत्तर-पूर्व के राज्यों और पहाड़ी इलाकों के सिवा किसी और राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जा सकता. चंद्रबाबू नायडू इसे सरासर झूठा दावा कहते हैं. सच तो ये है कि अगर आंध्र प्रदेश को स्पेशल स्टेटस दिया जाता, तो केंद्र सरकार को तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे आंध्र प्रदेश के पड़ोसी राज्यों का विरोध झेलना पड़ता. क्योंकि तब इन राज्यों को लगता कि निवेशकों को रिझाने में आंध्र प्रदेश उनसे आगे निकल जाता.

2019 के लिए बड़ी दूर का पासा है टीआरएस का नाम लेना

बीजेपी की रणनीति साफ है. वो चंद्रबाबू नायडू पर दबाव बनाए रखना चाहती है. इस मामले में वाईएसआर कांग्रेस और पवन कल्याण उसके मददगार हैं. खास तौर से अभिनेता से नेता बने पवन कल्याण के तीखे हमलों से नायडू को शक है कि वो बीजेपी के एजेंट के तौर पर काम कर रहे हैं.

आंध्र प्रदेश के सियासी मैदान में जो तस्वीर बन रही है, उसमें नायडू के मुकाबले बीजेपी, वाईएसआर कांग्रेस और पवन कल्याण की जनसेना का मोर्चा बनता दिख रहा है. इस मुकाबले में नायडू तभी जीत सकते हैं, जब उनके खिलाफ इस तिकड़ी के वोट बंटें. अगर ये तीनों आपसी तालमेल से नायडू का मुकाबला करने की ठानते हैं, तो टीडीपी के लिए चुनौती बहुत बड़ी होगी. दूसरी तरफ टी़डीपी, कांग्रेस के साथ नहीं जा सकती, क्योंकि आंध्र की जनता उसे राज्य के बंटवारे का विलेन मानती है. हालांकि कांग्रेस ने वादा किया है कि वो सत्ता में आई तो आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देगी.

हालांकि मोदी का नायडू के दावों को झूठा साबित करना सिक्के का एक ही पहलू है. पीएम ने जिस तरह से इशारों में चंद्रशेखर राव की तारीफ की, उससे 2019 में हम नई तस्वीर देख सकते हैं. तेलंगाना के सीएम की तारीफ करके मोदी ने ये सुनिश्चित कर लिया है कि अगर 2019 में वो बहुमत के जादुई आंकड़े 272 से दूर रहते हैं, तो उनके पास एक संभावित सहयोगी के तौर पर टीआरएस होगी. आखिर चंद्रशेखर राव को लुभाने के लिए इससे अच्छा दांव क्या हो सकता है कि उन्हें अपने दुश्मन चंद्रबाबू नायडू से बेहतर नेता बताया जाए.